शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

अखाड़े अब हो जाएंगे गुलजार


भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई की मदद से प्रदेश की राजधानी रायपुर के भी कई अखाड़े अब गुलजार हो जाएंगे। साई ने इनको भी भरपूर मदद देने की बात कही है। छत्तीसगढ़ के पहली बार दौरे पर आए क्षेत्रीय निर्देशक आरके नायडु ने बताया कि साई इस समय देश में खेलों के विकास के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। इन्हीं योजनाओं में एक योजना किसी भी खेल को मदद करने की है। उन्होंने बताया कि देशी खेल कुश्ती को बढाने के लिए अखाड़ों को भी मदद करने की योजना है, उन्होंने बताया कि रायपुर के ज्यादा से ज्यादा अखाड़ों को साई एक तरह से गोद लेकर उनको मदद करेगी। इन अखाड़ों को सामान दिया जाएगा, उन्होंने पूछने पर बताया कि आज कुश्ती जिस तरह से आधुनिक मैट पर होती है ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान तैयार करने के लिए यह जरूरी है उनको मैट पर अभ्यास करने का मौका मिले। ऐसे में जिनते भी अखाड़े मैट की मांग करेंगे उनको मैट भी दिए जाएंगे। अब तक रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के ज्यादातर अखाड़ों में पहलवान मिट्टी पर ही कुश्ती के दांव लगाते हैं। वैसे रायपुर के दस अखाड़ों स्टार अखाड़ा, सत्तीबाजार, बलभीम जोरापारा, गया उस्ताद, शीतला, दंतेश्वरी, बजरंग, सिकंदर, हनुमान, और जय बजरग अखाड़ा को खेल विभाग ने गद्दे दिए थे। वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे ने बताया कि इन सभी अखाड़ों को 10-10 गद्दे दिए गए थे।

डे बोर्डिंग योजना भी प्रारंभ की जाएगी

राष्ट्रीय हैंडबॉल अकादमी भिलाई में हैंडबॉल के लिए डेकोटर्फ लगाने की सहमति हुई है। इसी के साथ साई की मदद से वहां पर बालक और बालिका वर्ग के खिलाड़ियों के लिए डे बोर्डिंग योजना भी प्रारंभ की जाएगी।यह जानकारी देते हुए प्रदेश हैंडबॉल संघ के सचिव बशीर अहमद खान ने बताया कि अकादमी की गुरुवार को हुई बैठक में सबसे बड़ा निर्णय यह लिया गया कि हैंडबॉल में आधुनिक आउटडोर डेकोटर्फ लगाया जाए जिससे खिलाड़ियों को अभ्यास करने में आसानी हो। इस बैठक में यह भी तय किया गया कि भारतीय खेल प्राधिकरण की मदद से भिलाई में बालक और बालिका खिलाड़ियों के लिए डे बोर्डिंग सेंटर प्रारंभ करके उनको प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस सेंटर में हर खिलाड़ी को छह हजार रुपए की खेल वृत्ति दी जाएगी। इसी के साथ खिलाड़ियों को चार हजार की पोशाक भी मिलेगी। चैंपियनशिप में खेलने जाने पर खिलाड़ियों का सारा खर्च साई वहन करेगा। खिलाड़ियों को चैंपियनशिप में शामिल होने के लिए साल भर में तीन हजार की मदद की जाएगी। अकादमी के आरके शर्मा ने बताया कि डे बोर्डिंग में और कुछ खेलों को भी शामिल किया जा सकता है। भिलाई स्टील प्लांट ने एक दर्जन खेलों को प्राथमिक सूची में रखा है। उन्होंने बताया कि साई की मदद से हैंडबाल के साथ ही मुक्केबाजी, और बास्केटबॉल के भी डे बोर्डिंग सेंटर प्रारंभ किए जा रहे हैं।

अखिल भारतीय कबड्डी चैंपियनशिप जून में

हिन्द स्पोर्टिंग एसोसिशन द्वारा अखिल भारतीय फुटबॉल चैंपियनशिप के बाद अब अखिल भारतीय कबड्डी चैंपियनशिप के आयोजन की तैयारी प्रारंभ कर दी गई है। एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष दुबे बताया कि चार साल पहले एक बार इसका आयोजन किया गया था। इस आयोजन को नियमित जारी नहीं रखा जा सका, लेकिन अब फिर से इसके आयोजन की योजना बनी है। इस बार भी महिला और पुरुष वर्ग में आयोजन किया जाएगा। पुरुष वर्ग में बाहर की 24 और प्रदेश की चार टीमॊ को, महिला वर्ग में बाहर की 12 और प्रदेश की चार टीमों को प्रवेश दिया जाएगा। दोनों वर्गों में विजेता टीम को 31 हजार उपविजेता को 21 हजार और तीसरे स्थान पर रहने वाली टीम को 11 हजार का नगद इनाम दिया जाएगा। चैंपियनशिप के सभी मैच फ्लड लाइट में करवाएं जाएंगे।

जिंदल की तीसरी जीत

अखिल भारतीय स्वर्ण कप नेहरू हॉकी में जिंदल स्टील प्लांट रायगढ़ ने एकतरफा मुकाबले में मेजबान एथलेटिक क्लब को 5-0 से मात देकर तीसरी जीत दर्ज की। एक अन्य मुकाबले में ब्वायज सिवनी ने जिम खाना क्लब को कड़े मुकाबले के बाद 6-4 से मात दी। चैंपियनशिप का यह पहला मैच रहा जिसमें इतने ज्यादा गोल हुए। नेताजी स्टेडियम में चल रही चैंपियनशिप में पहला मैच जिंदल और एथलेटिक क्लब के बीच खेला गया। इस मैच में जिंदल की अनुभवी टीम के सामने मेजबान टीम ठहर ही नहीं सकी। मैच पूरी तरह से जिंदल के कब्जे में रहा। मैच का पहला गोल पहले हॉफ के 19वें मिनट में दिलबर एक्का ने पेनाल्टी कॉर्नर से किया। पहले हॉफ में यही एक मात्र गोल हुआ। दूसरे हॉफ में जिंदल ने गोलों की ङाड़ी लगा दी। मैच के प्रारंभ में दूसरे ही मिनट में नामजान की स्टिक से एक गोल निकला। इसके एक मिनट बाद ही विकटर एक्का ने गोल कर दिया। मेजबान टीम अभी इन दो गोलों के सदमे से ऊबर भी नहीं पाई थी कि विकटर एक्का ने ही 40वें मिनट में एक और गोलकर अपनी टीम को 4-0 से आगे कर दिया। यह गोल पेनाल्टी कॉर्नर से किया गया। मैच का पांचवां और अंतिम गोल सुजीत करकटा ने खेल के 42वें मिनट में किया। इस मैच में विजेता टीम को जहां 8 पेनाल्टी कॉर्नर मिले जिसमें से दो को गोल में बदला गया, वहीं पराजित टीम को एक भी पेनाल्टी कॉर्नर नहीं मिला। दूसरा मैच शाम के सत्र में ब्वायज सिवनी और जिम खाना क्लब रायपुर के बीच खेला गया। यह मैच काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा। मैच में पहला गोल खेल के तीसरे मिनट में ही जिम खाना के कंचन ने किया। यह बढ़त 11वें मिनट तक ही कायम रह सकी। मैच के 12वें मिनट में सिवनी ने पेनाल्टी कॉर्नर से बराबरी का गोल कर दिया। यह गोल आर. सूर्यवंशी की स्टिक से निकला। इसके दो मिनट बाद ही अब्दुल वाहिद ने गोल करके अपनी टीम को 2-1 से आगे कर दिया। इसके एक मिनट बाद ही तनवीर कुरैशी ने अपनी टीम के लिए तीसरा गोल दाग दिया। पहले हॉफ के समाप्त होने के दो मिनट पहले जिम खाना के रौशन एक्का ने गोल करके सिवनी की बढ़त को कम कर दिया। पहले हॉफ में सिवनी की टीम 3-2 से आगे रही। दूसरे हॉफ में खेल प्रारंभ होने पर सिवनी से ताबड़तोड़ हमले कर दिए। इसके फलस्वरूप सातवें मिनट में अब्दुल वाहिद ने गोल करके अपनी टीम को 4-2 कर दिया। इसके तीन मिनट बाद ही असद खान ने भी गोल कर दिया और सिवनी की टीम 5-2 से आगे हो गई। सिवनी के लिए छठा गोल इम्तियाज ने खेल के 49वें मिनट में किया। तीन गोलों से पीछे होने के बाद लगा कि अब जिम खाना के खिलाड़ियों ने हार मान ली है। इधर 6 गोल करने के बाद सिवनी के खिलाड़ियों ने अपनी जीत तय मान मैच को गंभीरता से लेना बंद कर दिया। जिम खाना के खिलाड़ियों ने सिवनी के खिलाड़ियों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए दो गोल दाग दिए। मैच के 52वें मिनट में रौशन एक्का और 57वें मिनट में विकास एक्का ने गोल करके गोलों के अंतर को 4-6 कर दिया। इसके बाद मैच में जिम खाना के खिलाड़ियों ने पूरा प्रयास किया कि वे दो और गोल करके मैच में बराबरी प्राप्त कर लें, लेकिन इस बार सिवनी की रक्षापंक्ति ने कोई गलती नहीं की और जिम खाना को कोई गोल करने का मौका नहीं दिया। अंत में सिवनी ने मैच 6-4 से जीतकर अपनी तीसरी जीत दर्ज की। आज के मैचों में देवेश शुक्ला, तंबू राज, लोक राज और इंसान अली अंपायर थे। टेबल जज डॉ. क्यूए वाहिद थे।

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

भिलाई की राष्ट्रीय हैंडबॉल अकादमी में टेराफैक्ट कोर्ट

छत्तीसगढ़ की राष्ट्रीय हैंडबॉल अकादमी में बनने वाले इंडोर स्टेडियम को लेकर एक बार फिर से कवायद प्रारंभ हो गई है। इस स्टेडिमय का अगर निर्माण किया जाता है तो इसमें टेराफैक्ट कोर्ट लगाने का काम भारतीय खेल प्राधिकरण करेगा। इस कोर्ट पर 50 से 60 लाख का खर्च आएगा। यह जानकारी देते हुए प्रदेश हैंडबॉल संघ के महासचिव बशीर अहमद खान ने बताया कि भिलाई की राष्ट्रीय हैंडबॉल अकादमी में काफी समय से हैंडबॉल का इंडोर स्टेडियम बनाने की योजना है। यह योजना 1992 में पहली बार बनी थी तब से लेकर अब तक किसी न किसी बाधा के कारण इसका काम नहीं हो सका है। इसके लिए डेंटर भी बुलाया गया था लेकिन लागत अधिक होने के कारण बात नहीं बनी। दो साल पहले जब इस्तात मंत्री रामविलास पासवान भिलाई आए थे तो उन्हॊने इस्पात मंत्रालय से स्टेडियम के लिए चार करोड़ रुपए देने की भी बात कही थी। इसके बाद से ही इस स्टेडियम की तरफ ध्यान दिया जाने लगा है। हाल ही में जब भारतीय खेल प्राधिकरण के क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडु का छत्तीसगढ़ दौर हुआ तो वे भिलाई की राष्ट्रीय हैंडबॉल अकादमी में भी गए। उनके सामने जब अकादमी में स्टेडियम बनाने की योजना की जानकारी रखी गई तो उन्होंने कहा कि अगर स्टेडियम का निर्माण किया जाता है तो साई यहां पर टेराफैक्ट कोर्ट लगाने का काम करेगा। श्री खान ने बताया कि यह कोर्ट 50 से 60 लाख की लागत का आता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि स्टेडियम के निर्माण के लिए जमीन अकादमी को काफी पहले दे दी गई है। यह जमीन जयंती स्टेडियम के पीछे है।

महिला खिलाड़ियॊ के लिए एक नई खेलवृत्ति योजना

भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई ने देश की महिला खिलाड़ियॊ के लिए एक नई खेलवृत्ति योजना प्रारंभ की है। इस योजना में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाली खिलाड़ियों को हर साल 18 हजार रुपए की खेलवृत्ति दी जाएगी। इस योजना का पहले साल में प्रदेश की काफी कम खिलाड़ियों को लाभ मिल पा रहा है क्योंकि योजना की जानकारी विलंब से आने के कारण खिलाड़ियों तक इसकी सूचना नहीं पहुंच सकी है।
साई द्वारा देश के खिलाड़ियॊ के लिए कई तरह की खेलवृत्ति देने की योजना चलाई जाती है। इन योजनाओं में एक नई योजना को शामिल किया गया है। नई योजना देश के किसी भी राज्य की ऐसी महिला खिलाड़ियॊ के लिए है जिनकी उम्र 19 साल से ज्यादा है और जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं। जिन खेलों को इस योजना में शामिल किया गया है उन खेलों में तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, मुक्बेबाजी, साइक्लिंग, जिम्नास्टिक, जूडो, रोइंग, निशानेबाजी, तैराकी, टेबल टेनिस, भारोत्तोलन, कुश्ती, कराते, शतरंज, गोल्फ, कयाकिंग एवं कैनोइंग, बॉलिंग, स्नूकर, बिलियर्ड, कैरम, घुड़सवारी, पावरलिफ्टिंग, ताइक्वांडो, तलवारबाजी, स्क्वैश एवं नौका विहार शामिल हैं। इन खेलों में 2007 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली सभी खिलाड़ियॊ ने साई ने 28 फरवरी तक आवेदन मंगाए हैं। इसके बाद मिलने वाले किसी भी आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा। साई की नई योजना की सूचना प्रदेश के खेल विभाग में काफी विलंब से आने के कारण प्रदेश की ज्यादातर खिलाड़ियों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। साई ने खेल विभाग को 10 फरवरी को पत्र भेजा। यह पत्र यहां पर आते-आते एक सप्ताह का समय हो गया। वैसे खेल विभाग ने उसी दिन सभी जिला खेल अधिकारियों को यह पत्र भेज दिया। जिला खेल अधिकारियों से अपने स्तर पर खिलाड़ियों को सूचना देने का काम किया लेकिन इसके बाद भी नई योजना की सूचना ज्यादातर खिलाड़ियों तक नहीं पहुंच सकी है। इस योजना के पहले साल में 28 फरवरी तक ही आवेदन देने हैं और ये आवेदन इस तारीख तक साई के मुख्यालय पटियाला पहुंचने अनिवार्य है। ऐसे में ज्यादातर खिलाड़ियों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। फिर भी खिलाड़ी इस बात से खुश हैं कि इस नई योजना से उसको मिलने वाली राशि उनके खेल के काम आएगी।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

