शनिवार, 28 फ़रवरी 2009
अखाड़े अब हो जाएंगे गुलजार
भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई की मदद से प्रदेश की राजधानी रायपुर के भी कई अखाड़े अब गुलजार हो जाएंगे। साई ने इनको भी भरपूर मदद देने की बात कही है। छत्तीसगढ़ के पहली बार दौरे पर आए क्षेत्रीय निर्देशक आरके नायडु ने बताया कि साई इस समय देश में खेलों के विकास के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। इन्हीं योजनाओं में एक योजना किसी भी खेल को मदद करने की है। उन्होंने बताया कि देशी खेल कुश्ती को बढाने के लिए अखाड़ों को भी मदद करने की योजना है, उन्होंने बताया कि रायपुर के ज्यादा से ज्यादा अखाड़ों को साई एक तरह से गोद लेकर उनको मदद करेगी। इन अखाड़ों को सामान दिया जाएगा, उन्होंने पूछने पर बताया कि आज कुश्ती जिस तरह से आधुनिक मैट पर होती है ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान तैयार करने के लिए यह जरूरी है उनको मैट पर अभ्यास करने का मौका मिले। ऐसे में जिनते भी अखाड़े मैट की मांग करेंगे उनको मैट भी दिए जाएंगे। अब तक रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के ज्यादातर अखाड़ों में पहलवान मिट्टी पर ही कुश्ती के दांव लगाते हैं। वैसे रायपुर के दस अखाड़ों स्टार अखाड़ा, सत्तीबाजार, बलभीम जोरापारा, गया उस्ताद, शीतला, दंतेश्वरी, बजरंग, सिकंदर, हनुमान, और जय बजरग अखाड़ा को खेल विभाग ने गद्दे दिए थे। वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे ने बताया कि इन सभी अखाड़ों को 10-10 गद्दे दिए गए थे।
डे बोर्डिंग योजना भी प्रारंभ की जाएगी
अखिल भारतीय कबड्डी चैंपियनशिप जून में
जिंदल की तीसरी जीत
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
भिलाई की राष्ट्रीय हैंडबॉल अकादमी में टेराफैक्ट कोर्ट
महिला खिलाड़ियॊ के लिए एक नई खेलवृत्ति योजना
साई द्वारा देश के खिलाड़ियॊ के लिए कई तरह की खेलवृत्ति देने की योजना चलाई जाती है। इन योजनाओं में एक नई योजना को शामिल किया गया है। नई योजना देश के किसी भी राज्य की ऐसी महिला खिलाड़ियॊ के लिए है जिनकी उम्र 19 साल से ज्यादा है और जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं। जिन खेलों को इस योजना में शामिल किया गया है उन खेलों में तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, मुक्बेबाजी, साइक्लिंग, जिम्नास्टिक, जूडो, रोइंग, निशानेबाजी, तैराकी, टेबल टेनिस, भारोत्तोलन, कुश्ती, कराते, शतरंज, गोल्फ, कयाकिंग एवं कैनोइंग, बॉलिंग, स्नूकर, बिलियर्ड, कैरम, घुड़सवारी, पावरलिफ्टिंग, ताइक्वांडो, तलवारबाजी, स्क्वैश एवं नौका विहार शामिल हैं। इन खेलों में 2007 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली सभी खिलाड़ियॊ ने साई ने 28 फरवरी तक आवेदन मंगाए हैं। इसके बाद मिलने वाले किसी भी आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा। साई की नई योजना की सूचना प्रदेश के खेल विभाग में काफी विलंब से आने के कारण प्रदेश की ज्यादातर खिलाड़ियों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। साई ने खेल विभाग को 10 फरवरी को पत्र भेजा। यह पत्र यहां पर आते-आते एक सप्ताह का समय हो गया। वैसे खेल विभाग ने उसी दिन सभी जिला खेल अधिकारियों को यह पत्र भेज दिया। जिला खेल अधिकारियों से अपने स्तर पर खिलाड़ियों को सूचना देने का काम किया लेकिन इसके बाद भी नई योजना की सूचना ज्यादातर खिलाड़ियों तक नहीं पहुंच सकी है। इस योजना के पहले साल में 28 फरवरी तक ही आवेदन देने हैं और ये आवेदन इस तारीख तक साई के मुख्यालय पटियाला पहुंचने अनिवार्य है। ऐसे में ज्यादातर खिलाड़ियों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। फिर भी खिलाड़ी इस बात से खुश हैं कि इस नई योजना से उसको मिलने वाली राशि उनके खेल के काम आएगी।
बुधवार, 25 फ़रवरी 2009
रेलवे है खिलाड़ी नंबर वन
फर्जी प्रमाणपत्रों का धंधा- खेल को कर रहा है गन्दा
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
क्रिकेटरों का सजा बाजार - खेल बना व्यापार
एक समय जेंटलमैन का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट अब आज एक तरफ जहां मनी-मैन का खेल बन गया है, वहीं क्रिकेटरों का बाजार भी सजने लगा है। क्रिकेटरों का जो बाजार सज रहा है उसको सजाने का काम किसी और ने नहीं बल्कि भारत ने किया है। वैसे कहा तो यही जाता है कि खेल भावना के मामले में भारत नंबर वन रहा है, लेकिन अब ऐसी कोई बात कम से कम भारतीय टीम में नजर ही नहीं आती है। आज क्रिकेटरों में टीम भावना के अभाव के साथ देश प्रेम का जज्बा भी कम ही नजर आता है। आज के क्रिकेटर तो बस पैसों के पीछे ही भाग रहे हैं। पैसों के पीछे भागना गलत नहीं है, लेकिन पैसों की खातिर खेल को ताक पर रखना जरूर गलत है और क्रिकेट के साथ यही हो रहा है। जब से क्रिकेट में आईपीएल की घुसपैठ हुई है क्रिकेट जहां व्यापार बन गया है, वहीं यह एक भौंड़ा मनोरंजन बनकर रह गया है। क्रिकेट सिनेमा का तीन घंटे का ऎसा शो बन गया है जिसमें दर्शकों को लुभाने के लिए सारा मसाला रहता है। अगर यही हाल रहा तो क्रिकेट को बर्बादी की तरफ जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल ने जब से क्रिकेट को अपनी गोद में बिठाने का काम किया है क्रिकेट एक गलत रास्ते की तरफ चल पड़ा है। यह बात शायद उन लोगों को नागवर लगे जिन लोगों ने क्रिकेट को आईपीएल से जोड़ने का काम किया है। लेकिन यह कटु सच है कि आज आईपीएल के कारण क्रिकेट में ऐसा कुछ होने लगा है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। क्रिकेट का आज एक दूसरा ही रूप सबके सामने आया है। यह तो किसी ने नहीं सोचा था कि