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शनिवार, 4 जून 2011

राजधानी में एथलीटों का टोटा

राजधानी रायपुर के साथ प्रदेश में एथलीटों का बहुत ज्यादा टोटा है। इस बात का खुलासा साई सेंटर के लिए चुने गए प्रदेश के महज दो खिलाड़ियों से हुआ है। पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी, प्रशिक्षक और जिला एथलेटिक्स संघ के संरक्षक रवि धनकर का कहना है कि एथलेटिक्स में बहुत ज्यादा मेहनत लगती है इसलिए खिलाड़ी अब इस खेल से कतराते हैं।
रायपुर में खुलने वाले साई सेंटर में मदर गेम के रूप में जाने वाले एथलेटिक्स को भी शामिल किया गया है। लेकिन इस खेल में चयन ट्रायल के बाद खिलाड़ियों की जो सूची जारी की गई है, उस सूची तीन खिलाड़ी चुने गए हैं। इनमें से दो खिलाड़ी उप्र के हैं और एक मात्र खिलाड़ी बोर्डिंग के लिए मनोज कुमार भिलाई के हैं। डे बोर्डिंग में एक मात्र खिलाड़ी रायपुर का गणेश राम चुना गया है। राजधानी को देखते हुए साई ने इस खेल के लिए डे बोर्डिंग की भी सुविधा दी थी, लेकिन राजधानी में तो एथलेटिक्स के खिलाड़ी ही नहीं हैं। एक तरफ जहां साई सेंटर के लिए खिलाड़ी नहीं मिले हैं, वहीं खेल विभाग द्वारा लगाए गए 20 खेलों के प्रशिक्षण शिविर में भी एथलेटिक्स के खिलाड़ी न मिलने के कारण इस खेल का शिविर नहीं लगाया गया है।
खिलाड़ियों के न मिलने का कारण जानने जब प्रशिक्षक रवि धनगर से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि एथलेटिक्स ही ऐसा खेल है जिसमें सबसे ज्यादा मेहनत लगती है। यही वजह है कि इस खेल में पालक अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहते हैं। आज के बच्चे भी कम मेहनत वाले खेलों से जुड़ना ज्यादा पसंद करते हंै। इसी के साथ एक बात यह भी है कि इस खेल का अपने यहां कोई एनआईएस कोच भी नहीं है। एक जो सबसे बड़ी कमी है, वह है मैदान की। एथलेटिक्स के लिए सिंथेटिक ट्रेक जरूरी होता है, ऐसा ट्रेक रायपुर क्या पूरे प्रदेश में कहीं नहीं है।

गुरुवार, 27 मई 2010

राज्य सरकार की मंजूरी का इंतजार

राजधानी रायपुर के साई सेंटर को खोलने के लिए हमें समय नहीं लगने वाला है। इसके लिए हमें केन्द्र सरकार से मंजूरी मिल गई है, अब हमें छत्तीसगढ़ सरकार की मंजूरी का इंतजार है। वहां से मंजूरी मिलते ही इसको प्रारंभ करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी जाएगाी।
ये बातें हरिभूमि से भारतीय खेल प्राधिकरण साई सेंटर के भोपाल के क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडु ने कहीं। उन्होंने संपर्क करने पर कहा कि उनके पास छत्तीसगढ़ के खेल विभाग से यह खबर जरूर आ गई है कि नगर निगम ने हमारी सभी शर्तों को मान लिया है और इन शर्तों को मानने के बाद अंतिम मंजूरी के लिए फाइल को मंत्रालय में नगरीय निकाय विभाग में भेजा गया है, लेकिन वहां से अब तक सरकार की मंजूरी की जानकारी हमारे पास नहीं आई है। वहां से जानकारी आने की देर है बस हम लोगों का पूरा दल पहुंच जाएगा रायपुर में साई सेंटर प्रारंभ करने के लिए।
यहां यह बताना लाजिमी होगा कि रायपुर में खुलने वाले साई सेंटर में उस समय रोड़ा आ गया था जब निगर निगम को इस बात की जानकारी लगी थी कि साई की एक शर्त यह है कि वह जो भी पैसा सेंटर के विकास में खर्च करेगा उसका कुछ प्रतिशत निगम को ३० साल की लीज समाप्त होने पर उस स्थिति में वापस करना पड़ेगा जब निगम लीज बढ़ाने के स्थान पर सेंटर के लिए दिए जाने वाले स्पोट्र्स काम्पलेक्स के आउटडोर स्टेडियम को वापस लेता है। ऐसे में निगम को इस बात का डर लगा कि साई द्वारा खर्च किए गए करोड़ों रुपए वह कहां से देगा। ऐसे में निगम को केन्द्रीय खेल राज्य मंत्री प्रतीक प्रकाश बापू पाटिल ने समझाया था कि जो राशि निगम को ३० साल बाद वापसी देनी पड़ेगी वह नाम मात्र की होगी।
जब निगम को यह बात समझ आई तो उसने जहां अपनी एमआईसी की बैठक में ३० साल की लीज को मंजूरी दे दी है, वहीं साई की ३० साल कुछ प्रतिशत राशि वापस देने की भी बात मान ली है। निगम से मंजूरी के बाद फाइल एक माह पहले नगरीय निकाय को भेजी गई है, लेकिन वहां से अब तक इसको मंजूरी न मिलने के कारण साई सेंटर लटका हुआ है। खेल संघों के पदाधिकारी और खिलाड़ी कहते हैं कि नगरीय निकाय को जल्द मंजूरी दे दी चाहिए।