रेलवे है खिलाड़ी नंबर वन

छत्तीसगढ़ के 100 से ज्यादा खिलाड़ी इस समय रेलवे में नौकरी कर रहे हैं देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो देश के हर राज्य के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को तुरंत नौकरी देने का काम करता है। रेलवे के 16 जोनों में हर साल 48-48 खिलाड़ियों को नौकरी में रखा जाता है। कुल मिलाकर हर साल रेलवे 768 खिलाड़ियॊ को नौकरी में रखता है। प्रदेश के जो खिलाड़ी रेलवे में काम कर हैं उनका एक स्वर में मानना है कि रेलवे जैसी सुविधाएं और किसी विभाग में मिल ही नहीं सकती हैं। इन खिलाड़ियों का ऐसा भी मानना है कि देश में खेलों को बढ़ाने में रेलवे का सबसे बड़ा हाथ है। रेल का बजट शुक्रवार को जब रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने पेश किया तो इसी के साथ रेलवे से जुड़े खेलों की याद भी आई। रेलवे ने हमेशा से खेलों के लिए काफी काम किया है। रेलवे ही इस समय देश में एक ऐसी बड़ी संस्था है जिसके खाते में खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा नौकरी देने का रिकॉर्ड दर्ज है। छत्तीसगढ में ही रेलवे ने 100 से ज्यादा खिलाड़ियों को नौकरी में रखा है। इन खिलाड़ियों में प्रदेश के नंबर वन खेलॊ बास्केटबॉल और हैंडबॉल के ही 50 खिलाड़ी शामिल हैं। बास्केटबॉल के 38 और हैंडबॉल के 12 खिलाड़ी रेलवे में हैं। इनमें से ज्यादातर द.पू. मध्य रेलवे में कार्यरत हैं। इन खेलों के अलावा वेटलिफ्टिंग, पावरलिफ्टिंग, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, फुटबॉल, हॉकी, खो-खो, क्रिकेट, तैराकी, तीरंदाजी के खिलाड़ी नौकरी में हैं। यहां के खिलाड़ियों को टीसी के साथ क्लास थ्री और क्लास फोर में रखा गया है। इसके अलावा सीनियर क्लर्क के पद में भी खिलाड़ी रखे गए हैं। पदक जीतते ही मिलती है पदोन्नति:- रेलवे में कार्यरत बास्केटबॉल की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अंजू लकड़ा बताती हैं कि वह रेलवे में 2002 से काम कर रही हैं। उनको सात साल में तीन बार पदोन्नति मिली है और आज वह हेड टीसी बन गई हैं। उन्होंने बताया कि रेलवे में खेलते हुए उन्होंने जहां राष्ट्रीय चैंपियनशिप में तीन बार स्वर्ण पदक जीते हैं, वहीं रेलवे की चैंपियनशिप में अपने क्षेत्र की टीम को स्वर्ण दिलाया है। छत्तीसगढ़ की एक और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सीमा सिंह बताती हैं कि उनकी भी पदोन्नति होने वाली है और वह भी अब हेड टीसी बन जाएंगी। भारती नेताम ने बताया कि रेलवे में पदक जीतने पर तुरंत पदोन्नति मिल जाती है। इनके साथ रेलवे में काम करने वाले छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी एम. पुष्पा, अनामिका जैन, आरती सिंह, कविता अम्बिलकर, मृदुला आडिल, रूपाली पात्रो, राधा सोनी, जे. वेणु, राजेश्वरी ठाकुर, कुमारी सरिता, आकांक्षा सिंह, एम. पुष्पा, नवनीत कौर, वी. निशा, टीएस प्रकाश राव, शिवेन्द्र निषाद, देवेन्द्र यादव, निर्मल सिंहा, ए. संतोष कुमार और आशुतोष सिंह का मानना है कि रेलवे में जैसी सुविधाएं हैं वैसी सुविधाएं कहीं नहीं हैं। कम उम्र के खिलाड़ियों के लिए खुले हैं दरवाजे:- रेलवे में जहां सीनियर खिलाड़ियों को नौकरी आसानी से मिल जाती है, वहीं जूनियर खिलाड़ियों को भी नौकरी मिलने में परेशानी नहीं होती है। इन जूनियर खिलाड़ियों को स्पोट्र्स टेलेंट के तहत नौकरी दी जाती है। 16 साल से 18 साल के इन खिलाड़ियों का चयन रेलवे बोर्ड की एक समिति राष्ट्रीय चैंपियनशिप में जाकर ही करती है। ऐसे खिलाड़ियों की भर्ती के लिए कोई विज्ञापन नहीं निकाले जाते हैं। ऐसे ही टेलेंट सर्च के तहत छत्तीसगढ़ की अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी सबा अंजुम को नौकरी मिली थी। एक साथ 11 इंक्रीमेंट:- रेलवे में काम करने वाले खिलाड़ी बताते हैं कि रेलवे एक ऐसा विभाग है जहां पर चार से लेकर 11 इंक्रीमेंट एक साथ मिल जाते हैं। कोई खिलाड़ी अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत जाता है तो उनको एक साथ 11 इंक्रीमेंट मिल जाते हैं। ऐसे में खिलाड़ी का वेतन तीन हजार रुपए ज्यादा हो जाता है। राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक विजेता खिलाड़ियों को चार से सात इंक्रीमेंट एक साथ वेतन में जोड़कर देने का प्रावधान है। शिविर के लिए भी छुट्टी मिले:- एक तरफ जहां खिलाड़ी रेलवे में मिलने वाली सुविधाओं को बखान करते नहीं थकते हैं, वहीं उनको इस बात का जरूर मलाल है कि प्रशिक्षण शिविरों के लिए उनको छुट्टी नहीं मिल पाती है। खिलाड़ियॊ का एक स्वर में ऐसा मानना है कि शिविरों के लिए भी छुट्टी देनी चाहिए। वैसे चैंपियनशिप में जाने के लिए हमेशा छुट्टी मिल जाती है। खिलाड़ी बताते हैं कि ज्यादातर जोन में खिलाड़ियों को आधे समय ही काम करना पड़ता है बाकी का समय अभ्यास के लिए मिलता है। इस समय दुर्ग में कार्यरत खिलाड़ियों को ही ज्यादा परेशानी हो रही है।

फर्जी प्रमाणपत्रों का धंधा- खेल को कर रहा है गन्दा

राजधानी के खेल विभाग के दफ्तर में एक ग्रामीण खिलाड़ी अपने पिता के साथ आता है और कुछ प्रमाणपत्रों के साथ एक आवेदन देकर अपने को जिले और राज्य की क्रिकेट टीम में शामिल करने की मांग करता है। जब खिलाड़ी के प्रमाणपत्र देखे जाते हैं तो साफ पता चलता है कि उसके पास स्कूल की राष्ट्रीय चैंपियनशिप के जो प्रमाणपत्र हैं सब फर्जी हैं। उस खिलाड़ी का तो यह भी नहीं मालूम है कि राष्ट्रीय चैंपियनशिप क्या है। ऐसे कई ग्रामीण खिलाड़ी हैं जिनको अपना शिकार बनाकर फर्जी प्रमाणपत्र बेचने का धंधा चलाया जा रहा है। नेताजी स्टेडियम में रायपुर जिले के खेल विभाग का दफ्तर है। इस दफ्तर में मंदिर हसौद के गांव खुटेरी का एक युवक अपने पिता के साथ आया और अपने को क्रिकेट का खिलाड़ी बताते हुए जिले की टीम के साथ राज्य की टीम में भी स्थान दिलाने की बात करने लगा। चूंकि खेल विभाग इस मामले में कुछ नहीं कर सकता है ऐसे में वहां उसके पिता को सुझाव दिया जाता है कि वे क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों से मिल लें। इस बीच जब खिलाड़ी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाणपत्रों पर नजरें जाती हैं । तो मालूम होता है कि उसने जो राष्ट्रीय स्कूली खेलों के प्रमाणपत्र अपने आवेदन के साथ लगाए हैं वो फर्जी हैं। जब उनसे इन प्रमाणपत्रों के बारे में पूछा जाता है तो वे बताते हैं कि ये तो उनको गुढ़ियारी के एक शिक्षक किसी यादव ने दिए हैं। इसके एवज में श्री यादव को क्या दिया गया के सवाल पर पहले तो वे कुछ बताने को तैयार नहीं होते हैं,जब उनको यह कहा जाता है कि अगर वे इन फर्जी प्रमाणपत्रों के साथ पकड़े गए तो सबसे पहले वही फंसेंगे तो वे बताते हैं कि उन्होंने इन प्रमाण पत्रों के बदले में श्री यादव को कुछ रकम दी थी। प्रमाणपत्रों के फर्जी होने के सबूत खिलाड़ी के पास जो प्रमाणपत्र थे उन प्रमाणपत्रों को फर्जी साबित करने के लिए यही काफी है कि एक तो उनमें राष्ट्रीय स्कूली खेलों के आयोजन का स्थान नहीं लिखा गया है। इसके अलावा उनमें से एक प्रमाणपत्र में जहां 2001 में से एक पेन से लिखा गया है, वहीं 2003 के प्रमाणपत्र में भी तीन पेन से लिखा गया है। इसके अलावा प्रमाणपत्र में खिलाड़ी के नाम के साथ बाकी जानकारी जिस पेन से भरी गई है, उसी पेन से स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सतपाल सिंह के साथ शिक्षा विभाग के संचालक के हस्ताक्षर भी किए गए हैं। इन प्रमाणपत्रों के बारे में जानकारी देकर जब शिक्षा विभाग के सहायक संचालक खेल एसआर कर्ष से जानकारी चाही गई तो उन्होंने साफ कहा कि निश्चित ही ये प्रमाणपत्र फर्जी हैं। राष्ट्रीय चैंपियनशिप के प्रमाणपत्रों में किसी भी आयोजन का स्थान जरूर लिखा रहता है साथ ही आयोजन के वर्ष का भी पूरा उल्लेख रहता है वर्ष को कभी पेन से लिखने की जरूरत नहीं पड़ती है, उन्होंने कहा कि निश्चित ही वे प्रमाणपत्र फर्जी हैं। बड़े पैमाने पर होता है धंधा:- खेल से जुड़े जानकारों का साफ कहना है कि प्रदेश में फर्जी प्रमाणपत्रों का धंधा काफी समय से बड़े पैमान पर चल रहा है। धंधेबाज कई ऐसे लोगों को राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के प्रमाणपत्र दिलाते हैं जिनको नौकरी में ऐसे प्रमाणपत्रों की जरूरत पड़ती है। इसी के साथ धंधेबाज सीधे-सादे ग्रामीण खिलाड़ियॊ को राज्य की टीम में स्थान मिल जाने की बात कह के उनको मुर्ख बनाने का काम करते हैं। राज्य की टीम में स्था बनाने के मोह में खिलाड़ी प्रमाणपत्र खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। एक बार तो एक खिलाड़ी को खेल विभाग का ऐसा प्रमाणपत्र दिया गया था जो था महिला खेलों का पर प्रमाणपत्रों लेने वाला पुरुष खिलाड़ी था। फर्जी प्रमाण पत्रों का धंधा स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज और ओपन वर्ग में चल रहा है। कई मामले सामने आने के बाद भी कोई इसकी शिकायत नहीं करता है इसलिए यह धंधा अब तक चल रहा है।