क्रिकेटरों को भी सरे बाजार खड़े करके उसी तरह से बेचने का काम किया जाएगा जैसा काम एक समय में गुलामों को बेचने का किया जाता था। गुलाम शब्द से जरूर किसी को आपत्ति हो सकती है, लेकिन क्रिकेटर जिस तरह से अपने लीग टीमों के आकाओं के इशारों पर नाचते हैं उससे उनको गुलाम ही कहा जा सकता है। फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेटर आज खेल के कम और पैसॊ के गुलाम यादा हो गए हैं। अगर क्रिकेटर खेल के मुरीद होते तो जरूर उनके लिए गुलाम शब्द का अर्थ खास हो जाता और जब किसी क्रिकेटर को खेल का गुलाम कहा जाता तो उसका सीना चौड़ा हो जाता। लेकिन यहां मामला उल्टा है। यह सोचने की बात है कि एक समय वह भी था जब हर देश का क्रिकेटर बस और बस अपने देश के लिए खेलता था लेकिन अब न जाने वह समय कहां गुम हो गया है। जब भारत-पाक के बीच मैच होता था तो लगता था यह मैच नहीं एक जंग है। इस जंग में जीतने के लिए एक तरफ जहां सारे भारतीय क्रिकेटर अपना सब कुछ दांव पर लगा देते थे, वहीं पाकिस्तानी क्रिकेटर भी पीछे नहीं रहते थे। सभी में बस अपने देश के लिए जीतने का जुनून रहता था। क्रिकेटरों की बात क्या दोनों देशों का एक-एक देशवासी मैच से ऐसे जुड़ जाता था मानो यह उसके लिए जीने-मरने का सवाल हो। क्यों न हो आखिर खेल का असली मतलब तो यही है कि आप अपने देश और देशवासियों की भावनाओं के लिए खेलें। जैसा जुनून भारत-पाक के मैच में होता था वैसा ही जुनून तब आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच होने वाली एशेज सीरीज के मैचों में नजर आता था। इनके बीच एशेज की गाथा को सब जानते हैं। कैसे इंग्लैंड की टीम के हारने पर उसको राख भेंट की गई थी और यहां से शुरू हुई थी एशेज की शृंखला। यह देशवासियों का जबा था जो वे अपनी टीम को हारते नहीं देख पाए थे। इसके बाद से एशेज को जीतना दोनों टीमों ने अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। दोनों देश की टीमें किसी भी कीमत पर अपने देशवासियॊ को नाराज नहीं करना चाहती थी। इन उदाहरणों से यह साबित होता है कि वास्तव में क्रिकेट खेलने वाले देशों के देशवासियों में क्रिकेट किस तरह से रचा बसा है। किसी भी देश के देशवासी अपनी टीम को हमेशा जीतते देखना चाहते हैं। कई बार ऐसा हुआ है जब भारत या पाकिस्तान की टीम हारकर घर लौटी है तो टीम के खिलाड़ियों को अपने देशवासियों के गुस्से का सामना करना पड़ा है। इतना सब होने के बाद अचानक क्रिकेट में एक ऐसा बदलाव आया है जिसकी कल्पना करना आसान नहीं था। आज क्रिकेट को पूरी तरह के पेशेवर बना दिया गया है। बात यहां पर मात्र पेशेवर की नहीं है पेशेवर मामले में देखा जाए तो आज कंगारू टीम इस मामले में पहले नंबर पर है। यह कंगारू टीम का पेशेवर रूख ही है जिसके कारण वह विश्व की नंबर वन टीम है। लेकिन इस पेशेवर रूख की वजह से टीम ने कभी भी अपने देशवासियों को नाराज नहीं किया है। लेकिन लगता है कि अब कंगारू टीम के खिलाड़ी भी आईपीएल की आंधी में उड़ गए हैं। वैसे अब तक तो यह बात सामने नहीं आई है कि कंगारू क्रिकेटर अपने देश हित को ताक पर रखकर कोई समझौता करेंगे। वैसे आस्ट्रेलिया के साथ किसी भी देश के क्रिकेटरों को लेकर ऐसी बात सामने नहीं आई है लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि आज जिस तरह से लगातार क्रिकेट हो रहा है उसका असर तो पड़ ही रहा है। एक तरफ अपने देश की टीम से खेलना फिर खाली समय में आईपीएल के लिए खेलना। ऐसे में क्रिकेटर कैसे दोनों तरफ न्याय कर सकते हैं। आईपीएल के लिए जिस टीम से क्रिकेटरों को खेलना है उसके लिए टीमॊ के आका लाखों नहीं करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे में वे तो जरूर चाहेंगे कि वे जिस खिलाड़ी पर दांव लगा रहे हैं कि वे खिलाड़ी अपने बल्ले या फिर गेंद का कमाल दिखाकर उनकी टीम को जीत तक ले जाने का काम करें। फिर यहां पर खिलाड़ियों का अपना स्वार्थ भी रहता है। स्वार्थ यह कि जब वे अच्छा खेलेंगे तो उनकी बोली भी यादा लगेगी। यह बात उनके साथ अपने देश की टीम से खेलते समय लागू नहीं होती है। जब कोई खिलाड़ी अपने देश की टीम से खेलता है तो उसको कुछ मैचों में खराब प्रदर्शन करने से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता है। भले आज सभी देश इस मामले में पेशेवर हो गए हैं लेकिन इसके बाद भी कम से कम ऐसे खिलाड़ियों को कोई बाहर का रास्ता दिखाने का काम नहीं कर पाता है जिनका नाम बड़ा है। बड़े नाम का ही तो खिलाड़ी गलत फायदा उठाते हैं। अगर बड़े-छोटे का अंतर समाप्त करके खराब प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया जाए तो जरूर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। ऐसे खिलाड़ियों के मामले में भारत नंबर वन पर है। भारतीय टीम के स्टार खिलाड़ियों को चयनकर्ता लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाते हैं। इसके विपरीत कई खिलाड़ी ऐसे रहे हैं जिनको टीम में लिया जाता है, पर उनको खेलने का मौका दिए बिना ही बाहर भी कर दिया जाता है। ऐसे में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि बड़े खिलाड़ी ईमानदारी से खेलेंगे। यही वजह है कि खिलाड़ी अपने देश की टीम पर कम और आईपीएल की अपनी टीम पर ज्यादा ध्यान देते हैं। आईपीएल बनाम तीन घंटे का सिनेमा:- आईपीएल का आगाज जब से हुआ है क्रिकेट एक तरह से तीन घंटे का ऐसा सिनेमा बनकर रह गया है जिसको चलाने के लिए निर्माता-निर्देशक उसमें सारा मसाला भर देते हैं। आईपीएल में भी चूंकि फिल्मी सितारों की घुसपैठ है तो क्रिकेट को भी सिनेमा जैसा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। आईपीएल के पिछले आयोजन पर नजरें डालने से साफ मालूम होता है कि कैसे चियर्स गर्ल्स