शनिवार, 28 नवंबर 2009

शहरी कॉलेजों में वालीबॉल का क्रेज नहीं

प्रदेश की राजधानी रायपुर के कॉलेजों में वालीबॉल का क्रेज ही नहीं है। यह बात एक फिर तब सामने आई जब यहां पर अंतर कॉलेज महिला स्पर्धा का आयोजन किया गया। इस स्पर्धा में ६ टीमों ने ही शिरकत की। इसके पीछे का कारण कॉलेजों के खेल अधिकारियों का खेलों की तरफ ध्यान न देना बताया जा रहा है।

मलेरिया मैदान में आयोजित रायपुर सेक्टर अंतर कॉलेज महिला वालीबॉल में खेलने के लिए रायपुर सेक्टर के ५० से ज्यादा कॉलेजों में से महज छह कॉलेजों महंत लक्ष्मी नारायण, डागा कालेज, साइंस, नवीन, अग्रसेन एवं डिग्री गल्र्स कॉलेज की टीमें ही आईं। इतनी कम टीमें क्यों आई इसके बारे में मालूम करने पर पता चला कि ज्यादातर कॉलेजों के खेल अधिकारियों को टीमें बनाने में रूचि ही नहीं रहती है। जिनका खेलों से करीबी रिश्ता है ऐसे खेल अधिकारी दूसरे खेलों की खिलाडिय़ों को लेकर भी टीमें बनाकर स्पर्धा में लाते हैं। जिन कॉलेजों की टीमें खेलने आई थीं उसमें से हर टीम में वालीबॉल के साथ हॉकी, नेटबॉल, कबड्डी, बास्केटबॉल के साथ और कई खेलों से जुड़ी खिलाड़ी थीं। इन खिलाडिय़ों को मनाकर खेल अधिकारी टीमें बनाकर लाए।

खेल अधिकारी टीमें बनाने के प्रति कितने लापरवाह रहते हैं उसका एक नूमना मैदान में यह भी देखने को मिला कि एक कॉलेज के खेल अधिकारी से आयोजकों ने जब फोन करके पूछा कि उनके कॉलेज की टीम आ रही है या नहीं तो उनका जवाब था कि कॉलेज पहुंचने के बाद ही इस बारे में बता पाऊंगा। सोचने वाली बात है कि उस कॉलेज के खेल अधिकारी को यह मालूम ही नहीं था कि उनके कॉलेज की टीम बनी है या नहीं और वह खेलने आएगी या नहीं।

खेल अधिकारी रूचि नहीं दिखाते

खेलों के जानकारों की माने तो किसी भी खेल में कम टीमें आने का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि कॉलेजों के खेल अधिकारी टीमें बनाने में रूचि ही नहीं लेते हैं। यह बात ठीक भी लगती है। इसी के साथ एक बात यह भी है कि जब भी विश्व विद्यालय के स्थान पर राजधानी में किसी खेल संस्था द्वारा आयोजन किया जाता है तो उस आयोजन में बहुत ज्यादा टीमें आ जाती हैं। इन आयोजनों में टीमें इसलिए आ जाती हैं क्योंकि खिलाड़ी भी रूचि दिखाते हैं, लेकिन जब विवि का आयोजन होता है तो खेल अधिकारियों के ध्यान न देने के कारण खिलाड़ी भी रूचि नहीं दिखाते हैं।

