बुधवार, 6 अक्तूबर 2010
रुस्तम सारंग ने पदक नहीं दिल जीता
छत्तीसगढ़ के लाड़ले रुस्तम सारंग ने जब १५३ किलो का वजन आसानी से उठा लिया तो लगा कि चलो छत्तीसगढ़ की ङाोली में भी एक पदक आ गया। लेकिन वजन उठाने के बाद भी रुस्तम के हाव-भाव देखकर लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है। बाद में मालूम हुआ कि रुस्तम ने वजन तो जरूर उठा लिया था, लेकिन उनका हाथ हिल गया था जिसकी वजह से उनके हाथ से कांस्य पदक भी फिसल गया और उनको चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। रुस्तम के पदक से चूकने पर प्रदेश ेकी खेल बिरादरी को अफसोस तो जरूर है, पर सभी का ऐसा मानना है कि रुस्तम ने भले पदक नहीं जीता है, पर उनके खेल ने सबका दिल जरूर जीत लिया है।
कामनवेल्थ में मंगलवार को भारोत्तोलन के मुकाबले हुए। दोपहर को दो बजे से ६२ किलो ग्राम के मुकाबले होने थे जिसमें अपने राज्य के रुस्तम सारंग भी खेल रहे थे। राज्य के खेल प्रेमी दोपहर दो बजे से ही टीवी से चिपके हुए थे, लेकिन उनको मुकाबले देखने का मौका ३.३० बजे के बाद नसीब हुआ। जब रुस्तम सारंग मंच पर आए और उन्होंने पहले प्रयास में १५० किलो वजन उठा लिया तो लगा कि छत्तीसगढ़ को जरूर पदक मिल जाएगा। मलेशिया के दो वेटलिफ्टरों के साथ तीसरे वेटलिफ्टर श्रीलंका के थे जिनके बीच मुकाबला हो रहा था। ऐसे में रुस्तम को जब १५३ किलो वजन उठाने के लिए बुलाया गया तो उन्होंने वजन बहुत आसानी से उठा लिया, लेकिन वे अतिउत्साह में अपने हाथ का संतुलन कायम नहीं रख सके और उनके हाथ का हिलना ही घातक रहा और उनके हाथ से पदक चला गया।
जैसे ही रुस्तम के हाथ से पदक जाने की खबर प्रदेश की खेल बिरादरी को लगी, सब निराश हो गए।
काश हाथ न हिलता
रुस्तम के पदक से चूकने से सबसे ज्यादा निराश उनके पिता और कोच बुधराम सारंग है। वे कहते हैं कि हम सब जानते हैं कि रुस्तम की क्षमता १५३ किलो नहीं बल्कि १६० किलो तक है। अब इसका क्या किया जाए कि किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वजन उठाने के बाद अचानक उनका हाथ हिल गया और वे फेल हो गए। बुधराम सारंग कहते हैं कि मुङो ही नहीं छत्तीसगढ़ के हर खिलाड़ी को इस बात का भरोसा था कि रुस्तम पदक जीतकर लौटेंगे। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो सका। बुधराम ने कहा कि उनको अपने बेटे पर नाज है, उसने जो प्रयास किया वह कम नहीं है।
आज का दिन रुस्तम नहीं था: पांडे
भारोत्तोलन के एनआईएस कोच गजेन्द्र पांडे कहते हैं कि मैं जानता हूं कि रुस्तम की क्षमता १५३ किलो से ज्यादा है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि आज का दिन रुस्तम का नहीं था। मैं इतना जानता हूं कि रुस्तम के लिए १५५ किलो वजन उठाना भी आम है। उन्होंने कहा कि जब रुस्तम को १५३ किलो वजन उठाने के लिए कहा गया तो मुङो अफसोस हो रहा था। मैं रहता तो उससे १५५ किलो वजन उठवाता ताकि वह स्वर्ण पदक तक पहुंचता। लेकिन भारतीय दल के प्रशिक्षकों ने रिस्क लेना उचित नहीं समङाा। खैर भले रुस्तम के हाथ से पदक चला गया लेकिन उनके खेल ने दिल जीत लिया। वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे भी कहते हैं कि मैंने भी टीवी पर रुस्तम का खेल देखा। उनका पदक से चूकना अफसोसजनक है, लेकिन वास्तव में रुस्तम का खेल काबिले दाद है।
अब मैं क्या बोलूं: रुस्तम
रुस्तम की प्रक्रिया जानने जब उनको फोन लगाया गया तो रुस्तम का रोना ही नहीं रुक रहा था। वे बहुत निराश थे। वे बोले कि मैं क्या बोलूं। मैं कुछ समङा नहीं पा रहा हूं। मैंने दो साल तक इस दिन के लिए मेहनत की थी, लेकिन मैं नहीं जानता था कि मेरी किस्मत मुङो इस तरह से दगा दे जाएगी, कि मैं पदक से वंचित हो जाऊंगा। मुङो अफसोस है कि मैं अपने देश और राज्य के लिए पदक नहीं जीत सका। अब मैं इससे ऊबर कर आगे के मुकाबलों पर ध्यान देने का काम करूंगा। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि आज जो हुआ है उसे भूल पाना संभव नहीं है। लेकिन एक खिलाड़ी को एक हार से सबक लेते हुए आगे ऐसी गलती न करने का संकल्प लेना पड़ता है और मैं भी संकल्प ले रहा हूं कि आगे ऐसी गलती नहीं होगी। रुस्तम ने कहा कि अब यह बात तय है कि मैं अपना पूरा ध्यान ओलंपिक पर लगाने का काम करूंगा और मेरा अगला लक्ष्य ओलंपिक का पदक होगा।
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1 टिप्पणी:
चलिए, यह भी कमतर नहीं...दिल तो जीत ही लिया.
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