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

क्रिकेटरों का सजा बाजार - खेल बना व्यापार


एक समय जेंटलमैन का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट अब आज एक तरफ जहां मनी-मैन का खेल बन गया है, वहीं क्रिकेटरों का बाजार भी सजने लगा है। क्रिकेटरों का जो बाजार सज रहा है उसको सजाने का काम किसी और ने नहीं बल्कि भारत ने किया है। वैसे कहा तो यही जाता है कि खेल भावना के मामले में भारत नंबर वन रहा है, लेकिन अब ऐसी कोई बात कम से कम भारतीय टीम में नजर ही नहीं आती है। आज क्रिकेटरों में टीम भावना के अभाव के साथ देश प्रेम का जज्बा भी कम ही नजर आता है। आज के क्रिकेटर तो बस पैसों के पीछे ही भाग रहे हैं। पैसों के पीछे भागना गलत नहीं है, लेकिन पैसों की खातिर खेल को ताक पर रखना जरूर गलत है और क्रिकेट के साथ यही हो रहा है। जब से क्रिकेट में आईपीएल की घुसपैठ हुई है क्रिकेट जहां व्यापार बन गया है, वहीं यह एक भौंड़ा मनोरंजन बनकर रह गया है। क्रिकेट सिनेमा का तीन घंटे का ऎसा शो बन गया है जिसमें दर्शकों को लुभाने के लिए सारा मसाला रहता है। अगर यही हाल रहा तो क्रिकेट को बर्बादी की तरफ जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल ने जब से क्रिकेट को अपनी गोद में बिठाने का काम किया है क्रिकेट एक गलत रास्ते की तरफ चल पड़ा है। यह बात शायद उन लोगों को नागवर लगे जिन लोगों ने क्रिकेट को आईपीएल से जोड़ने का काम किया है। लेकिन यह कटु सच है कि आज आईपीएल के कारण क्रिकेट में ऐसा कुछ होने लगा है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। क्रिकेट का आज एक दूसरा ही रूप सबके सामने आया है। यह तो किसी ने नहीं सोचा था कि क्रिकेटरों को भी सरे बाजार खड़े करके उसी तरह से बेचने का काम किया जाएगा जैसा काम एक समय में गुलामों को बेचने का किया जाता था। गुलाम शब्द से जरूर किसी को आपत्ति हो सकती है, लेकिन क्रिकेटर जिस तरह से अपने लीग टीमों के आकाओं के इशारों पर नाचते हैं उससे उनको गुलाम ही कहा जा सकता है। फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेटर आज खेल के कम और पैसॊ के गुलाम यादा हो गए हैं। अगर क्रिकेटर खेल के मुरीद होते तो जरूर उनके लिए गुलाम शब्द का अर्थ खास हो जाता और जब किसी क्रिकेटर को खेल का गुलाम कहा जाता तो उसका सीना चौड़ा हो जाता। लेकिन यहां मामला उल्टा है। यह सोचने की बात है कि एक समय वह भी था जब हर देश का क्रिकेटर बस और बस अपने देश के लिए खेलता था लेकिन अब न जाने वह समय कहां गुम हो गया है। जब भारत-पाक के बीच मैच होता था तो लगता था यह मैच नहीं एक जंग है। इस जंग में जीतने के लिए एक तरफ जहां सारे भारतीय क्रिकेटर अपना सब कुछ दांव पर लगा देते थे, वहीं पाकिस्तानी क्रिकेटर भी पीछे नहीं रहते थे। सभी में बस अपने देश के लिए जीतने का जुनून रहता था। क्रिकेटरों की बात क्या दोनों देशों का एक-एक देशवासी मैच से ऐसे जुड़ जाता था मानो यह उसके लिए जीने-मरने का सवाल हो। क्यों न हो आखिर खेल का असली मतलब तो यही है कि आप अपने देश और देशवासियों की भावनाओं के लिए खेलें। जैसा जुनून भारत-पाक के मैच में होता था वैसा ही जुनून तब आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच होने वाली एशेज सीरीज के मैचों में नजर आता था। इनके बीच एशेज की गाथा को सब जानते हैं। कैसे इंग्लैंड की टीम के हारने पर उसको राख भेंट की गई थी और यहां से शुरू हुई थी एशेज की शृंखला। यह देशवासियों का जबा था जो वे अपनी टीम को हारते नहीं देख पाए थे। इसके बाद से एशेज को जीतना दोनों टीमों ने अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। दोनों देश की टीमें किसी भी कीमत पर अपने देशवासियॊ को नाराज नहीं करना चाहती थी। इन उदाहरणों से यह साबित होता है कि वास्तव में क्रिकेट खेलने वाले देशों के देशवासियों में क्रिकेट किस तरह से रचा बसा है। किसी भी देश के देशवासी अपनी टीम को हमेशा जीतते देखना चाहते हैं। कई बार ऐसा हुआ है जब भारत या पाकिस्तान की टीम हारकर घर लौटी है तो टीम के खिलाड़ियों को अपने देशवासियों के गुस्से का सामना करना पड़ा है। इतना सब होने के बाद अचानक क्रिकेट में एक ऐसा बदलाव आया है जिसकी कल्पना करना आसान नहीं था। आज क्रिकेट को पूरी तरह के पेशेवर बना दिया गया है। बात यहां पर मात्र पेशेवर की नहीं है पेशेवर मामले में देखा जाए तो आज कंगारू टीम इस मामले में पहले नंबर पर है। यह कंगारू टीम का पेशेवर रूख ही है जिसके कारण वह विश्व की नंबर वन टीम है। लेकिन इस पेशेवर रूख की वजह से टीम ने कभी भी अपने देशवासियों को नाराज नहीं किया है। लेकिन लगता है कि अब कंगारू टीम के खिलाड़ी भी आईपीएल की आंधी में उड़ गए हैं। वैसे अब तक तो यह बात सामने नहीं आई है कि कंगारू क्रिकेटर अपने देश हित को ताक पर रखकर कोई समझौता करेंगे। वैसे आस्ट्रेलिया के साथ किसी भी देश के क्रिकेटरों को लेकर ऐसी बात सामने नहीं आई है लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि आज जिस तरह से लगातार क्रिकेट हो रहा है उसका असर तो पड़ ही रहा है। एक तरफ अपने देश की टीम से खेलना फिर खाली समय में आईपीएल के लिए खेलना। ऐसे में क्रिकेटर कैसे दोनों तरफ न्याय कर सकते हैं। आईपीएल के लिए जिस टीम से क्रिकेटरों को खेलना है उसके लिए टीमॊ के आका लाखों नहीं करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे में वे तो जरूर चाहेंगे कि वे जिस खिलाड़ी पर दांव लगा रहे हैं कि वे खिलाड़ी अपने बल्ले या फिर गेंद का कमाल दिखाकर उनकी टीम को जीत तक ले जाने का काम करें। फिर यहां पर खिलाड़ियों का अपना स्वार्थ भी रहता है। स्वार्थ यह कि जब वे अच्छा खेलेंगे तो उनकी बोली भी यादा लगेगी। यह बात उनके साथ अपने देश की टीम से खेलते समय लागू नहीं होती है। जब कोई खिलाड़ी अपने देश की टीम से खेलता है तो उसको कुछ मैचों में खराब प्रदर्शन करने से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता है। भले आज सभी देश इस मामले में पेशेवर हो गए हैं लेकिन इसके बाद भी कम से कम ऐसे खिलाड़ियों को कोई बाहर का रास्ता दिखाने का काम नहीं कर पाता है जिनका नाम बड़ा है। बड़े नाम का ही तो खिलाड़ी गलत फायदा उठाते हैं। अगर बड़े-छोटे का अंतर समाप्त करके खराब प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया जाए तो जरूर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। ऐसे खिलाड़ियों के मामले में भारत नंबर वन पर है। भारतीय टीम के स्टार खिलाड़ियों को चयनकर्ता लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाते हैं। इसके विपरीत कई खिलाड़ी ऐसे रहे हैं जिनको टीम में लिया जाता है, पर उनको खेलने का मौका दिए बिना ही बाहर भी कर दिया जाता है। ऐसे में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि बड़े खिलाड़ी ईमानदारी से खेलेंगे। यही वजह है कि खिलाड़ी अपने देश की टीम पर कम और आईपीएल की अपनी टीम पर ज्यादा ध्यान देते हैं। आईपीएल बनाम तीन घंटे का सिनेमा:- आईपीएल का आगाज जब से हुआ है क्रिकेट एक तरह से तीन घंटे का ऐसा सिनेमा बनकर रह गया है जिसको चलाने के लिए निर्माता-निर्देशक उसमें सारा मसाला भर देते हैं। आईपीएल में भी चूंकि फिल्मी सितारों की घुसपैठ है तो क्रिकेट को भी सिनेमा जैसा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। आईपीएल के पिछले आयोजन पर नजरें डालने से साफ मालूम होता है कि कैसे चियर्स गर्ल्स के कारण क्रिकेट के साथ अश्लीलता जुड़ गई थी। बाद में इस पर कोर्ट के आदेश से थोड़ा सा अंतर आया। वैसे देखा जाए तो क्रिकेट जैसे खेल में चियर्स गर्ल्स का क्या काम। मैदान में दर्शक मैच देखने जाते हैं इतना समय कहां रहता है कि लोग किसी तरह का नाच देख सकें। लेकिन दर्शकों का टेस्ट बदलने का काम किया जा रहा है। खेल को मनोरंजक बनाना गलत नहीं है। ओलंपिक और एशियाड जैसे बड़े आयोजनों में भी कार्यक्रम होते हैं लेकिन सब कुछ सभ्यता और संस्कृति के दायरे में होता है, किसी भी ऐसे आयोजन में कभी अश्लीलता का आरोप नहीं लगा। लेकिन आईपीएल के आयोजन में पहले ही कदम पर अश्लीलता का आरोप लग गया है। वास्तव में कम कपड़ों की लड़कियों को दर्शेकों के सामने रखकर आईपीएल के आका क्या करना चाहते हैं समझ के परे है। लगता है कि उनको उन क्रिकेटरों और उनके खेल पर भरोसा ही नहीं है जिन पर वे करोड़ों का दांव लगाते हैं। अगर भरोसा है तो फिर क्रिकेट को तीन घंटे का सी ग्रेड का सिनेमा बनाने का काम क्यों किया जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो क्रिकेट सिनेमा बन जाएगा और उसे बर्बाद होने से कोई नहीं रोक पाएगा। वैसे भी क्रिकेट को एक तरफ बर्बाद करने का काम मैच फिक्सिंग ने किया है। दर्शक आज क्रिकेटरों पर भरोसा कम करने लगे हैं। ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि क्रिकेटर पैसों के पीछे भागना कम करके अपने देश के लिए खेलने पर ध्यान यादा दें। कहीं ऐसा न हो कि क्रिकेट के खेल से लोग ऊब जाए और जिसे खेल की दुनिया दीवानी है उस खेल पर ही ताला लग जाए।


नई खेल मंत्री - नई सोच - नई आशाएं


शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

हर तरफ क्रिकेट का ही जलवा


छत्तीसगढ़ की राजधानी के नेताजी स्टेडियम में एक तरफ जहां स्वर्ण कप नेहरू हॉकी की तैयारियां चल रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ मैदान के एक किनारे छोटे-छोटे बच्चो क्रिकेट खेलने में मस्त हैं। यह सिर्फ एक स्टेडियम का हाल नहीं है। आज जहां देखो बस क्रिकेट का ही जलवा नजर आता है। घर के ड्राइंगरूम से लेकर मैदान तक बस क्रिकेट और क्रिकेट के अलावा कुछ नहीं है। क्रिकेट को तो अब भारत में अघोषित तौर पर राष्ट्रीय खेल भी मान लिया गया है। भारत की क्रिकेट टीम इस समय श्रीलंका के दौरे पर है और धोनी की सेना वहां धमाल कर रही है। इधर धोनी की सेना धमाल कर रही है तो इधर अपने छत्तीसगढ़ में भी हर तरफ हर कोई क्रिकेट का जानने वाला या फिर न भी जानने वाला क्रिकेट में कमाल कर रहा है। राजधानी का ऐसा कोई मैदान नहीं है जहां पर रोज सुबह बड़ी संख्या में बच्चो और बड़े बल्ला लिए गेंदों पर चौके-छक्के लगाते नजर नहीं आते हैं। अपने हॉकी के एक मात्र नेताजी स्टेडियम की बात करें तो यहां पर इन दिनों अखिल भारतीय स्वर्ण कर नेहरू हॉकी की तैयारी चल रही है। एक तरफ आयोजक मैदान बनाने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ एक किनारे में कई बच्चो टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलने में मस्त है। इन बच्चों को इस बात का दुख है कि जब हॉकी मैचों का प्रारंभ होगा तो उनको क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिलेगा। वैसे हॉकी के इस स्टेडियम में हॉकी कम क्रिकेट का खेल ज्यादा होता है। कुछ दिनों पहले ही नगर निगम की टीमें भी यहां पर क्रिकेट खेल रहीं थीं। सड़क पर क्रिकेट आम:- राजधानी में जब भी किसी कारण से हड़ताल होती है और दुकानों में ताले लगते हैं तो आस-पास रहने वाले बच्चों की चांदी हो जाती है। बच्चों को सड़क पर क्रिकेट खेलने का मौका मिल जाता है। वैसे शहर का कोई भी ऐसा वार्ड और कालोनी नहीं है जहां पर बच्चो सड़कों पर क्रिकेट खेलते नजर नहीं आते हैं। कुछ समय पहले जब पेट्रोल की मारा-मारी हुई थी और कई पेट्रोल पंपों में ताले लग गए थे तो पेट्रोल पंपों के कर्मचारी समय काटने के लिए क्रिकेट खेलते ही नजर आए थे। खेतों-पहाड़ों में भी क्रिकेट:- क्रिकेट की दीवानगी महज शहरों तक सीमित है ऐसा नहीं है। इसकी दीवानगी शहरों से ज्यादा तो गांवों में नजर आती है। गांवों में कोई बच्चा देशी खेल कबड्डी, वालीबॉल, फुटबॉल, कुश्ती खेलते भले नजर न आए पर क्रिकेट खेलते जरूर नजर आएगा। गांवॊ में मैदान न होने के कारण गांवों में खेतॊं को ही मैदान बना दिया जाता है और बड़े मजे से मस्त होकर बच्चो चौके-छक्के लगाते नजर आते हैं। गांवों के खेतों के बाद पहाड़ों की तरफ रूख करें तो जहां इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चो क्रिकेट खेलते हैं, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों के धार्मिक स्थलों डोंगरगढ़, भौरमदेव, खल्लारी, रतनपुर, जतमई या फिर कोई भी धार्मिक स्थल हो यहां जब परिवार वाले पिकनिक मानने जाते हैं साथ में बल्ला और गेंद जरूर ले जाते हैं और पहाड़ी में ही शुरू हो जाते हैं क्रिकेट का मजा लेने। ऐसा ही उद्यानों में भी होता है। कुल मिलाकर ऐसा कोई स्थान नजर नहीं आता है जहां पर क्रिकेट की घुसपैठ न हो। क्रिकेट स्टेडियम भी पहले :- बना राजधानी रायपुर में एक तरफ जहां स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स दो दशक के बाद भी अब तक नहीं बन सका है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की नई राजधानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम बन गया है। न सिर्फ यह स्टेडियम बन गया है, बल्कि यहां पर भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ियॊ का एक मैच भी करवाया गया। जब मैच हुआ तो इस मैच को देखने के लिए जिस तरह से एक लाख से ज्यादा दर्शकों का सैलाब आया उससे भी यह मालूम होता है कि छत्तीसगढ़ में क्रिकेट की कितनी दीवानगी है। मैच में खेलने आए खिलाड़ी एक मैत्री मैच ही इतने ज्यादा दर्शक देखकर आश्चर्य में पड़ गए थे। विकास का रास्ता भी दिखाता है क्रिकेट:- क्रिकेट के बारे में विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह जिस राज्य में ज्यादा खेला जाता है, उसको विकास का रास्ता भी दिखाता है। एक समय भारतीय टीम में मुंबई के खिलाड़ियों का दबदबा तो मुंबई का विकास हुआ। इसके बाद दिल्ली का नंबर आया, फिर बंगाल का और फिर अब उत्तर प्रदेश और झार‌‌खंड का नंबर है। इन राज्यों में विकास की गंगा बह रही है। छत्तीसगढ़ से भले एक राजेश चौहान के बाद कोई खिलाड़ी भारतीय टीम में स्थान नहीं बना सका है, लेकिन यहां पर क्रिकेट की दीवानगी किसी भी राज्य की तुलना में काफी ज्यादा है। और यह दीवानगी भी राज्य को विकास का रास्ता दिखाने का काम कर सकती है।