के कारण क्रिकेट के साथ अश्लीलता जुड़ गई थी। बाद में इस पर कोर्ट के आदेश से थोड़ा सा अंतर आया। वैसे देखा जाए तो क्रिकेट जैसे खेल में चियर्स गर्ल्स का क्या काम। मैदान में दर्शक मैच देखने जाते हैं इतना समय कहां रहता है कि लोग किसी तरह का नाच देख सकें। लेकिन दर्शकों का टेस्ट बदलने का काम किया जा रहा है। खेल को मनोरंजक बनाना गलत नहीं है। ओलंपिक और एशियाड जैसे बड़े आयोजनों में भी कार्यक्रम होते हैं लेकिन सब कुछ सभ्यता और संस्कृति के दायरे में होता है, किसी भी ऐसे आयोजन में कभी अश्लीलता का आरोप नहीं लगा। लेकिन आईपीएल के आयोजन में पहले ही कदम पर अश्लीलता का आरोप लग गया है। वास्तव में कम कपड़ों की लड़कियों को दर्शेकों के सामने रखकर आईपीएल के आका क्या करना चाहते हैं समझ के परे है। लगता है कि उनको उन क्रिकेटरों और उनके खेल पर भरोसा ही नहीं है जिन पर वे करोड़ों का दांव लगाते हैं। अगर भरोसा है तो फिर क्रिकेट को तीन घंटे का सी ग्रेड का सिनेमा बनाने का काम क्यों किया जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो क्रिकेट सिनेमा बन जाएगा और उसे बर्बाद होने से कोई नहीं रोक पाएगा। वैसे भी क्रिकेट को एक तरफ बर्बाद करने का काम मैच फिक्सिंग ने किया है। दर्शक आज क्रिकेटरों पर भरोसा कम करने लगे हैं। ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि क्रिकेटर पैसों के पीछे भागना कम करके अपने देश के लिए खेलने पर ध्यान यादा दें। कहीं ऐसा न हो कि क्रिकेट के खेल से लोग ऊब जाए और जिसे खेल की दुनिया दीवानी है उस खेल पर ही ताला लग जाए।
रविवार, 22 फ़रवरी 2009
शनिवार, 21 फ़रवरी 2009
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
शनिवार, 14 फ़रवरी 2009
हर तरफ क्रिकेट का ही जलवा
गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009
खेल नीति में व्यापक फेरबदल होगा
कमलेश मेहता से खेल की बारीकियां सीखने जाएंगे प्रदेश के खिलाड़ी
पूर्व अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस खिलाड़ी और 10 बार के राष्ट्रीय चैंपियन कमलेश मेहता से खेल की बारीकियां सीखने के लिए प्रदेश के खिलाड़ी उनकी अकादमी में जाएंगे। वहां जाने वाले खिलाड़ियों में से आधे खिलाड़ियों का खर्च प्रदेश टेबल टेनिस संघ उठाएगा। इसी के साथ संघ ने ग्रीष्मकालीन शिविर के लिए भी राष्ट्रीय कोच बुलाने का फैसला किया है। यह जानकारी देते हुए प्रदेश टेबल टेनिस संघ के अध्यक्ष शरद शुक्ला और महासचिव अमिताभ शुक्ला ने बताया कि प्रदेश के खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाने के लिए प्रदेश संघ एक योजना बनाकर काम कर रहा है। इस योजना के तहत जहां इस बार राजधानी में लगने वाले ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर के लिए राष्ट्रीय फेडरेशन से एक राष्ट्रीय कोच मांगा गया है, वहीं कुछ खिलाड़ियों को एक बार फिर से कमलेश मेहता की अकादमी में प्रशिक्षण के लिए भेजने का फैसला किया गया है। वैसे राष्ट्रीय कोच के रूप में कमलेश मेहता को छत्तीसगढ़ बुलाने का प्रयास था, लेकिन वे ग्रीष्मकालीन शिविर के समय व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पा रहे हैं। उन्होंने शीतकालीन सत्र में आने की बात कही है। ऐसे में उनकी बड़ौदा की उनकी अकादमी में प्रशिक्षण लेने के लिए प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा खिलाड़ियों को भेजने की योजना है। इन खिलाड़ियों में से कम से कम आधे खिलाड़ियों का खर्च संघ उठाएगा। श्री शुक्ला ने पूछने पर बताया कि श्री मेहता की अकादमी में एक खिलाड़ी के प्रशिक्षण का खर्च पांच हजार रुपए आता है। पिछले साल यहां के दो खिलाड़ी सागर घाटगे और अंशुमन राय अपने खर्च पर उनसे प्रशिक्षण लेने गए थे। लेकिन इस बार ज्यादा खिलाड़ियों को भेजने का फैसला संघ ने किया है। उन्होंने बताया कि संघ चाहता है कि प्रदेश के ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करें और प्रदेश के लिए पदक जीतने का काम कर सकें।
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
खिलाड़ियों को देंगे सामान- हर खेल में डालेंगे जान
भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई की योजना है कि भले ही हर खेल को पूरी मदद न मिल सके लेकिन राज्य के पदक विजेता खिलाड़ियों को जरूर खेल सामान दिए जाएंगे। खिलाड़ियों को सामान मिलने से उनके खेल में भी जान आएगी। साई जहां प्रदेश में यह काम करेगा, वहीं राजनांदगांव में 40 करोड़ की लागत से एक बड़ा खेल परिसर भी बनाने जा रहा है। इस खेल परिसर में एक दर्जन से ज्यादा खेलों को रखा जाएगा। इसी के साथ यहां पर 100 खिलाड़ियों के रहने की भी व्यवस्था रहेगी। साई छत्तीसगढ़ में खेलों के विकास में हर तरह की मदद करने को तैयार है। यहां कई खेलों के डे बोर्डिंग सेंटर भी खोले जाएंगे। ये बातें साई के क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडू ने कहीं। उन्होंने बताया कि उनका यह पहला छत्तीसगढ दौरा है और इस दौरे में यह बात सामने आई है कि यहां पर खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। ऐसे में साई इन सभी प्रतिभाओं को सामने लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। उन्होंने बताया कि उनके दौरे का मुख्य मकसद राजनांदगांव में बनने वाले खेल परिसर के लिए जमीन का अधिग्रहण करना था। यह काम सोमवार को पूरा हो गया है। सरकार ने साई को वहां पर 15 एकड़ जमीन दे दी है।
