शनिवार, 26 मार्च 2011

काश अपने पास भी एस्ट्रो टर्फ होता

राजधानी के खिलाड़ियों को इस बात का अफसोस है कि राज्य बनने के दस साल बाद में राज्य में एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं है। एस्ट्रो टर्फ की कमी के कारण ही छत्तीसगढ़ की हॉकी टीमों को झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में खेलने का मौका नहीं मिला। खिलाड़ी एक स्वर में कहते हैं कि काश हमारे पास भी एस्ट्रो टर्फ होता तो हमारी टीमें भी राष्ट्रीय खेलों में खेलतीं और हमारे खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों से खेलने के लिए मजबूर न होना पड़ता।
झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में छत्तीसगढ़ के 18 खेलों की टीमें खेल रही हैं, लेकिन इन खेलों में अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी की टीमें शामिल नहीं है। छत्तीसगढ़ से हॉकी की टीमें इसलिए खेलने की पात्रता प्राप्त नहीं कर पाईं क्योंकि हमारे पास एस्ट्रो टर्फ ही नहीं है। खिलाड़ियों के साथ हॉकी के प्रशिक्षकों का भी ऐसा मानना है एस्ट्रो टर्फ की कमी के कारण राज्य की प्रतिभाओं का लाभ राज्य को नहीं मिल पा रहा है। यह राज्य के लिए दुर्भाग्य की बात है कि राज्य की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सबा अंजुम जहां झारखंड से खेलीं, वहीं चार खिलाड़ियों को असम के लिए खेलना पड़ा।
प्रतिभाओं की कमी नहीं
भारतीय महिला हॉकी टीम की लंबे समय तक गोलकीपर रहीं पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नीता डुमरे कहती हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपने राज्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। मैं जहां दस साल तक भारतीय टीम से खेलीं, वहीं अब सबा अंजुम के साथ मृणाल चौबे भी खेल रहे हैं। यह सब उस स्थिति में हुआ है जब अपने राज्य में एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं है। अगर अपने राज्य में एक भी एस्ट्रो टर्फ रहता तो इसमें संदेह नहीं है कि अपनी महिला के साथ पुरुष टीम भी आसानी से राष्ट्रीय खेलों में खेलने की पात्रता प्राप्त कर लेती। उन्होंने कहा कि अपने राज्य में साई का सेंटर भी न होने के कारण राज्य की आधा दर्जन से ज्यादा खिलाड़ी भोपाल के साई सेंटर में हैं। यहां भी जल्द लड़कियों के लिए साई सेंटर खोलना चाहिए।
अकादमी भी जरूरी
राष्ट्रीय खिलाड़ी और एनआईएस कोच रश्मि तिर्की के साथ वर्षा शुक्ला और शोभा वर्टी का एक स्वर में कहना है कि राज्य में एस्ट्रो टर्फ के साथ अकादमी का भी होना जरूरी है। रश्मि कहती हैं कि जहां तक छत्तीसगढ़ की महिला टीम का सवाल है तो हमारी टीम बहुत अच्छा है। एस्ट्रो टर्फ की कमी के कारण ही राष्ट्रीय स्पर्धा में हमारी टीम मात खा जाती है। उन्होंने बताया कि इस साल जब सीनियर वर्ग की राष्ट्रीय स्पर्धा हुई तो छत्तीसगढ़ के पूल में मणिपुर और उप्र की टीमें थीं। हमारी टीम ने मणिपुर को 4-1 से मात दी, लेकिन हमारी टीम उप्र से मात खा गई जिसके कारण हमारी टीम क्वार्टर फाइनल में नहीं पहुंच सकी। अगर हम क्वार्टर फाइनल में पहुंच जाते तो हमें राष्ट्रीय खेलों में खेलने की पात्रता मिल जाती। रश्मि का कहना है कि जब 15 दिनों के प्रशिक्षण में हमारी खिलाड़ी इतना अच्छा कर लेती हैं तो एस्ट्रो टर्फ के साथ जब राजधानी में अकादमी हो जाएगी और हमारी खिलाड़ी साल भर अभ्यास करेंगी तो कौन रोक पाएगा हमारी टीम को सफलता से।
कई राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने वाली वर्षा शुक्ला कहती हैं कि एस्ट्रो टर्फ में खेलने से तकनीक ही बदल जाती है, ऐसे में हमारी खिलाड़ी वहां टिक नहीं पाती हंै। उनका कहना है कि हमेशा हॉकी खिलाड़ियों को लालीपोप दिखा दिया जाता है, राज्य बनने के दस साल बाद भी राज्य में एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं लगा है। वर्षा कहती हैं कि पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बाद प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा की है, लेकिन अब तक किसी भी घोषणा पर अमल नहीं हो सका है। अब भी समय है अगर जल्द एस्ट्रो टर्फ लग जाएगा तो इसका फायदा छत्तीसगढ़ की मेजबानी में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में मिल सकेगा।
राष्ट्रीय खिलाड़ी शोभा वर्टी कहती हैं कि राजधानी में तो जल्द से जल्द एस्ट्रो टर्फ लगाना चाहिए। हम लोगों के खेलने के लिए एक भी हॉकी का मैदान नहीं है। महिला खिलाड़ी पुलिस मैदान में अभ्यास करती हैं, लेकिन जब भी वहां कोई आयोजन होता है, हमें बाहर कर दिया जाता है, ऐसे में हम सड़क पर अभ्यास करने के लिए मजबूर हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि हम छत्तीसगढ़ बनने से पहले से ही एक मैदान के लिए तरस रही हैं। हमारे राज्य संघ ने एक बार किराए का मैदान लिया था, लेकिन संघ के पास इतना पैसा नहीं होता है कि वह खिलाड़ियों के लिए किराए का मैदान ले सके।
टर्फ होने से राष्ट्रीय स्पर्धाएं होंगी
हॉकी के कोच और प्रदेश हॉकी के पूर्व कार्यालय सचिव मुश्ताक अली प्रधान का कहना है कि एस्ट्रो टर्फ की कमी के कारण ही राज्य को सीनियर वर्ग की राष्ट्रीय चैंपियनशिप की मेजबानी नहीं मिल पाई है। उन्होंने बताया कि जब उन लोगों के पास राज्य संघ था तो 2003 में नेताजी स्टेडियम में राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप का आयोजन किया गया था, उसी समय जहां प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने नेताजी स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा की थी, वहीं जशपुर में भी एस्ट्रो लगाने की बात कही थी। लेकिन प्रदेश में सरकार बदल जाने के बाद आज दस साल में राज्य में एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं लग सका है। उन्होंने बताया कि 2003 में भारतीय हॉकी संघ के महासचिव ज्योतिकुमारन ने वादा किया था कि अगर छत्तीसगढ़ में एस्ट्रो लग जाएगा तो छत्तीसगढ़ को न सिर्फ सीनियर वर्ग की राष्ट्रीय चैंपियनशिप की मेजबानी दी जाएगी, बल्कि हर साल एक राष्ट्रीय चैंपियनशिप की मेजबानी दी जाएगी। लेकिन यह राज्य का दुर्भाग्य है कि अब तक यहां एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं लग पाया है। अब भी समय है अगर जल्द से जल्ट एस्ट्रो टर्फ लगा दिया जाएगा तो राज्य की महिला के साथ पुरुष टीम भी झारखंड के बाद केरल में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में खेलने की पात्रता प्राप्त कर लेगी।