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

खेल नीति में व्यापक फेरबदल होगा


छत्तीसगढ़ की नई खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी ने खेल नीति में व्यापक फेरबदल की बात कही है। वर्तमान खेल नीति में जिन बिन्दुओं पर अमल नहीं हो रहा है और जो बिन्दु काम के नहीं है उनको समीक्षा करके हटाया जाएगा। प्रदेश की खेल नीति में काफी समय से बदलाव की मांग हो रही है। इस खेल नीति को बनाने के बाद एक बार भी इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। पिछले साल इसकी समीक्षा करके इसमें बदलाव किए जाने की बात सामने आई थी, लेकिन इसकी समीक्षा नहीं हो सकी और जिसके कारण इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। इधर प्रदेश में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनने पर सुश्री लता उसेंडी को खेल मंत्री बनाया गया है। उन्होंने खेल मंत्री बनने के बाद खेलों की दिशा में काफी गंभीरता से ध्यान देना प्रारंभ किया है। पहले कदम पर उन्होंने प्रदेश में खेलों के विकास के लिए खेल संघों के पदाधिकारियों से चर्चा की। इस कड़ी में आगे भी खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों से भी चर्चा की जानी है। खेल मंत्री का खेल नीति के बारे में ऐसा मानना है कि इतने ज्यादा बिन्दुओं की खेल नीति का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की खेल नीति में करीब 45 बिन्दु रखे गए हैं। उन्होंने कहा कि इतने बिन्दुओं पर एक तो अमल नहीं हो पाएगा, दूसरे इन बिन्दुओं में कई बिन्दु काम के नहीं हैं। कौन से बिन्दु काम के नहीं हैं, पूछने पर उन्होंने कहा कि इसकी जानकारी समीक्षा करके ली जाएगी और फिर इन बिन्दुओं को हटा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि खेल नीति कम से कम बिन्दुओं की बनाई जाएगी ताकि हर बिन्दु पर अमल हो सके। उन्होंने कहा कि प्रदेश को खेलॊ में कैसे राष्ट्रीय स्तर पर नंबर वन बनाया जाए इसको ध्यान में रखते हुए उनका विभाग काम करेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के खिलाड़ियों को हर तरह की सुविधा देना हमारी सरकार का पहला मकसद है।

कमलेश मेहता से खेल की बारीकियां सीखने जाएंगे प्रदेश के खिलाड़ी



पूर्व अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस खिलाड़ी और 10 बार के राष्ट्रीय चैंपियन कमलेश मेहता से खेल की बारीकियां सीखने के लिए प्रदेश के खिलाड़ी उनकी अकादमी में जाएंगे। वहां जाने वाले खिलाड़ियों में से आधे खिलाड़ियों का खर्च प्रदेश टेबल टेनिस संघ उठाएगा। इसी के साथ संघ ने ग्रीष्मकालीन शिविर के लिए भी राष्ट्रीय कोच बुलाने का फैसला किया है। यह जानकारी देते हुए प्रदेश टेबल टेनिस संघ के अध्यक्ष शरद शुक्ला और महासचिव अमिताभ शुक्ला ने बताया कि प्रदेश के खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाने के लिए प्रदेश संघ एक योजना बनाकर काम कर रहा है। इस योजना के तहत जहां इस बार राजधानी में लगने वाले ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर के लिए राष्ट्रीय फेडरेशन से एक राष्ट्रीय कोच मांगा गया है, वहीं कुछ खिलाड़ियों को एक बार फिर से कमलेश मेहता की अकादमी में प्रशिक्षण के लिए भेजने का फैसला किया गया है। वैसे राष्ट्रीय कोच के रूप में कमलेश मेहता को छत्तीसगढ़ बुलाने का प्रयास था, लेकिन वे ग्रीष्मकालीन शिविर के समय व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पा रहे हैं। उन्होंने शीतकालीन सत्र में आने की बात कही है। ऐसे में उनकी बड़ौदा की उनकी अकादमी में प्रशिक्षण लेने के लिए प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा खिलाड़ियों को भेजने की योजना है। इन खिलाड़ियों में से कम से कम आधे खिलाड़ियों का खर्च संघ उठाएगा। श्री शुक्ला ने पूछने पर बताया कि श्री मेहता की अकादमी में एक खिलाड़ी के प्रशिक्षण का खर्च पांच हजार रुपए आता है। पिछले साल यहां के दो खिलाड़ी सागर घाटगे और अंशुमन राय अपने खर्च पर उनसे प्रशिक्षण लेने गए थे। लेकिन इस बार ज्यादा खिलाड़ियों को भेजने का फैसला संघ ने किया है। उन्होंने बताया कि संघ चाहता है कि प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करें और प्रदेश के लिए पदक जीतने का काम कर सकें।

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

खिलाड़ियों को देंगे सामान- हर खेल में डालेंगे जान



भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई की योजना है कि भले ही हर खेल को पूरी मदद न मिल सके लेकिन राज्य के पदक विजेता खिलाड़ियों को जरूर खेल सामान दिए जाएंगे। खिलाड़ियों को सामान मिलने से उनके खेल में भी जान आएगी। साई जहां प्रदेश में यह काम करेगा, वहीं राजनांदगांव में 40 करोड़ की लागत से एक बड़ा खेल परिसर भी बनाने जा रहा है। इस खेल परिसर में एक दर्जन से ज्यादा खेलों को रखा जाएगा। इसी के साथ यहां पर 100 खिलाड़ियों के रहने की भी व्यवस्था रहेगी। साई छत्तीसगढ़ में खेलों के विकास में हर तरह की मदद करने को तैयार है। यहां कई खेलों के डे बोर्डिंग सेंटर भी खोले जाएंगे। ये बातें साई के क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडू ने कहीं। उन्होंने बताया कि उनका यह पहला छत्तीसगढ दौरा है और इस दौरे में यह बात सामने आई है कि यहां पर खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। ऐसे में साई इन सभी प्रतिभाओं को सामने लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। उन्होंने बताया कि उनके दौरे का मुख्य मकसद राजनांदगांव में बनने वाले खेल परिसर के लिए जमीन का अधिग्रहण करना था। यह काम सोमवार को पूरा हो गया है। सरकार ने साई को वहां पर 15 एकड़ जमीन दे दी है।

एस्ट्रो टर्फ ‍सिन्थॆटिक ट्रेक लगेगा:- खेल परिसर के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इस परिसर में जहां हॉकी का सुपर एस्ट्रो टर्फ लगाया जाएगा, वहीं एथलेटिक्स के लिए 400 मीटर का ‍सिन्थॆटिक ट्रेक भी लगाया जाएगा। इन दोनों योजनाओं पर करीब 8 से 10 करोड़ का खर्च आएगा। इसके अलावा परिसर में एक मल्टीप्लेक्स हॉल बनेगा। इस हाल में कई बास्केटबॉल, हैंडबॉल, वालीबॉल,जूडो, कुश्ती, जिम्नास्टिक, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, कबड्डी के साथ मार्शल आर्ट से जुड़े खेलों के लिए मैदान रहेंगे। उन्होंने बताया कि इंडोर में इन मैदान के साथ ही आउटडोर में भी बास्केटबॉल और वालीबॉल के अलावा फुटबॉल के मैदान बनाए जाएंगे। उन्होंने पूछने पर बताया कि छत्तीसगढ़ के 15 खेलों ने राष्ट्रीय खेलों में खेलने की पात्रता प्राप्त की है, उन खेलॊ का समावेश तो यहां रहेगा ही इसके अलावा उन खेलों पर भी ध्यान दिया जाएगा जिनमें पदक की संभावना है। इस पूरी योजना पर करीब 40 करोड़ खर्च आएगा जो साई करेगा। तीरंदाजी की विशेष योजना:- श्री नायडू ने बताया कि परिसर में तीरंदाजी को लेकर विशेष योजना प्रारंभ की जाएगी। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी में है कि इस खेल में छत्तीसगढ से काफी अच्छे खिलाड़ी निकल सकते हैं। यहां के आदिवासी क्षेत्र बस्तर और सरगुजा में इन खेलॊ की प्रतिभाएं हैं। उन्हॊंने बताया कि साई चाहता है कि ओलंपिक में देश के तीरंदाज पदक दिलाने का काम करें। इसके लिए लिम्बाराम को प्रशिक्षक बनाया गया है। उनको यहां प्रशिक्षण देने के लिए भेजा जाएगा। डे बोर्डिंग सेंटर भी खोलेंगे:- श्री नायडू ने बताया कि जहां एक तरफ राजनांदगांव में खेल परिसर की योजना है, वहीं प्रदेश में कई स्थानों पर डे बोर्डिंग की भी योजना है। इसके तहत सेंटर ऑफ एक्सलेंसी योजना में बास्केटबॉल में लड़कियों के लिए भिलाई और लड़कॊ के लिए राजनांदगांव, हैंडबॉल में दोनों वर्गों के लिए सेंटर भिलाई में रहेगा। रायपुर में वालीबॉल का सेंटर रहेगा। जूडो का सेंटर भिलाई में रखा जाएगा। इसी तरह से फुटबॉल के सेंटर के लिए दिल्ली पब्लिक स्कूल रायपुर से बात चल रही है। तैराकी, तीरंदाजी और एथलेटिक्स के लिए बस्तर, कबड्डी, हॉकी और वालीबॉल के लिए जशपुर, जिम्नास्टिक, ताइक्वांडो के लिए बिलासपुर को प्राथमिकता में रखा गया है। इन सेंटरों में 14 से 18 साल तक के खिलाड़ी शामिल हो सकेंगे। इस योजना पर पांच से छह करोड़ खर्च आएगा। स्कूलों को भी लिया जाएगा गोद:- श्री नायडु ने बताया कि साई की एक नई योजना के तहत छत्तीसगढ़ के 18 जिलों के एक-एक स्कूल को गोद लेने की योजना है। जिस स्कूलों में जिन खेलों की सुविधाएं हैं वहां पर उन खेलों के डे बोर्डिंग सेंटर प्रारंभ किए जाएंगे। हर स्कूल में दो से तीन खेलॊं को रखा जाएगा। इसी के साथ यह भी देखा जाएगा कि किसी भी खेल का पदक विजेता खिलाड़ी किसी सुविधा से वंचित न हों। हर खेल के पदक विजेता को साई एक तरह से गोद लेकर उनको खेलने का सामान देगा। उन्होंने बताया कि साई के सेंटर से जुड़ने वाले खिलाड़ियों को जहां सुविधाएं मिलेंगी, वहीं उनको विदेश खेलने जाने का मौका मिलता है तो उसका भी सारा खर्च साई करेगा। इस योजना में 14 से 16 साल के खिलाड़ियों को शामिल किया जाएगा, यहां से निकलने वाले प्रतिभाशाली खिलाड़ी खेल परिसर में स्थान प्राप्त कर लेंगे। तीन चरणों में बनेगा खेल परिसर:- श्री नायडु ने पूछने पर बताया कि राजनांदगांव के खेल परिसर का काम मई तक प्रारंभ हो जाएगा। इस परिसर के पूरा करने के लिए तीन चरणों में काम होगा। पहले चरण में एस्ट्रो टर्फ के साथ अन्य मैदानों को बनाने की योजना है ताकि प्रशिक्षण का काम प्रारंभ हो सके। पहला चरण अगले साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण सिन्थॆटिक ट्रेक के साथ मल्टीप्लेक्स को पूरा किया जाएगा। तीसरे और अंतिम चरण में वहां के रहने के लिए मकानों का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द इसको पूरा करना ही हमारा लक्ष्य होगा। उन्हॊंने कहा कि पहले चरण का काम तो 18 माह में पूरा हो जाएगा। इसके बाद अगले चरणों के लिए भी एक समय सीमा तय की जाएगी। सभी कोच स्थानीय हॊंगे:- खेल परिसर में रखे जाने वाले प्रशिक्षकों के बारे में उन्होंने पूछने पर खुलासा किया कि सभी प्रशिक्षक स्थानीय होंगे। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ में कई खेलों के एनआईएस कोच हैं। जिन खेलों में नहीं हैं उनमें अगर छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी एनआईएस बन जाते हैं तो उनको पहली प्राथमिकता मिलेगी। मुख्यमंत्री खेलॊं को बढ़ाने गंभीर:- श्री नायडु ने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बारे में कहा कि वे तो उनसे महज पांच मिनट के लिए ही मिलने गए थे, पर उनसे खेलों पर आधे घंटे से भी ज्यादा समय तक चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की सोच जिस तरह से खेलों को बढ़ाने की है, उससे यह तय है छत्तीसगढ़ को खेलों में आगे बढ़ाने से कोई नहीं रोक सकता है। उन्हॊंने बताया कि उनको मुख्यमंत्री से ही इस बात की जानकारी हुई है कि राजधानी के बूढा तालाब के पास एक स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स बन रहा है। इसी के साथ बिलासपुर में एक बड़ा खेल परिसर बन रहा है। इन दोनों में साई से जो भी मदद सरकार चाहेगी वह की जाएगी। इन परिसरों को बनाकर अगर साई को दे दिया गया तो बाकी सारा काम हमारा होगा। उन्हॊंने खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी के बारे में भी कहा कि उनका रुझान भी खेलों के प्रति नजर आया। इसी के साथ यहां की सरकार जिस तरह से खिलाड़ियों को पुरस्कार में भारी राशि दे रही है और यहां की खेल नीति जिस तरह से बनी है उससे जरूर छत्तीसगढ़ काफी आगे जाएगा। पदक जीतने वाले खिलाड़ी तो गरीब होते हैं:- श्री नायडू ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं कि पदक जीतने वाले खिलाड़ी गरीब और मध्यम वर्ग के होते हैं। उन्होंने कहा कि पदक जीतने केलिए भारी मेहनत की जरूरत होती है और ऐसी मेहनत को गरीब ही कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि चूंकि वे खुद एक खिलाड़ी रहे हैं इसलिए हर बात को अच्छी तरह से समङा सकते हैं। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र में ऐसी मेहनत करने वाले खिलाड़ियों की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि बस्तर और सरगुजा से अच्छे तीरंदाज और एथलीट निकल सकते हैं। इनके अगर सही प्रशिक्षण मिले तो ये छत्तीसगढ़ के साथ देश का नाम रौशन कर सकते हैं। ऐसी प्रतिभाओं को खेल परिसर में लाकर निखारने का काम साई करेगा।