एस्ट्रो टर्फ सिन्थॆटिक ट्रेक लगेगा:- खेल परिसर के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इस परिसर में जहां हॉकी का सुपर एस्ट्रो टर्फ लगाया जाएगा, वहीं एथलेटिक्स के लिए 400 मीटर का सिन्थॆटिक ट्रेक भी लगाया जाएगा। इन दोनों योजनाओं पर करीब 8 से 10 करोड़ का खर्च आएगा। इसके अलावा परिसर में एक मल्टीप्लेक्स हॉल बनेगा। इस हाल में कई बास्केटबॉल, हैंडबॉल, वालीबॉल,जूडो, कुश्ती, जिम्नास्टिक, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, कबड्डी के साथ मार्शल आर्ट से जुड़े खेलों के लिए मैदान रहेंगे। उन्होंने बताया कि इंडोर में इन मैदान के साथ ही आउटडोर में भी बास्केटबॉल और वालीबॉल के अलावा फुटबॉल के मैदान बनाए जाएंगे। उन्होंने पूछने पर बताया कि छत्तीसगढ़ के 15 खेलों ने राष्ट्रीय खेलों में खेलने की पात्रता प्राप्त की है, उन खेलॊ का समावेश तो यहां रहेगा ही इसके अलावा उन खेलों पर भी ध्यान दिया जाएगा जिनमें पदक की संभावना है। इस पूरी योजना पर करीब 40 करोड़ खर्च आएगा जो साई करेगा। तीरंदाजी की विशेष योजना:- श्री नायडू ने बताया कि परिसर में तीरंदाजी को लेकर विशेष योजना प्रारंभ की जाएगी। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी में है कि इस खेल में छत्तीसगढ से काफी अच्छे खिलाड़ी निकल सकते हैं। यहां के आदिवासी क्षेत्र बस्तर और सरगुजा में इन खेलॊ की प्रतिभाएं हैं। उन्हॊंने बताया कि साई चाहता है कि ओलंपिक में देश के तीरंदाज पदक दिलाने का काम करें। इसके लिए लिम्बाराम को प्रशिक्षक बनाया गया है। उनको यहां प्रशिक्षण देने के लिए भेजा जाएगा। डे बोर्डिंग सेंटर भी खोलेंगे:- श्री नायडू ने बताया कि जहां एक तरफ राजनांदगांव में खेल परिसर की योजना है, वहीं प्रदेश में कई स्थानों पर डे बोर्डिंग की भी योजना है। इसके तहत सेंटर ऑफ एक्सलेंसी योजना में बास्केटबॉल में लड़कियों के लिए भिलाई और लड़कॊ के लिए राजनांदगांव, हैंडबॉल में दोनों वर्गों के लिए सेंटर भिलाई में रहेगा। रायपुर में वालीबॉल का सेंटर रहेगा। जूडो का सेंटर भिलाई में रखा जाएगा। इसी तरह से फुटबॉल के सेंटर के लिए दिल्ली पब्लिक स्कूल रायपुर से बात चल रही है। तैराकी, तीरंदाजी और एथलेटिक्स के लिए बस्तर, कबड्डी, हॉकी और वालीबॉल के लिए जशपुर, जिम्नास्टिक, ताइक्वांडो के लिए बिलासपुर को प्राथमिकता में रखा गया है। इन सेंटरों में 14 से 18 साल तक के खिलाड़ी शामिल हो सकेंगे। इस योजना पर पांच से छह करोड़ खर्च आएगा। स्कूलों को भी लिया जाएगा गोद:- श्री नायडु ने बताया कि साई की एक नई योजना के तहत छत्तीसगढ़ के 18 जिलों के एक-एक स्कूल को गोद लेने की योजना है। जिस स्कूलों में जिन खेलों की सुविधाएं हैं वहां पर उन खेलों के डे बोर्डिंग सेंटर प्रारंभ किए जाएंगे। हर स्कूल में दो से तीन खेलॊं को रखा जाएगा। इसी के साथ यह भी देखा जाएगा कि किसी भी खेल का पदक विजेता खिलाड़ी किसी सुविधा से वंचित न हों। हर खेल के पदक विजेता को साई एक तरह से गोद लेकर उनको खेलने का सामान देगा। उन्होंने बताया कि साई के सेंटर से जुड़ने वाले खिलाड़ियों को जहां सुविधाएं मिलेंगी, वहीं उनको विदेश खेलने जाने का मौका मिलता है तो उसका भी सारा खर्च साई करेगा। इस योजना में 14 से 16 साल के खिलाड़ियों को शामिल किया जाएगा, यहां से निकलने वाले प्रतिभाशाली खिलाड़ी खेल परिसर में स्थान प्राप्त कर लेंगे। तीन चरणों में बनेगा खेल परिसर:- श्री नायडु ने पूछने पर बताया कि राजनांदगांव के खेल परिसर का काम मई तक प्रारंभ हो जाएगा। इस परिसर के पूरा करने के लिए तीन चरणों में काम होगा। पहले चरण में एस्ट्रो टर्फ के साथ अन्य मैदानों को बनाने की योजना है ताकि प्रशिक्षण का काम प्रारंभ हो सके। पहला चरण अगले साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण सिन्थॆटिक ट्रेक के साथ मल्टीप्लेक्स को पूरा किया जाएगा। तीसरे और अंतिम चरण में वहां के रहने के लिए मकानों का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द इसको पूरा करना ही हमारा लक्ष्य होगा। उन्हॊंने कहा कि पहले चरण का काम तो 18 माह में पूरा हो जाएगा। इसके बाद अगले चरणों के लिए भी एक समय सीमा तय की जाएगी। सभी कोच स्थानीय हॊंगे:- खेल परिसर में रखे जाने वाले प्रशिक्षकों के बारे में उन्होंने पूछने पर खुलासा किया कि सभी प्रशिक्षक स्थानीय होंगे। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ में कई खेलों के एनआईएस कोच हैं। जिन खेलों में नहीं हैं उनमें अगर छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी एनआईएस बन जाते हैं तो उनको पहली प्राथमिकता मिलेगी। मुख्यमंत्री खेलॊं को बढ़ाने गंभीर:- श्री नायडु ने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बारे में कहा कि वे तो उनसे महज पांच मिनट के लिए ही मिलने गए थे, पर उनसे खेलों पर आधे घंटे से भी ज्यादा समय तक चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की सोच जिस तरह से खेलों को बढ़ाने की है, उससे यह तय है छत्तीसगढ़ को खेलों में आगे बढ़ाने से कोई नहीं रोक सकता है। उन्हॊंने बताया कि उनको मुख्यमंत्री से ही इस बात की जानकारी हुई है कि राजधानी के बूढा तालाब के पास एक स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स बन रहा है। इसी के साथ बिलासपुर में एक बड़ा खेल परिसर बन रहा है। इन दोनों में साई से जो भी मदद सरकार चाहेगी वह की जाएगी। इन परिसरों को बनाकर अगर साई को दे दिया गया तो बाकी सारा काम हमारा होगा। उन्हॊंने खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी के बारे में भी कहा कि उनका रुझान भी खेलों के प्रति नजर आया। इसी के साथ यहां की सरकार जिस तरह से खिलाड़ियों को पुरस्कार में भारी राशि दे रही है और यहां की खेल नीति जिस तरह से बनी है उससे जरूर छत्तीसगढ़ काफी आगे जाएगा। पदक जीतने वाले खिलाड़ी तो गरीब होते हैं:- श्री नायडू ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं कि पदक जीतने वाले खिलाड़ी गरीब और मध्यम वर्ग के होते हैं। उन्होंने कहा कि पदक जीतने केलिए भारी मेहनत की जरूरत होती है और ऐसी मेहनत को गरीब ही कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि चूंकि वे खुद एक खिलाड़ी रहे हैं इसलिए हर बात को अच्छी तरह से समङा सकते हैं। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र में ऐसी मेहनत करने वाले खिलाड़ियों की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि बस्तर और सरगुजा से अच्छे तीरंदाज और एथलीट निकल सकते हैं। इनके अगर सही प्रशिक्षण मिले तो ये छत्तीसगढ़ के साथ देश का नाम रौशन कर सकते हैं। ऐसी प्रतिभाओं को खेल परिसर में लाकर निखारने का काम साई करेगा।