कम बजट के कारण स्पर्धा की खानापूर्ति

वालीबॉल स्पर्धा के आयोजन में एक बात यह भी सामने आई कि कम बजट होने के कारण स्पर्धा की केवल खानापूर्ति की जाती है। वालीबॉल का आयोजन दो दिन का होना था, इसके लिए उच्च शिक्षा विभाग से २५०० का ही बजट मिलने की बात आयोजक अग्रसेन कॉलेज के अधिकारियों ने बताई। इतना कम बजट होने के कारण आयोजन को एक दिन में ही निपटा दिया गया। कम टीमें होने के कारण खेल के जानकार और खिलाड़ी चाहते थे कि स्पर्धा को लीग कम नाकआउट करवाया जाए ताकि खिलाडिय़ों को ज्यादा मैच खेलने को मिले, लेकिन आयोजक कॉलेज ने स्पर्धा में शामिल कॉलेजों के खेल अधिकारियों से बात करके स्पर्धा को नाकआउट करवाया और महज दो घंटे में ही सारा खेल खत्म कर दिया गया।

डिग्री गल्र्स को खिताब

स्पर्धा में डिग्री गल्र्स कॉलेज ने खिताब पर कब्जा जमाया। स्पर्धा के पहले मैच में डागा कॉलेज ने साइंस कॉलेज को सीधे सेटों में २५-५, २५-१२ से परास्त किया। दूसरे मैच में महंत कॉलेज ने नवीन कॉलेज को कड़े मुकाबले में २५-२०, १४-२५, १५-१२ से मात दी। तीसरे मैच में डिग्री गल्र्स कॉलेज ने डागा कॉलेज को २५-१३, २५-११ से परास्त कर फाइनल में स्थान बनाया। यहां पर डिग्री गल्र्स कॉलेज ने महंत कॉलेज को एकतरफा मुकाबले में २५-८, २५-१५ से मात देकर खिताब जीत लिया। स्पर्धा के बाद राज्य स्पर्धा के लिए रायपुर सेक्टर की १६ संभावित खिलाडिय़ों का चयन किया गया। ये खिलाड़ी इस प्रकार हैं- चंदा कुमारी, मीना ढाडे, फरहत अंजुम, हेमलता जायसवाल, सुमन, रेणु निषाद, भारती पैकरा (डिग्री), सुलोचना सागर, सरोज वर्मा (महंत कॉलेज), ज्योति सिंह (साइंस कॉलेज), रश्मि देवांगन, कविता पटले (नवीन कॉलेज), मरलीन जोंस, मीनाक्षी शिवहारे (डागा कॉलेज), मनीषा यादव (अग्रसेन कॉलेज)।

सोमवार, 23 नवंबर 2009

आबाद होने से पहले ही मैदान बर्बाद


राजधानी के खेल मैदानों में दूसरे आयोजनों से खिलाड़ी परेशान


राजधानी रायपुर के स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स में अभी आउटडोर स्टेडियम पूरी तरह से बन भी नहीं पाया है कि इसके बर्बाद होने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। इस मैदान को एक धार्मिक आयोजन के लिए देने के कारण एक राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल स्पर्धा का आयोजन खटाई में पड़ता नजर आ रहा है। राजधानी के ज्यादातर मैदानों को दूसरे आयोजनों के लिए देने की वजह से खिलाड़ी परेशान हैं। सप्रे स्कूल के मैदान को हाई कोर्ट के निर्देश के बाद भी लगातार दूसरे आयोजनों के लिए दिया जा रहा है।
स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के आउटडोर स्टेडियम में इन दिनों एक बड़ा सा डोम लगाने का काम चल रहा है। इस डोम की वजह से मैदान की पूरी घास बर्बाद हो गई है। इस डोम को खेल के आयोजन के लिए नहीं बल्कि दूसरे आयोजन के लिए लगाया जा रहा है। यह आयोजन यहां पर ६ से १४ दिसंबर तक होगा। इस आयोजन की वजह से यहां पर २६ दिसंबर से होने वाली अखिल भारतीय फुटबॉल स्पर्धा के आयोजन को ङाटका लगा है। यह आयोजन खटाई में पड़ता नजर आ रहा है। आयोजकों का कहना है कि डोम को निकालने में १० दिनों से ज्यादा का समय लग जाएगा, ऐसे में आयोजन होना संभव नहीं है। आयोजन के लिए मैदान को तैयार करने में कम से कम तीन दिनों का समय चाहिए।