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

नही हैं पैसे-अच्छे खिलाड़ी आए कैसे




50 साल पुराने नेहरू स्वर्ण कप हॉकी के आयोजक परेशानी में


देश के अच्छे खिलाड़ी तो अच्छी सुविधाओं के साथ आने-जाने के खर्च के अलावा भारी पैसों की मांग करते हैं। ऐसे में भारी आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हमारे एथलेटिक्स क्लब के पास इतने पैसे कहां है जो देश के अच्छे खिलाड़ियों को चैंपियनशिप में बुलाया जा सके। यह बात कहते हैं देश की सबसे पुरानी हॉकी चैंपियनशिप नेहरू स्वर्ण कप रायपुर के आयोजक। इनको इस बात का मलाल हैं कि देश की इस 50 साल पुरानी हॉकी चैंपियनशिप को ठीक से मदद नहीं मिल पाती है जिसके का अच्छे खिलाड़ियों को नहीं बुला पाते हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए क्लब के पुराने सदस्य हाजी कुतबुद्दीन, हफीज यजदानी, इदरीश बारी , अजीज मेमन, लाल बादशाह बताते हैं कि जब पहले यहां पर चैंपियनशिप होती थी तो यहां पर देश के दिग्गज खिलाड़ी खेलने आते थे। इस मैदान पर कई ओलंपियन खेल चुके हैं। इन्हॊने बताया कि यहां पर जफर इकबाल, गोविंदा, अशोक ध्यानचंद, अजीत पाल सिंह, मुनीर सेठ, जलालदुद्दीन, सूरजीत सिंह, शंकर लक्ष्मण, धनराज पिल्ले, दिलीप तिर्की सहित सभी दिग्गज खिलाड़ी अपनी हॉकी स्टिक का जलवा दिखा चुके हैं।


1964 से प्रारंभ हुआ नेहरू कप
चैंपियनशिप के बारे में पुराने सदस्यों ने बताया कि सबसे पहले एथलेटिक्स क्लब की स्थापना 1958 में की गई और 1959 से क्लब के नाम से ही अखिल भारतीय चैंपियनशिप का प्रारंभ किया गया। क्लब के नाम से चैंपियनशिप 1963 तक चली। इसके बाद जैसे ही पं। जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ तो उनके नाम से चैंपियनशिप का नाम नेहरू स्वर्ण कप हॉकी कर दिया गया। नेहरू के नाम से देश में प्रारंभ की गई यह पहली चैंपियनशिप है। इस चैंपियनशिप में खेलने के लिए पहले पहल देश की दिग्गज टीमें आती थीं।


आर्थिक तंगी बहुत है


क्लब के वर्तमान सचिव मंसूर अहमद बताते हैं कि वर्तमान समय में चैंपियनशिप का आयोजन करना आसान नहीं है। उन्होंने बताया कि आयोजन में 10 लाख से ज्यादा का खर्च आ जाता है। उन्होंने बताया कि बड़ी टीमों को बुलाने की हिम्मत इसलिए नहीं होती क्योंकि एक तो खिलाड़ी बड़े होटल में रहने की मांग करते हैं, साथ ही इन टीमों को एक दिन के लिए कम से कम पांच हजार रुपए देने पड़ते हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि देश की बी वर्ग की टीमों के पीछे एक दिन में दो से ढाई हजार रुपए लगते हैं। लोकल टीम के पीछे 1500 का करीब खर्च आता है। उन्होंने बताया कि चैंपियनशिप के लिए खेल विभाग से जहां 75 हजार की मदद मिलती है, वहीं नगर निगम से 50 हजार रुपए की सहायता मिलती है। मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह ने पिछले आयोजन के लिए तीन लाख रुपए दिए थे। क्लब से जुड़े पुराने सदस्य कहते हैं कि खेल विभाग को यादा राशि देनी चाहिए। इसी के साथ इनका कहना है कि मुख्यमंत्री कोष से भी पांच लाख की मदद तो मिलनी ही चाहिए। अब क्लब के सदस्यों ने लाल बादशाह के नेतृत्व में राहुल गांधी से मिलकर नेहरू फाऊंडेशन से मदद मांगने का मन बनाया है। इस बार चैंपियनशिप के बाद एक प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने जाएगा और उनको जानकारी देगा कि देश की यह पहली चैंपियनशिप है जो नेहरू के नाम से होती है। उनके मांग की जाएगी कि चैंपियनशिप को नेहरू फाऊंडेशन से ही प्रायोजित करवाया जाए। इसी के साथ राहुल गांधी से मैदान में एस्ट्रो टर्फ जल्द लगवाने की भी मांग की जाएगी।


एस्ट्रो टर्फ की कमी भी एक बाधा
देश की बड़ी टीमों के खेलने न आने के पीछे जहां एक कारण पैसों की कमी है, वहीं एस्ट्रो टर्फ भी है। कोई भी बड़ी टीम ऐसे मैदान में खेलना ही नहीं चाहती है जहां पर एस्ट्रो टर्फ न हो। वैसे नेताजी स्टेडियम के जिस मैदान में चैंपियनशिप होती है, उस मैदान में एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कर चुके हैं। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। स्टेडियम में चूंकि मैदान गलत दिशा में बना है इसलिए यहां पर एस्ट्रो टर्फ लगाने का अंतिम फैसला नहीं हो पा रहा है। वैसे इस बारे में हॉकी के जानकारों का मानना है कि देश में ऐसे कई मैदान हैं जहां पर गलत दिशा होने के बाद भी एस्ट्रो टर्फ लगे हैं। नेताजी स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ लगाने में कोई परेशानी नहीं होगी।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

कामनवेल्थ सायकल पोलो के लिए सज रहा छत्तीसगढ़



छत्तीसगढ़ में पहली बार कामनवेल्थ सायकल पोलो का आयोजन भिलाई में होने जा रहा है। इसकी तैयारी अभी से प्रारंभ कर दी गई है। इसके लिए भिलाई में जहां एक अतंरराष्ट्रीय स्तर का मैदान बना लिया गया है, वहीं इसके कुछ मैच रायपुर में भी करवाए जाने हैं। यह आयोजन 3 से 6 दिसंबर तक होगा। इसमें करीब एक दर्जन देश शामिल होंगे। इसी के साथ भारत सहित चार देशों के बीच महिलाओ के प्रदर्शन मैच होंगे।
भारत में जब सायकल पोलो की कामनवेल्थ चैंपियनशिप का आयोजन करने की बात चली तो इस अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप के आयोजन में सबसे पहले रूचि दिखाने वाला छत्तीसगढ़ रहा। छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य रहा है जिसके खाते में सायकल पोलो को ऊंचाई पर ले जाने का लगातार रिकार्ड रहा है। सबसे पहले यहां पर 2002 में संघ का गठन होने के बाद ही विश्व कप में खेलने जाने वाली भारतीय टीम का प्रशिक्षण शिविर भी लगा जो टीम फ्रांस में खेलने गई थी। इसके बाद से छत्तीसगढ़ का संघ लगातार ऐसे आयोजन कर रहा है जैसे आयोजन कोई नहीं कर सका है। छत्तीसगढ़ के खाते में ही फेडरेशन कप को प्रारंभ करने का श्रेय जाता है। फेडरेशन कप का जब भिलाई में आयोजन किया गया तो उस समय इसके साथ तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिप का भी आयोजन किया गया था। फेडरेशन कप के सफल आयोजन के बाद जब सायकल पोलो को स्कूली खेलों में शामिल करवाने की बारी आई तो इसमें भी छत्तीसगढ़ की भूमिका अहम रही। इन खेलों का आयोजन करने का जिम्मा जब कोई नहीं उठा रहा था तो छत्तीसगढ़ ने इसकी मेजबानी ली। पहली चैंपियनशिप का जब आयोजन राजनांदगांव में किया गया तो इसमें महज चार टीमों से भाग लिया। लेकिन जब दूसरा आयोजन 2007 में फिर से राजनांदगांव में किया गया तो इस बार इस चैंपियनशिप में मेजबान छत्तीसगढ़ के साथ उप्र, महाराष्ट्र, केरल, आन्ध्र प्रदेश, मप्र, चंडीगढ़, नवोदय विद्यालय, विद्या मंदिर की टीमें शामिल हुईं। छत्तीसगढ़ का सायकल पोलो को बढ़ाने में कितना अहम हाथ रहा है इसको भारतीय सायकल पोलो फेडरेशन के सचिव केके रैना भी मानते हैं की छत्तीसगढ़ के कारण आज सायकल पोलो की पहचान बढ़ी है। अब तो इस खेल को राष्ट्रीय खेलों के साथ एशियाड में भी शामिल करवाने के प्रयास हो रहे हैं।
1986 में हुई भारत में शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में एक समय हार्स पोलो का काफी नाम था, वैसे आज भी इस खेलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में खेला जाता है, लेकिन अब इस खेल को टक्कर देने वाला एक खेल सायकल पोलो भी आ गया है। इस खेल की शुरुआत भारत में 1986 से हुई है, लेकिन अब जाकर इस खेलों को कुछ आयाम मिल सका है। पहले इस खेल को खेलने वाले काफी कम राज्य थे लेकिन आज यह खेल देश के ज्यादातर राज्यों में खेला जा रहा है। जिन राज्यों में यह खेल खेला जाता है, उन राज्यों में आज छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर आता जा रहा है। छत्तीसगढ़ सिर्फ खेलों में ही नहीं बल्कि मेजबानी में भी नंबर वन है।
छत्तीसगढ़ मेजबान नंवर वन
यहां पर जब भी कोई राष्ट्रीय चैंपियनशिप हुई है उसकी सबने तारीफ की है। ऐसे में जब भिलाई में प्रदेश के सायकल पोलो संघ ने एक साथ एक नहीं बल्कि तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिप का एक साथ आयोजन करके सायकल पोलो में एक नया इतिहास रचा तो देश भर से आए सभी खिलाडिय़ों ने आयोजन की जमकर तारीफ की और सबने एक स्वर में माना की वास्तव में छत्तीसगढ़ मेजबान नंबर वन है। भिलाई के आयोजन को संवारने में जहां संघ के अध्यक्ष अशोक सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी। छत्तीसगढ़ ने यह जो सफल आयोजन किया उसी का परिणाम रहा की उसको भारत-पाक टेस्ट शृंखला के एक मैच की मेजबानी भी मिली। यह मैच जब यहां पर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित किया गया तो इस मैच में खेलने आए पाकिस्तान के खिलाड़ी भी छत्तीसगढ़ की मेजबानी के कायल होकर लौटे। भारत-पाक टेस्ट के बाद छत्तीसगढ़ ही ऐसा पहला राज्य बना जिसने यहां पर तकनीकी सेमीनार का आयोजन किया । इस सेमीनार में आए देश भर के खिलाडिय़ों ने छत्तीसगढ़ के इस आयोजन की तारीफ
कामनवेल्थ में शामिल न होने से बनी
अलग आयोजन की योजना
भारत में कामनवेल्थ सायकल पोलो के आयोजन की योजना कैसे बनी इसका खुलासा करते हुए अशोक सिंह बताते हैं की भारत में दो साल बाद 2110 में कामनवेल्थ खेलों का आयोजन होने जा रहा है। इन खेलों में काफी पहले से सायकल पोलो को शामिल करने की कवायद चल रही थी। इस बात की पूरी संभावना थी की सायकल पोलो को कामनवेल्थ खेलों में शामिल कर लिया जाएगा। इस संभावना का एक सबसे बड़ा कारण यह था की कामनवेल्थ में खेलने वाले सभी देश सायकल पोलो खेलते हैं। कामनवेल्थ खेलों में सायकल पोलो को स्थान भी मिल जाता, लेकिन इन खेलों का कार्यक्रम काफी पहले से बन गया था ऐसे में इन खेलों में सायकल पोलो को शामिल करना संभव नहीं हो सका । ऐसे में जहां यह प्रयास किए जा रहे हैं की कामनवेल्थ में सायकल पोलो को एक प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल कर लिया जाए, वहीं अब विश्व सायकल पोलो फेडरेशन ने भारतीय सायकल पोलो फेडरेशन के साथ मिलकर यह योजना बनाई की भारत में ही कामनवेल्थ खेलों से ठीक सायकल पोलो की कामनवेल्थ चैंपियनशिप का आयोजन किया जाए। इस योजना को अंतिम रूप भी दे दिया गया है। कामनवेल्थ सायकल पोलो का आयोजन भारत में किया जाना है और इसकी मेजबानी छत्तीसगढ़ के हाथ लगी है। छत्तीसगढ़ में इस चैंपियनशिप का आयोजन 3 से 6 दिसंबर तक किया जाएगा।
भिलाई में बना अंतरराष्ट्रीय मैदान


कामनवेल्थ सायकल पोलो के लिए भिलाई में अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैदान बनकर तैयार हो गया है। भिलाई होटल के पास यह मैदान भिलाई स्टील प्लांट की मदद से बनाया है। इसके बारे में प्रदेश संघ के अशोक सिंह बताते हैं की यह मैदान राष्ट्रीय तकनीकी कमेटी के चेयरमैन पीबी कृष्णाराव के मार्गदर्शन में बना। मैदान 120 गुणा ८0 मीटर का है। इस मैदान को ऐसा बनाया गया है जिसमें रात को भी मैच हो सकेगे। इस मैदान पर इस चैंपियनशिप के मैचों के साथ ही कुछ मैच राजधानी रायपुर में भी होंगे। भिलाई के मैदान का तो उद्घाटन जनवरी में 16 से 22 जनवरी तक खेली गई तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिपों फेडरेशन कप के साथ सीनियर और जूनियर चैंपियनशिप से हो भी चुका है।
चार देशों की महिला टीमों के बीच होंगे प्रदर्शन मैच
कामनवेल्थ चैंपियनशिप में हो तो पुरुष खिलाडिय़ों के लिए रही है, लेकिन इस चैंपियनशिप में भारत के साथ ही इंग्लैंड, स्काटलैंड और आयरलैंड की महिला टीमें भी आ रही हैं। इनके बीच प्रदर्शन मैच होंगे।

