छत्तीसगढ़ को हमने राष्ट्रीय कयाकिंग की मेजबानी दी है। यहां पर यह स्पर्धा मार्च के अंतिम सप्ताह में होगी। स्पर्धा के सभी मुकाबले बूढ़ातालाब में होंगे। इस स्पर्धा में देश के 300 महिला और पुरुष खिलाड़ी खेलेंगे।
यह जानकारी पत्रकारों को देते हुए भारतीय कयाकिंग संघ के महासचिव बलवीर सिंह कुशवाहा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में कयाकिंग को लोकप्रिय करने के प्रयास हमारा संघ कर रहा है। ऐसे में प्रदेश संघ की मांग पर पहली बार राष्ट्रीय स्पर्धा की मेजबानी छत्तीसगढ़ को दी गई है। यह स्पर्धा बूढ़ातालाब में होगी। उन्होंने बताया कि चूंकि इस तालाब में 1000 मीटर का ट्रेक निकल पाना संभव नहीं है, ऐसे में यहां पर 200 और 500 मीटर के मुकाबले होंगे। मुकाबलों में सी-वन, सी-टू और सी-फोर के साथ के-वन, के-टू और के-फोर के मुकाबले होंगे। इन मुकाबलों में शामिल होने देश के सभी राज्यों के खिलाड़ी यहां आएंगे। उन्होंने पूछने पर बताया कि कयाकिंग के मुकाबले किसी भी तरह से बांध आदि में होने संभव नहीं होते हैं क्योंकि बांध की गहराई ज्यादा होती है वहां पर हमेशा मुकाबलों में परेशानी होती है। मुकाबलों के लिए तालाब का फिर झील का प्रयोग किया जाता है। जहां मुकाबले होते हैं, वहीं पर तालाब की गहराई चार मीटर के कम नहीं होनी चाहिए।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में कयाकिंग के लिए अपार संभावनाएं हैं क्योंंकि यहां पर तालाबों की कमी नहीं है। जिस भी राज्य में तालाबों की कमी नहीं होती है, वहां पर हमारे खेल के लिए खिलाड़ी तैयार करने में आसानी होती है।
एक सवाल के जवाब में श्री कुशवाहा ने बताया कि कयाकिंग तो ओलंपिक खेल है और यह 1928 से इसमें शामिल हैं। शुरुआत में यह खेल चार देशों में खेला जाता था, लेकिन आज यह 110 खेलों में खेला जाता है। उन्होंने बताया कि ओलंपिक में इस खेल के चार वर्गा के मुकाबले होते हैं। इनमें कैनो पोलो, ड्रैगन बोट के साथ सी और के बोट के मुकाबले शामिल हैं। वैसे राष्ट्रीय स्तर पर 8 अलग-अलग तरह के मुकाबले होते हैं। उन्होंने बताया कि रायपुर में होने वाले मुकाबलों में कैनो पोलो का खेल भी देखने को मिलेगा।
1994 से 97 तक मप्र में खेल संचालक रहे श्री कुशवाहा ने बताया कि मप्र में इस खेल की शुरुआत 1992-93 में हुई थी। वहां के खिलाड़ी आज काफी आगे हैं। मप्र के करीब 50 खिलाड़ियों को नौकरी भी मिल गई है। मप्र की टीम इतनी अच्छी है कि उसने अब आर्मी की टीम को भी हराने का काम किया है। उन्होंने बताया कि इस खेल से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है। श्री कुशवाहा ने बताया कि वे यहां पर वन विभाग के अपर सचिव नारायण सिंह ने भी मिले हैं और उनसे इस खेल में मदद करने का आग्रह किया है। पत्रकारों से चर्चा के दौारान प्रदेश संघ के कार्यकारी अध्यक्ष शशिकांत द्विवेदी, सचिव बीएल साहू और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नवीन साहू उपस्थित थे।
यह जानकारी पत्रकारों को देते हुए भारतीय कयाकिंग संघ के महासचिव बलवीर सिंह कुशवाहा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में कयाकिंग को लोकप्रिय करने के प्रयास हमारा संघ कर रहा है। ऐसे में प्रदेश संघ की मांग पर पहली बार राष्ट्रीय स्पर्धा की मेजबानी छत्तीसगढ़ को दी गई है। यह स्पर्धा बूढ़ातालाब में होगी। उन्होंने बताया कि चूंकि इस तालाब में 1000 मीटर का ट्रेक निकल पाना संभव नहीं है, ऐसे में यहां पर 200 और 500 मीटर के मुकाबले होंगे। मुकाबलों में सी-वन, सी-टू और सी-फोर के साथ के-वन, के-टू और के-फोर के मुकाबले होंगे। इन मुकाबलों में शामिल होने देश के सभी राज्यों के खिलाड़ी यहां आएंगे। उन्होंने पूछने पर बताया कि कयाकिंग के मुकाबले किसी भी तरह से बांध आदि में होने संभव नहीं होते हैं क्योंकि बांध की गहराई ज्यादा होती है वहां पर हमेशा मुकाबलों में परेशानी होती है। मुकाबलों के लिए तालाब का फिर झील का प्रयोग किया जाता है। जहां मुकाबले होते हैं, वहीं पर तालाब की गहराई चार मीटर के कम नहीं होनी चाहिए।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में कयाकिंग के लिए अपार संभावनाएं हैं क्योंंकि यहां पर तालाबों की कमी नहीं है। जिस भी राज्य में तालाबों की कमी नहीं होती है, वहां पर हमारे खेल के लिए खिलाड़ी तैयार करने में आसानी होती है।
एक सवाल के जवाब में श्री कुशवाहा ने बताया कि कयाकिंग तो ओलंपिक खेल है और यह 1928 से इसमें शामिल हैं। शुरुआत में यह खेल चार देशों में खेला जाता था, लेकिन आज यह 110 खेलों में खेला जाता है। उन्होंने बताया कि ओलंपिक में इस खेल के चार वर्गा के मुकाबले होते हैं। इनमें कैनो पोलो, ड्रैगन बोट के साथ सी और के बोट के मुकाबले शामिल हैं। वैसे राष्ट्रीय स्तर पर 8 अलग-अलग तरह के मुकाबले होते हैं। उन्होंने बताया कि रायपुर में होने वाले मुकाबलों में कैनो पोलो का खेल भी देखने को मिलेगा।
1994 से 97 तक मप्र में खेल संचालक रहे श्री कुशवाहा ने बताया कि मप्र में इस खेल की शुरुआत 1992-93 में हुई थी। वहां के खिलाड़ी आज काफी आगे हैं। मप्र के करीब 50 खिलाड़ियों को नौकरी भी मिल गई है। मप्र की टीम इतनी अच्छी है कि उसने अब आर्मी की टीम को भी हराने का काम किया है। उन्होंने बताया कि इस खेल से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है। श्री कुशवाहा ने बताया कि वे यहां पर वन विभाग के अपर सचिव नारायण सिंह ने भी मिले हैं और उनसे इस खेल में मदद करने का आग्रह किया है। पत्रकारों से चर्चा के दौारान प्रदेश संघ के कार्यकारी अध्यक्ष शशिकांत द्विवेदी, सचिव बीएल साहू और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नवीन साहू उपस्थित थे।
2 टिप्पणियां:
बधाई हो भाई साहब, शादी की सालगिरह की। बेबीलॉन में एक पार्टी तो बनती है आपके चाहने वालों की भी।
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