सोमवार, 9 फ़रवरी 2009
नही हैं पैसे-अच्छे खिलाड़ी आए कैसे
50 साल पुराने नेहरू स्वर्ण कप हॉकी के आयोजक परेशानी में
देश के अच्छे खिलाड़ी तो अच्छी सुविधाओं के साथ आने-जाने के खर्च के अलावा भारी पैसों की मांग करते हैं। ऐसे में भारी आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हमारे एथलेटिक्स क्लब के पास इतने पैसे कहां है जो देश के अच्छे खिलाड़ियों को चैंपियनशिप में बुलाया जा सके। यह बात कहते हैं देश की सबसे पुरानी हॉकी चैंपियनशिप नेहरू स्वर्ण कप रायपुर के आयोजक। इनको इस बात का मलाल हैं कि देश की इस 50 साल पुरानी हॉकी चैंपियनशिप को ठीक से मदद नहीं मिल पाती है जिसके का अच्छे खिलाड़ियों को नहीं बुला पाते हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए क्लब के पुराने सदस्य हाजी कुतबुद्दीन, हफीज यजदानी, इदरीश बारी , अजीज मेमन, लाल बादशाह बताते हैं कि जब पहले यहां पर चैंपियनशिप होती थी तो यहां पर देश के दिग्गज खिलाड़ी खेलने आते थे। इस मैदान पर कई ओलंपियन खेल चुके हैं। इन्हॊने बताया कि यहां पर जफर इकबाल, गोविंदा, अशोक ध्यानचंद, अजीत पाल सिंह, मुनीर सेठ, जलालदुद्दीन, सूरजीत सिंह, शंकर लक्ष्मण, धनराज पिल्ले, दिलीप तिर्की सहित सभी दिग्गज खिलाड़ी अपनी हॉकी स्टिक का जलवा दिखा चुके हैं।
1964 से प्रारंभ हुआ नेहरू कप
चैंपियनशिप के बारे में पुराने सदस्यों ने बताया कि सबसे पहले एथलेटिक्स क्लब की स्थापना 1958 में की गई और 1959 से क्लब के नाम से ही अखिल भारतीय चैंपियनशिप का प्रारंभ किया गया। क्लब के नाम से चैंपियनशिप 1963 तक चली। इसके बाद जैसे ही पं। जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ तो उनके नाम से चैंपियनशिप का नाम नेहरू स्वर्ण कप हॉकी कर दिया गया। नेहरू के नाम से देश में प्रारंभ की गई यह पहली चैंपियनशिप है। इस चैंपियनशिप में खेलने के लिए पहले पहल देश की दिग्गज टीमें आती थीं।
आर्थिक तंगी बहुत है
क्लब के वर्तमान सचिव मंसूर अहमद बताते हैं कि वर्तमान समय में चैंपियनशिप का आयोजन करना आसान नहीं है। उन्होंने बताया कि आयोजन में 10 लाख से ज्यादा का खर्च आ जाता है। उन्होंने बताया कि बड़ी टीमों को बुलाने की हिम्मत इसलिए नहीं होती क्योंकि एक तो खिलाड़ी बड़े होटल में रहने की मांग करते हैं, साथ ही इन टीमों को एक दिन के लिए कम से कम पांच हजार रुपए देने पड़ते हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि देश की बी वर्ग की टीमों के पीछे एक दिन में दो से ढाई हजार रुपए लगते हैं। लोकल टीम के पीछे 1500 का करीब खर्च आता है। उन्होंने बताया कि चैंपियनशिप के लिए खेल विभाग से जहां 75 हजार की मदद मिलती है, वहीं नगर निगम से 50 हजार रुपए की सहायता मिलती है। मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह ने पिछले आयोजन के लिए तीन लाख रुपए दिए थे। क्लब से जुड़े पुराने सदस्य कहते हैं कि खेल विभाग को यादा राशि देनी चाहिए। इसी के साथ इनका कहना है कि मुख्यमंत्री कोष से भी पांच लाख की मदद तो मिलनी ही चाहिए। अब क्लब के सदस्यों ने लाल बादशाह के नेतृत्व में राहुल गांधी से मिलकर नेहरू फाऊंडेशन से मदद मांगने का मन बनाया है। इस बार चैंपियनशिप के बाद एक प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने जाएगा और उनको जानकारी देगा कि देश की यह पहली चैंपियनशिप है जो नेहरू के नाम से होती है। उनके मांग की जाएगी कि चैंपियनशिप को नेहरू फाऊंडेशन से ही प्रायोजित करवाया जाए। इसी के साथ राहुल गांधी से मैदान में एस्ट्रो टर्फ जल्द लगवाने की भी मांग की जाएगी।
एस्ट्रो टर्फ की कमी भी एक बाधा
देश की बड़ी टीमों के खेलने न आने के पीछे जहां एक कारण पैसों की कमी है, वहीं एस्ट्रो टर्फ भी है। कोई भी बड़ी टीम ऐसे मैदान में खेलना ही नहीं चाहती है जहां पर एस्ट्रो टर्फ न हो। वैसे नेताजी स्टेडियम के जिस मैदान में चैंपियनशिप होती है, उस मैदान में एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कर चुके हैं। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। स्टेडियम में चूंकि मैदान गलत दिशा में बना है इसलिए यहां पर एस्ट्रो टर्फ लगाने का अंतिम फैसला नहीं हो पा रहा है। वैसे इस बारे में हॉकी के जानकारों का मानना है कि देश में ऐसे कई मैदान हैं जहां पर गलत दिशा होने के बाद भी एस्ट्रो टर्फ लगे हैं। नेताजी स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ लगाने में कोई परेशानी नहीं होगी।
शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009
कामनवेल्थ सायकल पोलो के लिए सज रहा छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में पहली बार कामनवेल्थ सायकल पोलो का आयोजन भिलाई में होने जा रहा है। इसकी तैयारी अभी से प्रारंभ कर दी गई है। इसके लिए भिलाई में जहां एक अतंरराष्ट्रीय स्तर का मैदान बना लिया गया है, वहीं इसके कुछ मैच रायपुर में भी करवाए जाने हैं। यह आयोजन 3 से 6 दिसंबर तक होगा। इसमें करीब एक दर्जन देश शामिल होंगे। इसी के साथ भारत सहित चार देशों के बीच महिलाओ के प्रदर्शन मैच होंगे।