बास्केटबाल पदक उड़ाने में नंबर वन


प्रदेश की बास्केटबाल टीमें लगातार राष्ट्रीय स्तर पर पदक उड़ाने में नंबर वन बनी हुई हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से अब तक बास्केटबाल के खाते में 31 स्वर्ण, 8 रजत और 15 कास्य पदक मिलाकर 54 पदक दर्ज हैं। हर साल टीम राष्ट्रीय स्तर पर जोरदार जलवा दिखाने का काम कर रही है। पहले पहल तो मात्र महिला खिलाडिय़ों का ही दबदबा था, लेकिन अब तो पुरुष टीमें भी कमाल करने लगी हैं। 2008 के सत्र में प्रदेश की टीमों ने पांच पदक जीते हैं। एक सीनियर वर्ग को छोड़ दिया जाए तो बाकी वर्गों में छत्तीसगढ़ की टीमों का ही वर्चस्व कायम है। प्रदेश की टीमों को सफलता की राह पर ले जाने का श्रेय बालिका टीम के कोच राजेश पटेल को जाता है। छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद से ही बास्केटबाल में पदको की बारिश हो रही है। यह बरसात 2001 से प्रारंभ हुई है जो अब तकायम है। पिछले साल की बात करें तो 2008 में प्रदेश की टीमों ने पांच पदक जीते हैं। इन पदको में तीन स्वर्ण पदक शामिल हैं। सबसे पहला स्वर्ण पदक प्रदेश की सब जूनियर बालिका टीम ने कपूरथला में तब जीता जब वहां पर जून में इस चैंपियनशिप का आयोजन किया गया। बालिका टीम का यह लगातार चौथा स्वर्ण पदक था। वैसे बालिका टीम अब तक 8 चैंपियनशिप में एक मात्र बार ही कास्य पदक जीती है, बाक़ी सात बार उसके हाथ स्वर्ण ही लगा है। यहां पर बालक टीम को चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा। वैसे बालक टीम के खाते में इस चैंपियनशिप में दो स्वर्ण एक रजत और दो कास्य पदक दर्ज है। इस चैंपियनशिप से पहले भीलवाड़ा में हुई जूनियर चैंपियनशिप में प्रदेश की बालिका टीम को जहां पहली बार कमजोर प्रदर्शन के कारण कास्य पदक से ही संतोष करना पड़ा था। वैसे इसके पहले कभी भी टीम को कास्य पदक नहीं मिला था। टीम ने इसके पहले जहां छह बार स्वर्ण जीता था, वहीं एक बार रजत पदक मिला था। छत्तीसगढ़ की बालिका टीम पहली बार फाइनल में पहुंचने से चूकी थी। छत्तीसगढ़ के हाथ दूसरा स्वर्ण पदक तब लगा जब छत्तीसगढ़ की मेजबानी में ही राष्ट्रीय यूथ चैंपियनशिप का आयोजन भिलाई में 18 से 25 सितंबर तकिया गया। यहां पर बालिका टीम ने स्वर्ण जीता और इस वर्ग में अपने नाम पांचवां स्वर्ण दर्ज किया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ही टीम के खाते में यूथ वर्ग में पांच स्वर्ण और तीन रजत दर्ज हैं। कभी भी ऐसा मौका नहीं आया है जब टीम फाइनल में पहुंचने से चूकी है। भिलाई में बालको की टीम भी फाइनल में पहुंची लेकिन वह स्वर्ण नहीं जीत सकी । वैसे बालक टीम के खाते में दो स्वर्ण और दो कास्य पदक जीतने का रिकार्ड है। साल के अंत में जब सूरत में सीनियर वर्ग की राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन किया गया तो वहां पर महिला टीम जहां सेमीफाइनल में पहुंची और चौथा स्थान प्राप्त किया, वहीं पुरुष टीम पांचवें स्थान पर रही। यह पहला मौका का रहा जब पुरुष टीम ने इतना अच्छा प्रदर्शन किया और पहली बार राष्ट्रीय खेलों में भी खेलने की पात्रता प्राप्त कर ली। वैसे इसके पहले कभी भी पुरुष टीम 14वें स्थान से आगे नहीं बढ़ सकी थी। इधर महिला टीम में कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के बाद भी टीम तीन साल बाद पदक से चूकी । इसके पहले टीम ने 2004 से ही कांस्य पदक जीतने का जो सिलसिला प्रारंभ किया था, वह 2006 तक चल रहा था। 2008 में लगातार शानदार प्रदर्शन करने के बाद नए साल का आगाज भी छत्तीसगढ़ के लिए अच्छा रहा है। छत्तीसगढ़ की महिला टीम ने भुवनेश्वर में खेली गई राष्ट्रीय महिला चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इस चैंपियनशिप में यह छत्तीसगढ़ का चौथा स्वर्ण पदक है। इसके अलावा टीम के खाते में एक रजत और एक कास्य भी है।
33 खिलाडिय़ों को मिली नौकरी

प्रदेश की टीमों के शानदार प्रदर्शन के कारण यहां के 33 खिलाडिय़ों को रेलवे एवं बीएसएनएल में नौकरी भी मिली है। इन खिलाडिय़ों में महिला खिलाड़ी ज्यादा है। दक्षिण-पूर्व रेलवे में प्रदेश की 13 महिला खिलाडिय़ों सहित 16 खिलाडिय़ों अंजू लकड़ा, सीमा सिंह, पूनम सिंह, अनामिका जैन, भारती नेताम, अलंकि ता सेठी, जे वेणु, राजेश्वरी ठाकुर, कुमारी सरिता, आकाक्षा सिंह, एम. पुष्पा, नवनीत कौर, वी. निशा, टीएस प्रकाश राव, शिवेन्द्र निषाद, देवेन्द्र यादव को नौकरी में रखा गया है। इसी तरह से ईस्टर्न रेलवे में मृदुला आडिल, रूपाली पात्रो, राधा सोनी और दिनेश, दक्षिण सेंटर रेलवे में राखी राजपूत, कवलजीत कौर, मुरली कष्णनन, टीआरएस राव, हाजीपुर रेलवे में संगीता कौर , आरती सिंह, कविता अम्बिलकर, आरसीएफ रेलवे में निर्मल सिंहा, ए. संतोष कुमार और आशुतोष सिंह को नौकरी में रखा गया है। इसके अलावा बीएसएनएल में तीन खिलाडिय़ों मिथलेश ठाकुर दिलेश्वर चन्द्राकर और विश्म्भर पांडे को नौकरी मिली है।

छत्तीसगढ़ की मेजबानी पर टेबल टेनिस महासंघ भी फिदा




प्रदेश टेबल टेनिस संघ ने राजधानी रायपुर में जिस तरह से सेंट्रल इंडिया टेबल टेनिस चैंपियनशिप का आयोजन किया उस आयोजन ने भारतीय टेबल-टेनिस महासंघ को भी दीवाना बना दिया है। अब महासंघ चाहता है कि छत्तीसगढ़ में एक बड़ा आयोजन हो। ऐसे में महासंघ ने जहां छत्तीसगढ़ के सामने एशियन चैंपियनशिप का एक प्रस्ताव रखा, वहीं एक प्रस्ताव राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप का रखा है। इस प्रस्ताव में से राष्ट्रीय चैंपियनशिप के आयोजन को करने की हिम्मत प्रदेश संघ ने दिखाने का मन बनाया है। पर इसके पीछे एक सबसे बड़ी बाधा यहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के इंडोर स्टेडियम की कमी है। इस कमी को स्पोट्र्स काम्पलेक्स से पूरा किया जा सकता है, पर अब तक यह काम्पलेक्स बन नहीं सका है। वैसे इस काम्पलेक्स के जल्द बनने की संभावना जिस तरह से जताई जा रही है। अगर वह संभावना सही साबित हुई तो जरूर छत्तीसगढ़ के हाथ राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप की मेजबानी लग सकती है। वैसे भी छत्तीसगढ़ की मेजबानी के कायल अपने देश के ही नहीं विदेश के खिलाड़ी भी हैं। रायपुर में सेंट्रल इंडिया रैंकिग टेबल टेनिस का आयोजन 21 से 25 दिसंबर 2008 तक किया गया। इस चैंपियनशिप में देश के नामी खिलाडिय़ों ने भाग लिया। इस चैंपियनशिप में जिस तरह की व्यवस्था प्रदेश टेबल टेनिस संघ ने की थी उस व्यवस्था ने ही देश के सभी खिलाडिय़ों को तारीफ करने पर मजबूर किया। इन खिलाडिय़ों की तारीफ का ही नतीजा रहा कि जब सूरत में एक राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन किया गया और यहां पर भारतीय टेबल टेनिस महासंघ की बैठक हुई तो इस बैठक में न सिर्फ छत्तीसगढ़ की मेजबानी की खुले दिल ने महासंघ ने तारीफ की बल्कि प्रदेश संघ के अध्यक्ष शरद शुक्ला को राष्ट्रीय महासंघ में संयुक्त उपाध्यक्ष के पद से भी नवाजा गया। इतना ही नहीं महासंघ ने तो छत्तीसगढ़ के सामने एशियन चैंपियनशिप की मेजबानी का भी प्रस्ताव रख दिया। यह चैंपियनशिप इसी साल होनी है और इसकी मेजबानी का जिम्मा भारत को मिला है। ऐसे में जबकि पूरे एशियाई देशों के दिग्गज खिलाडिय़ों का जमावड़ा अपने देश में लगेगा तो छत्तीसगढ़ के पास इसकी मेजबानी लेने का सुनहरा मौका था। लेकिन यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि यह मौका अपने हाथ से महज इसलिए निकल गया क्योंकि यहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का कोई भी इंडोर हॉल नहीं है। ऐसा इंडोर हॉल जिसमें कम से दो दर्जन से ज्यादा टेबल लग सके उसके बिना एशियन चैंपियनशिप क रवाना संभव नहीं है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष शरद शुक्ला के पास इस प्रस्ताव को न मनाने के अलावा कोई चारा नहीं था। उन्होंने महासंघ को बताया कि उनके राज्य में कोई बड़ा इंडोर हॉल नहीं है। इसी के साथ उन्होंने महासंघ को यह भी जानकारी दी कि राजधानी रायपुर में एक स्पोट्र्स काम्पलेक्स बन रहा है जो पूर्णत: की ओर है। ऐसे में महासंघ ने प्रदेश संघ के सामने एक और प्रस्ताव राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप का रखा है। इस प्रस्ताव पर प्रदेश संघ ने महासंघ से कुछ समय मांगा है। प्रदेश संघ चाहता है कि पहले वह इस बात की तसली कर ले कि राजधानी का स्पोट्र्स काम्पलेक्स इस चैंपियनशिप से पहले बन जाएगा। प्रदेश संघ के अध्यक्ष शरद शुक्ला और महासचिव अमिताभ शुक्ला कहते हैं कि उनका संघ महापौर सुनील सोनी के साथ मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप की मेजबानी मिलने कि जानकारी देर उनके सामने मांग रखेगा कि स्पोट्र्स काम्पलेक्स को जल्द पूरा कर दिया जाए कि इस साल के अंत में चैंपियनशिप का आयोजन किया जा सके । इन्होंने बताया कि इस चैंपियनशिप के लिए ऐसा हाल जरूरी है जहां पर कम से कम 30 टेबलें लग सके । इन्होंने बताया कि जूनियर चैंपियनशिप में एकल, युगल के साथ मिश्रित युगल और टीम मुकाबले भी होते हैं। ऐसे में यह तो संभव ही नहीं है कि सप्रे टेबल टेनिस हॉल के एक हॉल में यह चैंपियनशिप हो सके । इस हॉल में एक दर्जन टेबलें भी नहीं पाती हैं। छत्तीसगढ़ तो है ही मेजबान नंबर वन इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ मेजबान नंबर वन है। अपना राज्य बनने के बाद से आज तक जितने भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन यहां पर हुए हैं सभी खिलाड़ी छत्तीसगढ़ की तारीफ कर के लौटे हैं। कई खेलों के राष्ट्रीय आयोजनों के साथ यहां पर शतरंज और केरम की अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप हो चुकी है। इसी के साथ पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी जहां भारतीय खिलाडिय़ों के साथ कोरबा में एक मैत्री मैच खेल चुके हैं, वहीं सायकल पोलो में भी पाकि स्तान की टीम यहां आकर खेली है। ऐसा कोई भी आयोजन नहीं रहा है जिसमें छत्तीसगढ़ की मेजबानी की तारीफ नहीं हुई है।