बुधवार, 16 मार्च 2011

रायपुर में अब राष्ट्रीय कयाकिंग सितंबर में

राजधानी रायपुर में मार्च के अंतिम सप्ताह में होने वाली राष्ट्रीय कैनाइंग-कयाकिंग अब सितंबर में होगी।
यह जानकारी देते हुए प्रदेश संघ के अध्यक्ष वैभव मिश्रा ने बताया कि शुक्रवार को उनकी राष्ट्रीय फेडरेशन के पदाधिकारियों से चर्चा हुई जिसमें यह बात सामने आई कि मार्च में स्पर्धा का आयोजन कर पाना संभव नहीं होगा क्योंकि यह समय परीक्षाओं का रहता है। ऐसे में फेडरेशन के पदाधिकारियों से चर्चा के बाद यह तय किया गया है कि अब इसका आयोजन सितंबर के अंतिम सप्ताह में या फिर अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में किया जाएगा। श्री मिश्रा ने पूछने पर बताया कि इसमें संदेह नहीं कि रायपुर में होने वाली राष्ट्रीय स्पर्धा के बाद यहां पर कयाकिंग के प्रति खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ेगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि झारखंड के राष्ट्रीय खेलों के लिए हमारे खिलाड़ियों ने तैयारी तो की थी, लेकिन संसाधनों की कमी के साथ एक अच्छे प्रशिक्षक की कमी की वजह से हमारे खिलाड़ी पदक नहीं जीत सके। वे कहते हैं कि हमारे खेल के लिए भी एनआईएस कोच जरूरी है। इसी के साथ खिलाड़ियों के अभ्यास के लिए नियमित स्थान भी जरूरी है। हमारे खिलाड़ी वैसे बूढ़ातालाब में अभ्यास करते हैं। लेकिन वहां नियमित अभ्यास संभव नहीं हो पाता है। हमारे लिए यहां सबसे बड़ी समस्या बोटों को रखने की है। अगर हमें बूढ़ातालाब से लगा हुआ एक कमरा निगम बनवाकर दे दे जिसमें हमारे खिलाड़ी बोट को रख सके तो हमारे खिलाड़ियों के लिए बूढ़ातालाब से अच्छी जगह और कोई नहीं हो सकती है। श्री मिश्रा ने पूछने पर बताया कि जब यहां पर स्पर्धा का आयोजन होगा तो स्पर्धा बूढ़ातालाब में होगी। उन्होंने बताया कि चूंकि इस तालाब में 1000 मीटर का ट्रेक निकल पाना संभव नहीं है, ऐसे में यहां पर 200 और 500 मीटर के मुकाबले होंगे। मुकाबलों में सी-वन, सी-टू और सी-फोर के साथ के-वन, के-टू और के-फोर के मुकाबले होंगे। इन मुकाबलों में शामिल होने देश के सभी राज्यों के खिलाड़ी यहां आएंगे।

हिन्दी में लिखें

खेलगढ़ Headline Animator

खेलगढ़ की चर्चा हिन्दुस्तान में