भारत में जब सायकल पोलो की कामनवेल्थ चैंपियनशिप का आयोजन करने की बात चली तो इस अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप के आयोजन में सबसे पहले रूचि दिखाने वाला छत्तीसगढ़ रहा। छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य रहा है जिसके खाते में सायकल पोलो को ऊंचाई पर ले जाने का लगातार रिकार्ड रहा है। सबसे पहले यहां पर 2002 में संघ का गठन होने के बाद ही विश्व कप में खेलने जाने वाली भारतीय टीम का प्रशिक्षण शिविर भी लगा जो टीम फ्रांस में खेलने गई थी। इसके बाद से छत्तीसगढ़ का संघ लगातार ऐसे आयोजन कर रहा है जैसे आयोजन कोई नहीं कर सका है। छत्तीसगढ़ के खाते में ही फेडरेशन कप को प्रारंभ करने का श्रेय जाता है। फेडरेशन कप का जब भिलाई में आयोजन किया गया तो उस समय इसके साथ तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिप का भी आयोजन किया गया था। फेडरेशन कप के सफल आयोजन के बाद जब सायकल पोलो को स्कूली खेलों में शामिल करवाने की बारी आई तो इसमें भी छत्तीसगढ़ की भूमिका अहम रही। इन खेलों का आयोजन करने का जिम्मा जब कोई नहीं उठा रहा था तो छत्तीसगढ़ ने इसकी मेजबानी ली। पहली चैंपियनशिप का जब आयोजन राजनांदगांव में किया गया तो इसमें महज चार टीमों से भाग लिया। लेकिन जब दूसरा आयोजन 2007 में फिर से राजनांदगांव में किया गया तो इस बार इस चैंपियनशिप में मेजबान छत्तीसगढ़ के साथ उप्र, महाराष्ट्र, केरल, आन्ध्र प्रदेश, मप्र, चंडीगढ़, नवोदय विद्यालय, विद्या मंदिर की टीमें शामिल हुईं। छत्तीसगढ़ का सायकल पोलो को बढ़ाने में कितना अहम हाथ रहा है इसको भारतीय सायकल पोलो फेडरेशन के सचिव केके रैना भी मानते हैं की छत्तीसगढ़ के कारण आज सायकल पोलो की पहचान बढ़ी है। अब तो इस खेल को राष्ट्रीय खेलों के साथ एशियाड में भी शामिल करवाने के प्रयास हो रहे हैं।
1986 में हुई भारत में शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में एक समय हार्स पोलो का काफी नाम था, वैसे आज भी इस खेलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में खेला जाता है, लेकिन अब इस खेल को टक्कर देने वाला एक खेल सायकल पोलो भी आ गया है। इस खेल की शुरुआत भारत में 1986 से हुई है, लेकिन अब जाकर इस खेलों को कुछ आयाम मिल सका है। पहले इस खेल को खेलने वाले काफी कम राज्य थे लेकिन आज यह खेल देश के ज्यादातर राज्यों में खेला जा रहा है। जिन राज्यों में यह खेल खेला जाता है, उन राज्यों में आज छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर आता जा रहा है। छत्तीसगढ़ सिर्फ खेलों में ही नहीं बल्कि मेजबानी में भी नंबर वन है।
छत्तीसगढ़ मेजबान नंवर वन
यहां पर जब भी कोई राष्ट्रीय चैंपियनशिप हुई है उसकी सबने तारीफ की है। ऐसे में जब भिलाई में प्रदेश के सायकल पोलो संघ ने एक साथ एक नहीं बल्कि तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिप का एक साथ आयोजन करके सायकल पोलो में एक नया इतिहास रचा तो देश भर से आए सभी खिलाडिय़ों ने आयोजन की जमकर तारीफ की और सबने एक स्वर में माना की वास्तव में छत्तीसगढ़ मेजबान नंबर वन है। भिलाई के आयोजन को संवारने में जहां संघ के अध्यक्ष अशोक सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी। छत्तीसगढ़ ने यह जो सफल आयोजन किया उसी का परिणाम रहा की उसको भारत-पाक टेस्ट शृंखला के एक मैच की मेजबानी भी मिली। यह मैच जब यहां पर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित किया गया तो इस मैच में खेलने आए पाकिस्तान के खिलाड़ी भी छत्तीसगढ़ की मेजबानी के कायल होकर लौटे। भारत-पाक टेस्ट के बाद छत्तीसगढ़ ही ऐसा पहला राज्य बना जिसने यहां पर तकनीकी सेमीनार का आयोजन किया । इस सेमीनार में आए देश भर के खिलाडिय़ों ने छत्तीसगढ़ के इस आयोजन की तारीफ
कामनवेल्थ में शामिल न होने से बनी
अलग आयोजन की योजना
भारत में कामनवेल्थ सायकल पोलो के आयोजन की योजना कैसे बनी इसका खुलासा करते हुए अशोक सिंह बताते हैं की भारत में दो साल बाद 2110 में कामनवेल्थ खेलों का आयोजन होने जा रहा है। इन खेलों में काफी पहले से सायकल पोलो को शामिल करने की कवायद चल रही थी। इस बात की पूरी संभावना थी की सायकल पोलो को कामनवेल्थ खेलों में शामिल कर लिया जाएगा। इस संभावना का एक सबसे बड़ा कारण यह था की कामनवेल्थ में खेलने वाले सभी देश सायकल पोलो खेलते हैं। कामनवेल्थ खेलों में सायकल पोलो को स्थान भी मिल जाता, लेकिन इन खेलों का कार्यक्रम काफी पहले से बन गया था ऐसे में इन खेलों में सायकल पोलो को शामिल करना संभव नहीं हो सका । ऐसे में जहां यह प्रयास किए जा रहे हैं की कामनवेल्थ में सायकल पोलो को एक प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल कर लिया जाए, वहीं अब विश्व सायकल पोलो फेडरेशन ने भारतीय सायकल पोलो फेडरेशन के साथ मिलकर यह योजना बनाई की भारत में ही कामनवेल्थ खेलों से ठीक सायकल पोलो की कामनवेल्थ चैंपियनशिप का आयोजन किया जाए। इस योजना को अंतिम रूप भी दे दिया गया है। कामनवेल्थ सायकल पोलो का आयोजन भारत में किया जाना है और इसकी मेजबानी छत्तीसगढ़ के हाथ लगी है। छत्तीसगढ़ में इस चैंपियनशिप का आयोजन 3 से 6 दिसंबर तक किया जाएगा।
भिलाई में बना अंतरराष्ट्रीय मैदान