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

आईसीसी जोकरों का समूह

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कोसिल ने भारत के स्टार खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को सर्वकालिक महान खिलाडिय़ों की सूची से बाहर रखने का काम किया है। आईसीसी की इस हरकत से जहां देश का पूरा क्रिकेट जगत हैरान है, वहीं आईसीसी के व्यवहार को कोई भी नया-पुराना खिलाड़ी पचा नहीं पा रहा है। ऐसे में भारत के पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मनिन्दर सिंह ने आईसीसी पर बरसते हुए कहा कि आईसीसी तो जोकरों कासमूह है। अगर ऐसा नहीं होता तो सचिन तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ी को कभी भी सर्कलिक महान खिलाडिय़ों की सूची में टॉप 20 से बाहर नहीं रखा जाता। सचिन को इस सूची में सम्मानजन· स्थान दिया जाना था। आईसीसी ने जब से महान खिलाडिय़ों की सूची जारी की है, तब से इस सूची को लेकर विवाद हो रहा है। विवाद का एक बड़ा कारण भी है। आज पूरे विश्व में अपने नाम का डंका बजवाने वाले सचिन को आईसीसी ने टॉप में 20 में स्थान देना जरूरी ही नहीं समझा। जैसे ही आईसीसी की सूची जारी हुई, पूरे देश में इस बात को लेकर आक्रोश फैल गया। ऐसे में जिस भी क्रिकेटर को जैसी प्रतिक्रिया देने का मौका मिला उन्होंने दे डाली। इसी बाच जाने माने स्पिन के जादूगर और कमेंट्रेटर मनिंदर सिंह का रायपुर आना हुआ तो उन्होंने आईसीसी के आकाओं को जोकरों का समूह कह दिया। मनी का बयान कुछ वैसा ही है जैसे आज से करीब दो दशक पहले मो अमरनाथ ने बीसीसीआई के चयनकर्ताओं के बारे में दिया था। तब अमरनाथ ने चयनकर्ताओं को जोकरों का समूह कहा था। मनी यह मानते हैं कि अमरनाथ ने ऐसा कहा था तो गलत भी नहीं कहा था तब उनके साथ चयनकताओं ने काफी गलत किया था। बहरहाल मनी ने अपने रायपुर प्रवास में कहा कि यह बात तय है कि आईसीसी की कमान जिनके हाथों में हैं वो जोकर हैं। उन्होंने कहा कि यह कैसे संभव है कि सचिन जैसा एक खिलाड़ी जो टेस्ट में सबसे ज्यादा रन बनाता है और जिनके खाते में दुनिया का हर रिकार्ड है वह महान खिलाडिय़ों में शामिल नहीं है। उन्होंने आईसीसी की सूची को मजाक करार दिया और कहा कि ऐसी सूची का क्या ओचित्य है। उन्होंने कहा क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल बनाने की मांग करना गलत नहीं है। मनिंदर की नजर में राष्ट्रीय खेल तो क्रिकेट ही है। उन्होंने कहा कि हॉकी का आज देश में क्या मतलब रह गया है। उन्होंने कहा कि जब भारतीय हॉकी फेडरेशन की कमान के पीएस गिल के हाथों में थी तो लगा था कि इस खेल का जरूर कुछ भला होगा लेकिन श्री गिल भी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। उन्होंने कहा क्रिकेट आज अगर नंबर वन है तो इसके पीछे भारतीय क्रिकेट बोर्ड की योजनाएं हैं। उनका कहना है कि किसी भी खेल को आगे बढ़ाने में उसके संघ का सबसे बड़ा हाथ होता है। उन्होंने कहा कि हॉकी को बढ़ाने के लिए उसको क्रिकेट की तरह बेचना होगा। उन्होंने कहा कि अगर किसी के पास 100 करोड़ रुपए होंगे तो वह क्रिकेट में लगाना चाहेगा, हॉकी में नहीं। उन्होंने हॉकी को कचरा करार देते हुए कहा कि कोई भी अपना पैसा कचरे में डालना नहीं चाहता है। असली क्रिकेट तो टेस्ट ही है: - एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की वनडे के बाद आज 20-20 क्रिकेट आ गया है, इसके बाद 10-10 ओवरों के क्रिकेट की बात की जा रही है, लेकिन असली क्रिकेट की जहां तक बात है तो वह तो टेस्ट क्रिकेट ही है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा की कभी भी बच्चों को 10-10 ओवर के मैच नहीं खिलाने चाहिए। उन्होंने कहा की आज टेस्ट में जिस तरह से नतीजे आने लगे हैं उससे रोमांच बढ़ गया है। धोनी सफल कप्तान:- मनिन्दर सिंह की नजर में इस समय सबसे सफल और अच्छे कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी हैं। उनका कहना है कि धोनी एक ऐसे कप्तान हैं जो हर खिलाड़ी की भावनाओं को समझते हैं। अगर कोई गेंदबाज उनके पास जाकर कहता है कि वह आगे ओवर नहीं करना चाहता है तो वे उनकी बात मानते हैं। बकौल मनिन्दर खिलाडिय़ों के साथ धोनी का ताल-मेल बेजोड़ है। पूछने पर उन्होंने कहा कि राहुल द्रविड़ को वास्तव में अब संन्यास के बारे में सोचना चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विज्ञापन में काम करना गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी के पास जो समय रहता है उसका उपयोग कर लेना चाहिए। एक उम्र के बाद तो खिलाड़ी के पास कुछ नहीं बच जाता है। उन्होंने कहा कि आज देश में कई खेलों के खिलाड़ी ऐसे हैं जिनको खाने के लाले पड़ जाते हैं। अगर क्रिकेटर विज्ञापन करके अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं इसमें गलत क्या है। उन्होंने बीसीसीआई की तारीफ करते हुए कहा कि आज बीसीसीआई ने क्रिकेटरों को इस मुकाम तक पहुंच दिया है कि उनके कभी फाके खाने नहीं पड़ेंगे। छत्तीसगढ़ में क्रिकेट अकादमी बने :- मनिंदर सिंह ने पूछने पर कहा कि उन्होंने छत्तीसगढ़ में बना क्रिकेट स्टेडियम तो नहीं देखा है, पर इसकी तारीफ जरूर सुनी है। उन्होंने कहा कि यहां की प्रतिभाओं को बढ़ाने के लिए महज स्टेडियम बना देने से काम नहीं चलेगा इसके लिए क्रिकेट की अकादमी खोलनी होगी। उन्होंने कहा की कई एनआईएस कोच है जिनकी सेवाएं लेकर यहां की प्रतिभाओं को निखारा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर मेरी मदद की जरूरत पड़ेगी तो मैं भी मदद करने तैयार हूं।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

मिले मैट - खिलाड़ी हुए सेट


देश के कराते खिलाड़ियों को अब मैट मिलने के बाद पर लग गए हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि मैट पर अभ्यास करने के कारण प्रदेश के खिलाड़ी सेट हो जाएंगे और उनको राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा पदक जीतने में सफलता मिलेगी। इस बार राष्ट्रीय खेलों में भी प्रदेश की टीम से पदक जीतने की उम्मीद की जा रही है। प्रदेश बनने के बाद से अब तक आठ साल के अंतराल में कराते खिलाड़ियों को फर्श पर ही अभ्यास करना पड़ता था। फर्श पर अभ्यास करने के बाद भी प्रदेश के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सफलता प्राप्त कर रहे हैं और अपने राज्य को पदक दिलाने में सफल हो रहे हैं। लेकिन यहां के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को जितनी सफलता मिलनी चाहिए उतनी इसलिए नहीं मिल पा रही थी क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर सभी चैंपियनशिप के आयोजन मैट पर होते हैं। ऐसे में खिलाड़ियों को वहां पर परेशानी होती थी। प्रदेश कराते संघ के सचिव अजय साहू ने बताया कि मैट पर खेल की रफ्तार तेज हो जाती है जिसके कारण हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर मात खा जाते थे। उन्होंने बताया कि हमारा संघ लगातार इस प्रयास में था कि उसको खेल विभाग से मैट मिल जाएं। उन्होंने बताया कि पिछले साल खेल मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की पहल पर संघ को अब जाकर मैट मिले हैं। मैट मिलने के बाद पहली बार राज्य चैंपियनशिप का आयोजन मैट पर किया गया। मैट पर खिलाड़ियों को खेलकर अच्छा लगा। उन्होंने बताया कि अब जहां सभी राज्य चैंपियनशिप के आयोजन मैट पर होंगे, वहीं प्रदेश की टीमॊ के प्रशिक्षण शिविर भी मैट पर लगाए जाएंगे ताकि खिलाड़ियों को अभ्यास करने में आसानी हों। उन्होंने बताया कि मैट मिलने की वजह से अब राष्ट्रीय खेलों में भी ज्यादा पदक मिलने की उम्मीद है। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अंबर भारद्वाज मैट मिलने के कारण काफी खुश हैं। उनका कहना है कि अब और ज्यादा खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने का मौका मिलेगा। राष्ट्रीय खिलाड़ी हर्षा साहू का कहना है कि मैट के बिना हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अपने को दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों की तुलना में असहाय समङाते थे। लेकिनअब हमारे खिलाड़ी भी किसी भी राज्य के खिलाड़ी का जमकर मुकाबला कर सकेंगे।

विकलांग कैरम खिलाड़ी फारूख खान का कमाल

प्रदेश के एक विकलांग कैरम खिलाड़ी ने कमाल करते हुए राष्ट्रीय चैंपियनशिप में छठा स्थान प्राप्त कर भारत की संभावित टीम में स्थान बना लिया है। इस खिलाड़ी के अब भारतीय दल में भी शामिल होने की उम्मीद है। विशाखापट्नम में आयोजित 38वीं सीनियर राष्ट्रीय कैरम चैंपियनशिप में जब छत्तीसगढ़ की टीम खेलने गई तो यह कोई नहीं जानता था कि यहां का एक खिलाड़ी बड़ा कमाल करने वाला है। लेकिन प्रदेश के एक विकलांग खिलाड़ी फारूख खान जो कि न तो बोल सकते हैं और न ही सुन सकते हैं। उन्होंने चैंपियनशिप में दिग्गज खिलाड़ियों को मात देते हुए चैंपियनशिप में छठा स्थान प्राप्त कर लिया। इसी के साथ उन्होंने देश की रैंकिंग में आठवां स्थान भी बना लिया। उनके इस स्थान पर आने के कारण उनको भारत के संभावित दल में स्थान मिल गया है। अब जब भी भारत की संभावित टीम का प्रशिक्षण शिविर लगेगा तो इस शिविर में फारूख भी शामिल रहेंगे। इस शिविर के बाद भारत की टीम 14वीं सार्क या तीसरी एशियन चैंपियनशिप में खेलने जाएगी। प्रदेश कैरम संघ के सचिव विजय कुमार का ऐसा मानना है कि फारूख में इतनी प्रतिभा है कि वे जरूर भारत के दल में स्थान बना लेंगे और छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करेंगे। उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में फारूख के प्रदर्शन के बारे में बताया कि फारूख ने अपने पहले मैच में राजु भैसारे को 25-5, 25-10 से मात दी। इसके बाद के मैचों में उन्होंने तमिलनाडु के विजयन को कड़े मुकाबले में 25-12, 15-25, 25-8 से आसाम के चन्द गुप्ता को 25-19, 25-12 से हराया। उन्होंने कुल पांच मैच जीतने के बाद क्वार्टर फाइनल में स्थान बनाया। यहां पर उनको अनुभव की कमी के कारण विश्व के दो नंबर के खिलाड़ी एम. नटराज से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हारने के बाद भी कम से छत्तीसगढ़ के खेल प्रेमियों का दिल जरूर जीत लिया है। विजय कुमार ने बताया फारूख करीब एक दशक से कैरम खेल रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से वे लगातार राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेल रहे हैं। उन्होंने बताया कि फारूख के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय कैरम के साथ भारतीय कैरम संघके सचिव एस. के. शर्मा ने पहली बार परंपरा से हटकर फारूख को पुरस्कार दिया।

खेलों से किनारा नहीं करना पड़ेगा खिलाड़ियों को

प्रदेश की खेल प्रतिभाओं को एक समय के बाद किसी भी अभाव की वजह से अब खेलों से किनारा नहीं करना पड़ेगा। खेल विभाग अब इस योजना पर काम करने वाला है जिसमें खेलों से गायब होने वाले खिलाड़ियों की खोज-खबर लेकर उनको वापस खेलों से जोड़ा जाएगा। प्रदेश के खेल विभाग ने प्रदेश में खेलों के लिए विकास के लिए कई योजनाओं का पर काम करना प्रारंभ किया है। इन्हीं योजनाओं में एक योजना खेल सचिव सुब्रत साहू की पहल पर प्रारंभ की जा रही है। श्री साहू ने अपने विभाग को यह कहा है कि विभाग को अब यह देखना होगा कि जो खिलाड़ी स्कूली स्तर पर खेलों में खेलते हैं जब वे कॉलेजों में पहुंचते हैं तो वहां नजर नहीं आते हैं। उन्हॊंने कहा कि कॉलेज में जब खेलों पर नजरें जाती हैं तो वहां पर हमेशा हर खेल में ज्यादातर बदले चेहरे नजर आते हैं। इस बात की तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता है कि अगर किसी खेल में स्कूल स्तर पर जो खिलाड़ी खेल रहे थे वो गायब कहां हो गए। अगर वे खिलाड़ी गायब हुए हैं तो उसके पीछे कारण क्या है। इन सारे कारणों को खोज कर खेल विभाग यह तय करेगा कि वे कारण दूर हो जाए और खिलाड़ी को खेलों से किनारा न करने पड़े।

राष्ट्रीय स्केटिंग हॉकी का आयोजन रायपुर में

राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय स्केटिंग हॉकी का आयोजन करने के लिए अब प्रदेश स्केटिंग संघ ने कमर कस ली है। संघ ने ऐसा करने की हिम्मत पहली राज्य रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप को मिली सफलता के बाद की है। चैंपियनशिप के आयोजन के पीछे एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि रायपुर में ही देश का सबसे बड़ा रोलर स्केटिंग का मैदान है। राजधानी के पुलिस मैदान में पहली राज्य रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में प्रदेश के 150 से ज्यादा खिलाड़ी जुटे। इसी के साथ जबलपुर के खिलाड़ी भी इस ओपन चैंपियनशिप में खेलने आए। पहली बार आयोजित इस चैंपियनशिप में जिस तरह का उत्साह खिलाड़ियों के साथ उनके पालकों में दिखा उसके बाद अब प्रदेश संघ ने एक बड़ा फैसला करते हुए रायपुर में राष्ट्रीय स्तर की स्केटिंग हॉकी का आयोजन करने का फैसला किया है। इस बारे में संघ के दलजीत सिंह ने बताया कि उनकी जानकारी में रायपुर का जो मैदान है वह देश का सबसे बड़ा मैदान है। यही एक मैदान है जिस पर आसानी से हॉकी की राष्ट्रीय चैपियनशिप हो सकती है। उन्होंने बताया कि उनका संघ अब इसकी योजना बनाने में जुट गया और इसके आयोजन के लिए प्रदेश सरकार से भी बात की जाएगी। खेल विभाग से संघ लेगा मान्यता संघ के सचिव दलजीत सिंह ने बताया कि इतना बड़ा आयोजन करने के लिए बहुत बड़े बजट की जरूरत पड़ेगी ऐसे में आयोजन के लिए खेल विभाग से मदद मिल सके इसके लिए संघ को मान्यता दिलाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि मान्यता के नियमों के मुताबिक अब उसके 8 जिलों में संघ हो गए हैं और उनका संघ राष्ट्रीय हॉकी के आयोजन से पहले मान्यता ले लेगा। उन्होंने पूछने पर बताया कि उनके खेल को भारत सरकार के खेल मंत्रालय के साथ राष्ट्रीय ओलंपिक संघ से भी मान्यता प्राप्त है।