घास हो गई चौपट

राजधानी मे स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के आउटडोर स्टेडियम में बना फुटबॉल का मैदान एक मात्र ऐसा मैदान है जिसमें घास है। इस घास वाले मैदान को लेकर खिलाडिय़ों में उत्साह था कि चलो इस मैदान के मिलने के बाद खिलाडिय़ों के मैदान की कमी दूर हो जाएगी और खिलाडिय़ों को गिरने पर चोट नहीं लगेगी। लेकिन इस मैदान के बसने से पहले ही उजडऩे की तैयारी हो गई है। दूसरे आयोजन के लिए जो डोम लगाया जा रहा है, उसकी वजह से घास चौपट हो गई है। फुटबॉल से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि मैदान में घास उगाने के लिए कम से कम चार माह का समय लगता है और उसको चार दिनों में ही चौपट कर दिया गया। इसके पहले भी इस मैदान में रायपुर नगर निगम के एक नेता की बेटी की शादी की पार्टी देने के कारण मैदान खराब हो गया था, तब फिर से मैदान में घास उगाई गई। इसमें चार माह का समय लगा था। इस आयोजन के बाद एक और आयोजन यहां करवाया गया। अब फिर से एक बड़े आयोजन के लिए ैदान देने के कारण फिर से घास की बर्बादी हो रही है। जानकार कहते हैं कि डोम लगाने से पहले अगर रोलर चला दिया जाता तो घास को बचाया जा सकता था, पर ऐेसा नहीं किया गया। डोम लगाने का ठेका लेने वालों को इस बात से कोई मतलब नहीं रहता है कि मैदान खराब हो जाएगा। डोम लगाने लिए मैदान में हर तरफ गड्ढें कर दिए गए हैं। इन गड्ढों को पटाने में भी समय लगेगा। खिलाडिय़ों का कहना है कि जब निगम ने स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स का निर्माण प्रारंभ किया था तभी कहा गया था कि मैदानों को दूसरे आयोजनों के लिए नहीं दिया जाएगा, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण मैदान के पूर्ण होने से पहले ही इसमें खेलों के स्थान पर दूसरे आयोजन होने लगे हैं।


हाई कोर्ट के निर्देशों का भी पालन नहीं

सप्रे शाला के मैदान को लगातार दूसरे आयोजनों के लिए देने के कारण सदर बाजार के एक क्रिकेट क्लब ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका लगाई तो इस याचिका पर मैदान को अन्य आयोजनों के लिए न देने के निर्देश दिए गए। इन निर्देशों के बाद भी मैदान को लगातार दूसरे आयोजनों के लिए दिया जा रहा है। पिछले माह यहां पर एक आयोजन किया गया, अब फिर से यहां पर १४ से १६ नवंबर तक एक और आयोजन किया गया। इस आयोजन के कारण मैदान बर्बाद हो गया है और हर तरफ कचरे के अलावा कुछ और नजर नहीं आता है। अगले माह मैदान को एक कांग्रेसी नेता की बेटी की शादी के लिए दे दिया गया है। इधर साइंस कॉलेज के मैदान का भी यही हाल है, वहां राज्योत्सव से लेकर हर बड़ा आयोजन होने के कारण यह मैदान भी खेलने लायक नहीं रह गया है।

मैदान खराब न करने की शर्तों पर दिया

मैदान को खेल की बजाए दूसरे आयोजन के लिए देने के बारे में जब महापौर सुनील सोनी ने पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैदान को खराब न करने की शर्तों पर दिया गया है। जब उनको बताया गया कि मैदान की घास तो पूरी तरह से चौपट हो रही है, तो इस पर उन्होंने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया और कहा कि मैदान देने की मंजूरी उन्होंने नहीं निगम आयुक्त ने दी है और वैसे भी मैदान तो भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को दे दिया गया है, इसके लिए उन्हीं से मंजूरी ली गई होगी। इस संबंध में खेल प्राधिकरण साई के क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडू ने संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि मैदान अभी साई को सौंपा नहीं गया है और फिलहाल निगम आयुक्त के पास सारे अधिकार हैं, हमारे पास किसी भी आयोजन की मंजूरी के लिए कोई पत्र नहीं आया है।