कामनवेल्थ सायकल पोलो के लिए भिलाई में अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैदान बनकर तैयार हो गया है। भिलाई होटल के पास यह मैदान भिलाई स्टील प्लांट की मदद से बनाया है। इसके बारे में प्रदेश संघ के अशोक सिंह बताते हैं की यह मैदान राष्ट्रीय तकनीकी कमेटी के चेयरमैन पीबी कृष्णाराव के मार्गदर्शन में बना। मैदान 120 गुणा ८0 मीटर का है। इस मैदान को ऐसा बनाया गया है जिसमें रात को भी मैच हो सकेगे। इस मैदान पर इस चैंपियनशिप के मैचों के साथ ही कुछ मैच राजधानी रायपुर में भी होंगे। भिलाई के मैदान का तो उद्घाटन जनवरी में 16 से 22 जनवरी तक खेली गई तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिपों फेडरेशन कप के साथ सीनियर और जूनियर चैंपियनशिप से हो भी चुका है।
चार देशों की महिला टीमों के बीच होंगे प्रदर्शन मैच
कामनवेल्थ चैंपियनशिप में हो तो पुरुष खिलाडिय़ों के लिए रही है, लेकिन इस चैंपियनशिप में भारत के साथ ही इंग्लैंड, स्काटलैंड और आयरलैंड की महिला टीमें भी आ रही हैं। इनके बीच प्रदर्शन मैच होंगे।
बास्केटबाल पदक उड़ाने में नंबर वन
33 खिलाडिय़ों को मिली नौकरी
छत्तीसगढ़ की मेजबानी पर टेबल टेनिस महासंघ भी फिदा
प्रदेश टेबल टेनिस संघ ने राजधानी रायपुर में जिस तरह से सेंट्रल इंडिया टेबल टेनिस चैंपियनशिप का आयोजन किया उस आयोजन ने भारतीय टेबल-टेनिस महासंघ को भी दीवाना बना दिया है। अब महासंघ चाहता है कि छत्तीसगढ़ में एक बड़ा आयोजन हो। ऐसे में महासंघ ने जहां छत्तीसगढ़ के सामने एशियन चैंपियनशिप का एक प्रस्ताव रखा, वहीं एक प्रस्ताव राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप का रखा है। इस प्रस्ताव में से राष्ट्रीय चैंपियनशिप के आयोजन को करने की हिम्मत प्रदेश संघ ने दिखाने का मन बनाया है। पर इसके पीछे एक सबसे बड़ी बाधा यहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के इंडोर स्टेडियम की कमी है। इस कमी को स्पोट्र्स काम्पलेक्स से पूरा किया जा सकता है, पर अब तक यह काम्पलेक्स बन नहीं सका है। वैसे इस काम्पलेक्स के जल्द बनने की संभावना जिस तरह से जताई जा रही है। अगर वह संभावना सही साबित हुई तो जरूर छत्तीसगढ़ के हाथ राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप की मेजबानी लग सकती है। वैसे भी छत्तीसगढ़ की मेजबानी के कायल अपने देश के ही नहीं विदेश के खिलाड़ी भी हैं। रायपुर में सेंट्रल इंडिया रैंकिग टेबल टेनिस का आयोजन 21 से 25 दिसंबर 2008 तक किया गया। इस चैंपियनशिप में देश के नामी खिलाडिय़ों ने भाग लिया। इस चैंपियनशिप में जिस तरह की व्यवस्था प्रदेश टेबल टेनिस संघ ने की थी उस व्यवस्था ने ही देश के सभी खिलाडिय़ों को तारीफ करने पर मजबूर किया। इन खिलाडिय़ों की तारीफ का ही नतीजा रहा कि जब सूरत में एक राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन किया गया और यहां पर भारतीय टेबल टेनिस महासंघ की बैठक हुई तो इस बैठक में न सिर्फ छत्तीसगढ़ की मेजबानी की खुले दिल ने महासंघ ने तारीफ की बल्कि प्रदेश संघ के अध्यक्ष शरद शुक्ला को राष्ट्रीय महासंघ में संयुक्त उपाध्यक्ष के पद से भी नवाजा गया। इतना ही नहीं महासंघ ने तो छत्तीसगढ़ के सामने एशियन चैंपियनशिप की मेजबानी का भी प्रस्ताव रख दिया। यह चैंपियनशिप इसी साल होनी है और इसकी मेजबानी का जिम्मा भारत को मिला है। ऐसे में जबकि पूरे एशियाई देशों के दिग्गज खिलाडिय़ों का जमावड़ा अपने देश में लगेगा तो छत्तीसगढ़ के पास इसकी मेजबानी लेने का सुनहरा मौका था। लेकिन यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि यह मौका अपने हाथ से महज इसलिए निकल गया क्योंकि यहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का कोई भी इंडोर हॉल नहीं है। ऐसा इंडोर हॉल जिसमें कम से दो दर्जन से ज्यादा टेबल लग सके उसके बिना एशियन चैंपियनशिप क रवाना संभव नहीं है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष शरद शुक्ला के पास इस प्रस्ताव को न मनाने के अलावा कोई चारा नहीं था। उन्होंने महासंघ को बताया कि उनके राज्य में कोई बड़ा इंडोर हॉल नहीं है। इसी के साथ उन्होंने महासंघ को यह भी जानकारी दी कि राजधानी रायपुर में एक स्पोट्र्स काम्पलेक्स बन रहा है जो पूर्णत: की ओर है। ऐसे में महासंघ ने प्रदेश संघ के सामने एक और प्रस्ताव राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप का रखा है। इस प्रस्ताव पर प्रदेश संघ ने महासंघ से कुछ समय मांगा है। प्रदेश संघ चाहता है कि पहले वह इस बात की तसली कर ले कि राजधानी का स्पोट्र्स काम्पलेक्स इस चैंपियनशिप से पहले बन जाएगा। प्रदेश संघ के अध्यक्ष शरद शुक्ला और महासचिव अमिताभ शुक्ला कहते हैं कि उनका संघ महापौर सुनील सोनी के साथ मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप की मेजबानी मिलने कि जानकारी देर उनके सामने मांग रखेगा कि स्पोट्र्स काम्पलेक्स को जल्द पूरा कर दिया जाए कि इस साल के अंत में चैंपियनशिप का आयोजन किया जा सके । इन्होंने बताया कि इस चैंपियनशिप के लिए ऐसा हाल जरूरी है जहां पर कम से कम 30 टेबलें लग सके । इन्होंने बताया कि जूनियर चैंपियनशिप में एकल, युगल के साथ मिश्रित युगल और टीम मुकाबले भी होते हैं। ऐसे में यह तो संभव ही नहीं है कि सप्रे टेबल टेनिस हॉल के एक हॉल में यह चैंपियनशिप हो सके । इस हॉल में एक दर्जन टेबलें भी नहीं पाती हैं। छत्तीसगढ़ तो है ही मेजबान नंबर वन इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ मेजबान नंबर वन है। अपना राज्य बनने के बाद से आज तक जितने भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन यहां पर हुए हैं सभी खिलाड़ी छत्तीसगढ़ की तारीफ कर के लौटे हैं। कई खेलों के राष्ट्रीय आयोजनों के साथ यहां पर शतरंज और केरम की अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप हो चुकी है। इसी के साथ पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी जहां भारतीय खिलाडिय़ों के साथ कोरबा में एक मैत्री मैच खेल चुके हैं, वहीं सायकल पोलो में भी पाकि स्तान की टीम यहां आकर खेली है। ऐसा कोई भी आयोजन नहीं रहा है जिसमें छत्तीसगढ़ की मेजबानी की तारीफ नहीं हुई है।
