छत्तीसगढ़ की राजधानी में अगर मुक्केबाजी की अकादमी बनानी है तो इसके लिए सरकार खेल विभाग के माध्यम से खुद पहल करे इसके लिए मोनेट जैसी निजी कंपनी को जमीन देने की क्या जरूरत है।
ऐसा मानना है प्रदेश की खेल बिरादरी से जुड़े खेलों के जानकारों और खेल विशेषज्ञों का। जिस तरह से मोनेटे ने ओलंपियन विजेन्दर सिंह के साथ कुछ अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को बुलाकर उनका सम्मान एक कमरे में करवाया है, उससे प्रदेश की खेल बिरादरी खफा है कि किसी को भी मोनेट ने नहीं पूछा और यहां इतने स्टार खिलाडिय़ों को एक कमरे की ही शान बनाया गया। खेल के जानकार साफ कहते हैं कि खिलाड़ी सम्मान और प्रोत्साहन के भूखे होते हंै। अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजों को अगर राज्य खेल महोत्सव के बड़े मंच पर सम्मानित किया जाता तो इससे न सिर्फ प्रदेश के खिलाडिय़ों का हौसला अपने बीच स्टार मुक्केबाज को पाकर बढ़ता, बल्कि स्टार खिलाड़ी भी अपने को खिलाडिय़ों के बीच पाकर खुश होते। जब एक स्टेडियम में पांच हजार खिलाड़ी स्टार खिलाडिय़ों के लिए ताली बजाते तो इससे स्टार खिलाडिय़ों का हौसला भी और बढ़ता और उनको ओलंपिक में सफलता पाने के लिए और मेहनत करने की राह मिलती।
प्रदेश की खेल बिरादरी के साथ खेल विभाग के भी आला अधिकारियों का ऐसा मानना है सरकार को मोनेट को जमीन देने के स्थान पर खुद पहल करते हुए नई राजधानी में अकादमी खोलनी चाहिए। विशेषज्ञों की मानें तो अकादमी में सामानों के लिए जितनी राशि नहीं लगेगी उससे ज्यादा की तो जमीन देनी पड़ेगी। ऐसे में सरकार का कहीं नाम नहीं होना है। सरकार अगर खुद अकादमी खोलती है तो इसका फायदा प्रदेश के सभी मुक्केबाजों को मिल पाएगा।
ऐसा मानना है प्रदेश की खेल बिरादरी से जुड़े खेलों के जानकारों और खेल विशेषज्ञों का। जिस तरह से मोनेटे ने ओलंपियन विजेन्दर सिंह के साथ कुछ अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को बुलाकर उनका सम्मान एक कमरे में करवाया है, उससे प्रदेश की खेल बिरादरी खफा है कि किसी को भी मोनेट ने नहीं पूछा और यहां इतने स्टार खिलाडिय़ों को एक कमरे की ही शान बनाया गया। खेल के जानकार साफ कहते हैं कि खिलाड़ी सम्मान और प्रोत्साहन के भूखे होते हंै। अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजों को अगर राज्य खेल महोत्सव के बड़े मंच पर सम्मानित किया जाता तो इससे न सिर्फ प्रदेश के खिलाडिय़ों का हौसला अपने बीच स्टार मुक्केबाज को पाकर बढ़ता, बल्कि स्टार खिलाड़ी भी अपने को खिलाडिय़ों के बीच पाकर खुश होते। जब एक स्टेडियम में पांच हजार खिलाड़ी स्टार खिलाडिय़ों के लिए ताली बजाते तो इससे स्टार खिलाडिय़ों का हौसला भी और बढ़ता और उनको ओलंपिक में सफलता पाने के लिए और मेहनत करने की राह मिलती।
प्रदेश की खेल बिरादरी के साथ खेल विभाग के भी आला अधिकारियों का ऐसा मानना है सरकार को मोनेट को जमीन देने के स्थान पर खुद पहल करते हुए नई राजधानी में अकादमी खोलनी चाहिए। विशेषज्ञों की मानें तो अकादमी में सामानों के लिए जितनी राशि नहीं लगेगी उससे ज्यादा की तो जमीन देनी पड़ेगी। ऐसे में सरकार का कहीं नाम नहीं होना है। सरकार अगर खुद अकादमी खोलती है तो इसका फायदा प्रदेश के सभी मुक्केबाजों को मिल पाएगा।
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