सोमवार, 19 अक्टूबर 2009

राजधानी में जुटेंगे प्रदेश के खिलाड़ी

राजधानी रायपुर में एक बार फिर से स्कूली खिलाडिय़ों का मेला लगने वाला है। इस बार देश भर के नहीं बल्कि राज्य भर के सात जोनों के खिलाड़ी यहां आएंगे और ९ खेलों में अपनी प्रतिभा दिखाकर प्रदेश की टीमों में स्थान बनाने का प्रयास करेंगे। ये मुकाबले यहां पर ७ नवंबर से होंगे। जिन खेलों के मुकाबले होंगे उनमें नए खेल रोप स्कीपिंग के साथ पहली बार राज्य खेलों में शामिल किए गए जंप रोप के मुकाबले भी होंगे।

राजधानी रायपुर में कुछ दिनों पहले ही देश भर से आए खिलाडिय़ों ने नेटबॉल के साथ कबड्डी में भी अपने जौहर दिखाए थे। इन खिलाडिय़ों का खेल देखकर प्रदेश के खिलाडिय़ों ने भी काफी कुछ सीखा। इस चैंपियनशिप में पहली बार प्रदेश को तीन खिताब मिले। अब फिर से राष्ट्रीय चैंपियनशिप की तैयारी में जुटे शिक्षा विभाग ने राजधानी में ९ खेलों कैरम बालक बालिका अंडर १७ एवं १९ साल, टेनीक्वाइट अंडर १९ साल, साफ्टबॉल अंडर १४ साल, लॉन टेनिस अंडर १४ एवं १७ साल, कुश्ती बालक वर्ग णें अंडर १४, १७ एवं १९ के साथ बालिका वर्ग में अंडर १९ साल, रोप स्कीपिंग अंडर १९ साल। इस खेल की राष्ट्रीय चैंपियनशिप भी छत्तीसगढ़ में होनी है। फिलहाल इस नए खेल की राष्ट्रीय चैंपियनशिप को जनवरी में राजनांदगांव में करवाने की योजना है लेकिन इसको राजधानी में करवाने की भी बात की जा रही है। टेनिस बॉल क्रिकेट में अंडर १९ साल और जंप रोप में अंडर १९ साल के बालक-बालिका खिलाड़ी यहां आएंगे और अपनी प्रतिभा दिखाने का काम करेंगे।

इस प्रतियोगिता में प्रदेश के सात जोनों के खिलाड़ी आएंगे। शिक्षा विभाग को सात जोनों में बांटकर ही राज्य स्तर के मुकाबले करवाए जाते हैं। राजधानी में ७ नवंबर से १० नवंबर तक मुकाबले होंगे। इन मुकाबलों से ही प्रदेश की टीमों का चयन किया जाएगा। चुनी गई टीमें राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेलने जाएंगी।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

साई सेंटर लटका-खिलाडिय़ों को झटका

राजधानी रायपुर का साई का सेंटर लटक गया है और इसके लटकने से कई खेलों के खिलाडिय़ों को ङाटका लग गया है। इस सेंटर के लिए एमओयू की पूरी तैयारी होने के बाद अचानक एमओयू नहीं हो सका। एमओयू न होने के लिए तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। अब लगता है कि इस एमओयू का हो पाना लंबे समय तक संभव नहीं है। खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि निगम आयुक्त अमित कटारिया के वापस आते ही एमओयू हो जाएगा, लेकिन एमओयू की राह में कई परेशानियां हैं जिनका दूर हो पाना इतना आसान नहीं लग रहा है।

रायपुर के स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स में साई सेंटर के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण और नगर निगम के बीच एमओयू करने की पूरी तैयारी यहां पर १७ सितंबर को कर ली गई थी, इस दिन साई के क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडु रायपुर आए थे। उनके आने का फायदा उठाते हुए खेल विभाग ने एमओयू को अंतिम रूप देने के लिए पूरी तैयारी की और निगम के आयुक्त अमित कटारिया के बाहर होने की वजह से एमओयू में हस्ताक्षर करने के लिए अतिरिक्त आयुक्त अमृता चोपड़ा को सहमत कर लिया गया था। लेकिन जिस दिन एमओयू होना था उसी दिन अचानक अतिरिक्त आयुक्त ने एमओयू करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि इस मामले में उनको पूरी जानकारी नहीं है, साथ ही उन्होंने कहा कि शासन से इसके लिए अनुमति नहीं ली गई है। ऐसे में एमओयू को स्थगित कर दिया गया। इस बारे में तब आरके नायडु से स्पष्टीकरण दिया था कि निगम को कुछ बातों को लेकर संदेह है उनका संदेह दूर कर दिया जाएगा और एमओयू जल्द हो जाएगा।