बुधवार, 4 फ़रवरी 2009
आईसीसी जोकरों का समूह
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कोसिल ने भारत के स्टार खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को सर्वकालिक महान खिलाडिय़ों की सूची से बाहर रखने का काम किया है। आईसीसी की इस हरकत से जहां देश का पूरा क्रिकेट जगत हैरान है, वहीं आईसीसी के व्यवहार को कोई भी नया-पुराना खिलाड़ी पचा नहीं पा रहा है। ऐसे में भारत के पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मनिन्दर सिंह ने आईसीसी पर बरसते हुए कहा कि आईसीसी तो जोकरों कासमूह है। अगर ऐसा नहीं होता तो सचिन तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ी को कभी भी सर्कलिक महान खिलाडिय़ों की सूची में टॉप 20 से बाहर नहीं रखा जाता। सचिन को इस सूची में सम्मानजन· स्थान दिया जाना था। आईसीसी ने जब से महान खिलाडिय़ों की सूची जारी की है, तब से इस सूची को लेकर विवाद हो रहा है। विवाद का एक बड़ा कारण भी है। आज पूरे विश्व में अपने नाम का डंका बजवाने वाले सचिन को आईसीसी ने टॉप में 20 में स्थान देना जरूरी ही नहीं समझा। जैसे ही आईसीसी की सूची जारी हुई, पूरे देश में इस बात को लेकर आक्रोश फैल गया। ऐसे में जिस भी क्रिकेटर को जैसी प्रतिक्रिया देने का मौका मिला उन्होंने दे डाली। इसी बाच जाने माने स्पिन के जादूगर और कमेंट्रेटर मनिंदर सिंह का रायपुर आना हुआ तो उन्होंने आईसीसी के आकाओं को जोकरों का समूह कह दिया। मनी का बयान कुछ वैसा ही है जैसे आज से करीब दो दशक पहले मो अमरनाथ ने बीसीसीआई के चयनकर्ताओं के बारे में दिया था। तब अमरनाथ ने चयनकर्ताओं को जोकरों का समूह कहा था। मनी यह मानते हैं कि अमरनाथ ने ऐसा कहा था तो गलत भी नहीं कहा था तब उनके साथ चयनकताओं ने काफी गलत किया था। बहरहाल मनी ने अपने रायपुर प्रवास में कहा कि यह बात तय है कि आईसीसी की कमान जिनके हाथों में हैं वो जोकर हैं। उन्होंने कहा कि यह कैसे संभव है कि सचिन जैसा एक खिलाड़ी जो टेस्ट में सबसे ज्यादा रन बनाता है और जिनके खाते में दुनिया का हर रिकार्ड है वह महान खिलाडिय़ों में शामिल नहीं है। उन्होंने आईसीसी की सूची को मजाक करार दिया और कहा कि ऐसी सूची का क्या ओचित्य है। उन्होंने कहा क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल बनाने की मांग करना गलत नहीं है। मनिंदर की नजर में राष्ट्रीय खेल तो क्रिकेट ही है। उन्होंने कहा कि हॉकी का आज देश में क्या मतलब रह गया है। उन्होंने कहा कि जब भारतीय हॉकी फेडरेशन की कमान के पीएस गिल के हाथों में थी तो लगा था कि इस खेल का जरूर कुछ भला होगा लेकिन श्री गिल भी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। उन्होंने कहा क्रिकेट आज अगर नंबर वन है तो इसके पीछे भारतीय क्रिकेट बोर्ड की योजनाएं हैं। उनका कहना है कि किसी भी खेल को आगे बढ़ाने में उसके संघ का सबसे बड़ा हाथ होता है। उन्होंने कहा कि हॉकी को बढ़ाने के लिए उसको क्रिकेट की तरह बेचना होगा। उन्होंने कहा कि अगर किसी के पास 100 करोड़ रुपए होंगे तो वह क्रिकेट में लगाना चाहेगा, हॉकी में नहीं। उन्होंने हॉकी को कचरा करार देते हुए कहा कि कोई भी अपना पैसा कचरे में डालना नहीं चाहता है। असली क्रिकेट तो टेस्ट ही है: - एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की वनडे के बाद आज 20-20 क्रिकेट आ गया है, इसके बाद 10-10 ओवरों के क्रिकेट की बात की जा रही है, लेकिन असली क्रिकेट की जहां तक बात है तो वह तो टेस्ट क्रिकेट ही है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा की कभी भी बच्चों को 10-10 ओवर के मैच नहीं खिलाने चाहिए। उन्होंने कहा की आज टेस्ट में जिस तरह से नतीजे आने लगे हैं उससे रोमांच बढ़ गया है। धोनी सफल कप्तान:- मनिन्दर सिंह की नजर में इस समय सबसे सफल और अच्छे कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी हैं। उनका कहना है कि धोनी एक ऐसे कप्तान हैं जो हर खिलाड़ी की भावनाओं को समझते हैं। अगर कोई गेंदबाज उनके पास जाकर कहता है कि वह आगे ओवर नहीं करना चाहता है तो वे उनकी बात मानते हैं। बकौल मनिन्दर खिलाडिय़ों के साथ धोनी का ताल-मेल बेजोड़ है। पूछने पर उन्होंने कहा कि राहुल द्रविड़ को वास्तव में अब संन्यास के बारे में सोचना चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विज्ञापन में काम करना गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी के पास जो समय रहता है उसका उपयोग कर लेना चाहिए। एक उम्र के बाद तो खिलाड़ी के पास कुछ नहीं बच जाता है। उन्होंने कहा कि आज देश में कई खेलों के खिलाड़ी ऐसे हैं जिनको खाने के लाले पड़ जाते हैं। अगर क्रिकेटर विज्ञापन करके अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं इसमें गलत क्या है। उन्होंने बीसीसीआई की तारीफ करते हुए कहा कि आज बीसीसीआई ने क्रिकेटरों को इस मुकाम तक पहुंच दिया है कि उनके कभी फाके खाने नहीं पड़ेंगे। छत्तीसगढ़ में क्रिकेट अकादमी बने :- मनिंदर सिंह ने पूछने पर कहा कि उन्होंने छत्तीसगढ़ में बना क्रिकेट स्टेडियम तो नहीं देखा है, पर इसकी तारीफ जरूर सुनी है। उन्होंने कहा कि यहां की प्रतिभाओं को बढ़ाने के लिए महज स्टेडियम बना देने से काम नहीं चलेगा इसके लिए क्रिकेट की अकादमी खोलनी होगी। उन्होंने कहा की कई एनआईएस कोच है जिनकी सेवाएं लेकर यहां की प्रतिभाओं को निखारा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर मेरी मदद की जरूरत पड़ेगी तो मैं भी मदद करने तैयार हूं।