सुविधाएं देने का जो वादा, अब पदक मिलेंगे ज्यादा

प्रदेश की खेल बिरादरी के सुझावों पर खेल विभाग ने सुविधाएं देने का जो वादा रविवार को संगोष्ठी में किया है, उसके बाद अब यह उम्मीद हो गई है कि राष्ट्रीय चैंपियनशिप में प्रदेश को ज्यादा पदक मिलेंगे। प्रदेश को ज्यादा पदक दिलाने की मंशा को लेकर ही खेल विभाग ने एक संगोष्ठी का आयोजन यहां किया था। प्रदेश को खेलों में नंबर वन बनाने की मंशा के लिए आयोजित की गई संगोष्ठी में कई सुझाव आए इन सुझावों पर खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी के साथ खेल विभाग के सचिव सुब्रत साहू ने अमल करने की बात कही और यह भी बताया कि ज्यादातर सुझावों पर खेल विभाग पहले से काम कर रहा है। सबसे पहले ओलंपिक संघ के सचिव बशीर अहमद खान ने अपनी बात रखते हुए कहा कि खेल संघों को मान्यता देने वाले नियमों में और शिथिलता लाने की जरूरत है। इसी के साथ उन्होंने कहा किस खेल विभाग राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वालों खिलाड़ियों को तो नगद राशि देकर सम्मानित करता है, पर प्रशिक्षकों को नगद राशि का इनाम नहीं दिया जाता है। उन्होंने प्रशिक्षकों को नगद राशि इनाम देने की वकालत करने के साथ ही खेल पत्रकारों और खेलों को बढ़ावा देने वालों के लिए भी पुरस्कार देने की बात कही। पदकॊं की बरसात हो खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि उनका विभाग चाहता है कि प्रदेश को ज्यादा से ज्यादा खेलॊं में पदक मिलें। उन्होंने बताया कि अनुदान नियमों में संशोधन के साथ खेलों को उद्योगों को गोद दिलाने की पहल के साथ प्रशिक्षकों की भर्ती भी की जा रही है। खेल नीति की समीक्षा की भी योजना है। प्रदेश में एक खेल अकादमी भी बनाई जा रही है, इसी के साथ भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) का एक बड़ा सेंटर भी राजनांदगांव में बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राज्य बनने के बाद 10 खेलों में ही 109 पदक मिले हैं। खेलों की श्रोणियां तय हों केन्द्र सरकार द्वारा खेलों की जिस तरह से श्रोणियां तय की गई हैं, उसी तरह से प्रदेश में भी श्रोणियां तय करने की बात पूर्व ओलंपियन राजेन्द्र प्रसाद ने कहीं। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे खेलों का ध्यान देना चाहिए जिनसे पदकों की ज्यादा उम्मीद है। इसके विपरीत ट्रायथलान संघ के विष्णु श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश सरकार को ऐसे खेलों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है जिन खेलों के संघ काफी कम सुविधाओं के साथ मान्यता के बिना ही अच्छा कर रहे हैं। उन्होंने खेल पर्यटन की बात करते हुए कहा कि आज जमाना एडवेंचर स्पोट्र्स का है। उन्हॊंने पुलिस में भी खेलों की नीति बनाने की बात के साथ पुलिस विभाग में खिलाड़ियों को नौकरी देने की बात कही। नेटबॉल संघ के संजय शर्मा ने भी खिलाड़ियों को नौकरी देने की बात कही। उन्होंने खेलों को बढ़ाने के लिए प्रदेश को तीन जोन में बांटकर खेलों का आयोजन करने की बात की। पूर्व मंत्री और नेटबॉल संघ के अध्यक्ष विधान मिश्रा ने भी खेलों को श्रोणियों में बांटने की बात के साथ राजधानी के इंडोर स्टेडियम को नगर निगम से लेकर खेल विभाग को बनाने का सुझाव दिया। 10वीं कक्षा तक खेल जरूरी हों फुटबॉल संघ के अध्यक्ष रामविनास ने कहा कि प्रदेश में 10वीं कक्षा तक खेलों को अनिवार्य किया जाए और इसको एक विषय के रूप में पाठयक्रम में शामिल करके इसकी परीक्षा ली जाए। पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी नीता डुमरे ने स्कूली खिलाड़ियों की फीस माफ करने की बात कही। पुराने मैदानों को ठीक किया जाए क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बलदेव सिंह भाटिया ने प्रदेश में खेल मैदानॊं की कमी को दूर करने के लिए सबसे पहले उन मैदानों को ठीक करने की बात कही जो मैदान आज रखरखाव के अभाव में काम के नहीं रह गए हैं। उन्होंने खिलाड़ियॊं के लिए प्रशिक्षक उपलब्ध भी कराने की बात कही। उन्होंने खेल संघों की मानिटरिंग करने के लिए एक समिति बनाने का भी सुझाव दिया। वालीबॉल संघ के मो.अकरम खान ने कहा कि हर जिले में प्रशिक्षक होने चाहिए। उन्होंने खेल विभाग को सीनियर वर्ग की चैंपियनशिप का भी आयोजन अपने हाथ में लेने का सुझाव दिया। उन्होंने राजधानी में एक स्पोट्र्स हास्टल बनाने की बात कही ताकि खेलों के आयोजन में खिलाड़ियों को ठहराने में परेशानी न हो। कराते संघ के विजय अग्रवाल ने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी लेने की बात कहते हुए कहा कि रायपुर और भिलाई के बीच में मैदान बनाने चाहिए। तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका ने अनुदान के लिए होने वाली कागजी कार्रवाई को कम करने की बात की तो लॉन टेनिस संघ के गुरचरण सिंह होरा ने अनुदान खेल संघों का अग्रिम देने की वकालत की। सरकार मदद करेगी कार्यक्रम के अंत में खेल मंत्री लता उसेंडी ने जहां कहा कि सभी सुझावों पर ध्यान दिया जाएगा और सरकार खेल संघों को हरसंभव मदद करेगी। इधर खेल सचिव सुब्रत साहू ने सुझावों को सुनने के बात सिलेसिलेवार बताया कि ज्यादातर सुझावों पर पहले से ही अमल हो रहा है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि जो भी सुङााव आएं हैं उन पर नियमानुसार अमल किया जाएगा। नहीं मिला सुझाव देने का मौका बैठक में 30 से ज्यादा खेल संघों के अध्यक्ष‍सचिवॊं आए थे, इनमें से चंद लोगों को ही बोलने का मौका दिया गया। जिनको बोलने का मौका नहीं मिला वो मन मारकर रह गए। कई संघों के पदाधिकारी यह भी कहते रहे कि ओलंपिक संघ और खेल विभाग के अधिकारियॊं ने केवल उनको बोलने का मौका दिया जो उनकी मंशा के अनुरूप बोलते। वैसे खेल विभाग ने सभी से लिखित में भी सुझाव मांगे हैं। लेकिन कई लोगों संगोष्ठी में बोलने के इच्छुक थे, पर समय कम होने की बात कहते हुए काफी कम लोगों को बोलने दिया गया।

देश का हर गांव खेलों से जुड़ जाएगा,

प्रदेश के 14 ब्लाकों की 982 पंचायतों में केन्द्र सरकार की एक योजना पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान योजना यानी पाइका के माध्यम से खिलाड़ी लइका तैयार करने की दिशा में खेल विभाग ने तैयारी प्रारंभ कर दी है। पहले चरण में सभी जिलों में ऐसी पंचायतॊ को चिंहित करने का काम हो रहा है जहां पर खेल योजनाओं को प्रारंभ किया जाना है। इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार पैसों की बरसात करने वाली है। केन्द्र सरकार की मदद से सबसे पहले प्रदेश की 10 प्रतिशत पंचायतों को खेलों से जोड़ा जाएगा। इस दस साल की योजना में प्रदेश की सभी पंचायतों में खेलों का विकास होगा और छत्तीसगढ़ ही नहीं देश का हर गांव खेलों से जुड़ जाएगा। प्रदेश की खेल नीति में यूं तो पहले से ही पंचायत स्तर पर खेलों को बढ़ाने की बात है, और इस दिशा में पिछले आठ सालों से कुछ न कुछ काम हो ही रहा है, लेकिन इस साल अचानक केन्द्र सरकार ने जो योजना पूरे देश के लिए प्रारंभ की है, उस योजना से अब प्रदेश में पंचायत स्तर पर खेलों को बढ़ाने की दिशा में काफी तेजी से काम होगा। पहले चरण में केन्द्र की योजना को लागू करने के लिए खेल विभाग ने काम प्रारंभ कर दिया है। योजना को लागू करने के लिए खेल संचालक ने प्रदेश के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र जारी करके उनसे अपने जिले के ऐसे ब्लाकॊं और पंचायतों की जानकारी मांग है जिनको खेलों के लिए विकसित किया जाए सके। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि पहले चरण में 982 पंचायतों को चिंहित किया जा रहा है। इनको चिंहित करने का काम अंतिम चरण में है। इन पंचायतों और ब्लाकों को इस माह के अंत तक चिंहित कर लिया जाएगा। इसके बाद एक योजना बनाकर केन्द्र सरकार के पास भेजी जाएगी। क्या है पाइका योजना सबसे पहले पाइका के बारे में जानना जरूरी है कि आखिर यह योजना क्या है। इस योजना के बारे में खुलासा करते हुए खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि केन्द्र सरकार देश भर में हर गांव को खेलों से जोड़ने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान योजना (पाइका) नाम से एक नई योजना प्रारंभ की है। यह योजना 10 साल की है। पहले साल में देश के हर राज्य की 10 प्रतिशत पंचायतों को इसमें शामिल किया जा रहा है। हर साल इसी के हिसाब से नई पंचायतों को जोड़ा जाएगा। दस साल के अंदर पूरे देश के गांवों को खेलों से जोड़ दिया जाएगा। जिन पंचायतों को पहले साल में योजना में शामिल किया जाएगा वहां के लिए पूरी तरह से योजना बनाकर हर राज्य को केन्द्र को भेजना होगा। इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार आर्थिक मदद करेगी। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को सुलभ बनाने के साथ गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन भी करना है। हर साल 10 प्रतिशत के हिसाब के योजना में पंचायतों को शामिल किया जाएगा और 10 साल होते-होते सभी पंचायतें इस योजना से जुड़ जाएगी और देश के हर गांव में जहां खेल मैदान होंगे, वहीं वहां की प्रतिभाओं को ब्लाक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाने का मौका मिलने लगेगा। भरपूर आर्थिक मदद मिलेगी पाइका को राज्य में लागू करने के लिए केन्द्र सरकार से भरपूर आर्थिक मदद मिलेगी। सबसे पहले चिंहित गांवों में मैदान के लिए एक-एक लाख की राशि दी जाएगी। इस राशि का 75 प्रतिशत अंश केन्द्र से और 25 प्रतिशत राज्य सरकार से मिलेगा। प्रदेश में उन मैदानों को चिंहित किया जा रहा है, जहां पर पहले से कुछ सुविधाएं हैं। इस बारे में खेल संचालक का कहना है कि एक लाख की राशि में मैदान को पूरी तरह से विकसित करना संभव नहीं है। ऐसे में यह जरूरी है कि उन्हीं मैदानों को शामिल किया जाए जहां पर एक लाख की राशि के अंदर मैदान इस लायक हो सकें कि वहां पर खेल हो सके। खेल मैदानों को बनाने के लिए केन्द्र सरकार की रोजगार गारंटी योजना की भी मदद लेने की बात की जा रही है। इसके अलावा पंचायतों के साथ जनसहयोग का भी सहारा लिया जाएगा। श्री सिंह ने बताया कि जिन पंचायतों में हाई स्कूल हैं और वहां पर मैदान हैं उनको चिंहित करने का काम किया जा रहा है। मैदानों के लिए जो एक लाख की राशि मिलेगी उस राशि का उपयोग बाऊंडी बनवाने, गोल पोस्ट लगाने जैसे कामॊ में किया जाएगा। हर गांव को खेल सामान लेने के लिए केन्द्र सरकार हर साल 10 हजार रुपए देगी। इसी तरह से हर ब्लाक को 20 हजार की राशि दी जाएगी। यह राशि पांच साल तक केन्द्र सरकार देगी इसके बाद यह राशि राज्य सरकार को देनी होगी। राज्य चैंपियनशिप के लिए मिलेंगे पांच लाख पाइका में खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभाएं दिखाने के लिए गांव के स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियनशिप का आयोजन करने की योजना है। इसके तरह गांवों के खिलाड़ियों को सबसे पहले ब्लाक स्तर पर चैंपियनशिप के लिए 50 हजार का अनुदान दिया जाएगा। इसके आगे जिले के आयोजन के लिए तीन लाख रुपए मिलेंगे। राय चैंपियनशिप के लिए पांच लाख की राशि केन्द्र सरकार देगी। इन सभी आयोजनों में पूरी राशि केन्द्र सरकार ही देगी। इन आयोजनों में पुरस्कार की राशि भी दी जाएगी। हर ब्लाक के आयोजन के लिए 45 हजार की राशि बतौर इनाम दी जाएगी। जिले के आयोजन के लिए इनाम की राशि 90 हजार की होगी। पाइका को पंचायतों में अच्छी तरह से लागू करने के लिए हर पंचायत और ब्लाक में एक क्रीड़ा श्री नाम से एक-एक खेल का जानकार नियुक्ति किया जाएगा। पंचायत में इस क्रीड़ा श्री को पांच सौ रुपए और बाल्क में एक हजार का मानदेय मिलेगा। जिन खेलों की चैंपियनशिप करवाई जाएगी उनमें ग्रामीण खेलों को पहले प्राथमिकता दी जाएगी। इन खेलों में एथटलेटिक्स, खो-खो, कबड्डी, तीरंदाजी, रस्साकशी, कुश्ती, फुटबॉल, वालाबॉल, वेटलिफ्टिग और हॉकी शामिल हैं। इन खेलों की जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन होता है।

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