लेकिन इधर जिस तरह की खबरें आ रही है उससे लगता नहीं है कि यह एमओयू अब जल्द हो पाएगा। अगर यह एमओयू और ज्यादा लटका तो यह बात तय है कि निगम के इस सत्र में यह नहीं हो पाएगा, क्योंकि नवंबर में निगम के चुनाव होने हैं और संभवत: अक्टूबर के अंत तक आचार सहिता लग जाएगी। एमओयू के लटकने का एक सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि एमओयू के दिन नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत को इसकी जानकारी न देने के कारण वे बहुत ज्यादा खफा हुए थे। ऐसे में निगम के अतिरिक्त आयुक्त ने एमओयू के लिए इंकार कर दिया। खेल बिरादरी से जुड़े कई खेल संघों के पदाधिकारी लगातार इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि एमओयू के न होने के पीछे यही कारण सबसे बड़ा है। वरना एमओयू के लिए निगम आयुक्त अमित कटारिया जब तैयार थे और जब एमओयू के एक दिन पहले अतिरिक्त आयुक्त को सारी बातें बताकर उनको एमओयू के लिए सहमत कर लिया गया था तो अचानक उन्होंने ऐन एमओयू के समय इंकार क्यों कर दिया?

इंडोर स्टेडियम भी एक कारण

एमओयू के स्थगित होने के पीछे इंडोर स्टेडियम को भी एक कारण माना जा रहा है। साई ने यहां पर ११ खेलों के प्रशिक्षण केन्द्र की योजना बनाई है, इसमें ५ खेल इंडोर हैं। पूर्व में आउटडोर स्टेडियम में ६ खेलों के लिए केन्द्र खोलने की बात थी। एमओयू में इंडोर स्टेडियम को भी शामिल करने के कारण निगम आपति कर रहा है। ऐसे में साई से इंडोर स्टेडियम के लिए आए पत्र को खेल विभाग ने निगम आयुक्त को भेजकर इंडोर स्टेडियम को भी एमओयू में शामिल करने का आग्रह किया है। अगर इंडोर स्टेडियम को एमओयू में शामिल करने के लिए एमआईसी की मंजूरी की जरूरत पड़ी तो समझे कि मामला लटक जाएगा और अगले साल निगम की नई परिषद तक इंतजार करना पड़ेगा।

आयुक्त के आने पर हो जाएगा एमओयू

खेल संचालक जीपी सिंह को इस बात का पूरा भरोसा है कि निगम आयुक्त अमित कटारिया के वापस आते ही एमओयू हो जाएगा। वे एक अक्टूबर को आ रहे हैं। बकौल श्री सिंह अमित कटारिया को पूरी योजना के बारे में बारिकी से मालूम है ऐसे में उनके आने पर एमओयू संभव है। उन्होंने पूछने पर कहा कि अब इस बारे में मैं क्या बता सकता हूं कि इंडोर स्टेडियम को लेकर निगम सहमत होगा या नहीं। उन्होंने कहा कि हमने तो साई से आए पत्र को निगम के पास भेज दिया है। उनका कहना है कि वैसे इंडोर को लेकर आपति नहीं होनी चाहिए।

खेल बिरादरी में मायूसी

एमओयू के लटकने के बाद राजधानी की खेल बिरादरी में मायूसी है। राजधानी के खिलाड़ी और खेल संघ चाहते थे कि यह एमओयू जल्द हो जाए ताकि यहां की प्रतिभाओं को निखरने का मौका मिल सके। साई के सेंटर से ११ खेलों की प्रतिभाओं को मौका मिलता। साई में जैसाी सुविधाएं हैं वैसी सुविधाएं खिलाडिय़ों को नहीं मिल पा रही हैं। खेल बिरादरी इस उम्मीद में है कि यह एमओयू निगम के इसी सत्र में हो जाए, अगर मामला लटका तो अगली परिषद के आने के बाद उसको सहमत करने में समय लग जाएगा और जरूरी नहीं है कि अगली परिषद के लोग इस योजना को समङों और तैयार हो जाएं।

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