सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

नही हैं पैसे-अच्छे खिलाड़ी आए कैसे




50 साल पुराने नेहरू स्वर्ण कप हॉकी के आयोजक परेशानी में


देश के अच्छे खिलाड़ी तो अच्छी सुविधाओं के साथ आने-जाने के खर्च के अलावा भारी पैसों की मांग करते हैं। ऐसे में भारी आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हमारे एथलेटिक्स क्लब के पास इतने पैसे कहां है जो देश के अच्छे खिलाड़ियों को चैंपियनशिप में बुलाया जा सके। यह बात कहते हैं देश की सबसे पुरानी हॉकी चैंपियनशिप नेहरू स्वर्ण कप रायपुर के आयोजक। इनको इस बात का मलाल हैं कि देश की इस 50 साल पुरानी हॉकी चैंपियनशिप को ठीक से मदद नहीं मिल पाती है जिसके का अच्छे खिलाड़ियों को नहीं बुला पाते हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए क्लब के पुराने सदस्य हाजी कुतबुद्दीन, हफीज यजदानी, इदरीश बारी , अजीज मेमन, लाल बादशाह बताते हैं कि जब पहले यहां पर चैंपियनशिप होती थी तो यहां पर देश के दिग्गज खिलाड़ी खेलने आते थे। इस मैदान पर कई ओलंपियन खेल चुके हैं। इन्हॊने बताया कि यहां पर जफर इकबाल, गोविंदा, अशोक ध्यानचंद, अजीत पाल सिंह, मुनीर सेठ, जलालदुद्दीन, सूरजीत सिंह, शंकर लक्ष्मण, धनराज पिल्ले, दिलीप तिर्की सहित सभी दिग्गज खिलाड़ी अपनी हॉकी स्टिक का जलवा दिखा चुके हैं।


1964 से प्रारंभ हुआ नेहरू कप
चैंपियनशिप के बारे में पुराने सदस्यों ने बताया कि सबसे पहले एथलेटिक्स क्लब की स्थापना 1958 में की गई और 1959 से क्लब के नाम से ही अखिल भारतीय चैंपियनशिप का प्रारंभ किया गया। क्लब के नाम से चैंपियनशिप 1963 तक चली। इसके बाद जैसे ही पं। जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ तो उनके नाम से चैंपियनशिप का नाम नेहरू स्वर्ण कप हॉकी कर दिया गया। नेहरू के नाम से देश में प्रारंभ की गई यह पहली चैंपियनशिप है। इस चैंपियनशिप में खेलने के लिए पहले पहल देश की दिग्गज टीमें आती थीं।


आर्थिक तंगी बहुत है


क्लब के वर्तमान सचिव मंसूर अहमद बताते हैं कि वर्तमान समय में चैंपियनशिप का आयोजन करना आसान नहीं है। उन्होंने बताया कि आयोजन में 10 लाख से ज्यादा का खर्च आ जाता है। उन्होंने बताया कि बड़ी टीमों को बुलाने की हिम्मत इसलिए नहीं होती क्योंकि एक तो खिलाड़ी बड़े होटल में रहने की मांग करते हैं, साथ ही इन टीमों को एक दिन के लिए कम से कम पांच हजार रुपए देने पड़ते हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि देश की बी वर्ग की टीमों के पीछे एक दिन में दो से ढाई हजार रुपए लगते हैं। लोकल टीम के पीछे 1500 का करीब खर्च आता है। उन्होंने बताया कि चैंपियनशिप के लिए खेल विभाग से जहां 75 हजार की मदद मिलती है, वहीं नगर निगम से 50 हजार रुपए की सहायता मिलती है। मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह ने पिछले आयोजन के लिए तीन लाख रुपए दिए थे। क्लब से जुड़े पुराने सदस्य कहते हैं कि खेल विभाग को यादा राशि देनी चाहिए। इसी के साथ इनका कहना है कि मुख्यमंत्री कोष से भी पांच लाख की मदद तो मिलनी ही चाहिए। अब क्लब के सदस्यों ने लाल बादशाह के नेतृत्व में राहुल गांधी से मिलकर नेहरू फाऊंडेशन से मदद मांगने का मन बनाया है। इस बार चैंपियनशिप के बाद एक प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने जाएगा और उनको जानकारी देगा कि देश की यह पहली चैंपियनशिप है जो नेहरू के नाम से होती है। उनके मांग की जाएगी कि चैंपियनशिप को नेहरू फाऊंडेशन से ही प्रायोजित करवाया जाए। इसी के साथ राहुल गांधी से मैदान में एस्ट्रो टर्फ जल्द लगवाने की भी मांग की जाएगी।


एस्ट्रो टर्फ की कमी भी एक बाधा
देश की बड़ी टीमों के खेलने न आने के पीछे जहां एक कारण पैसों की कमी है, वहीं एस्ट्रो टर्फ भी है। कोई भी बड़ी टीम ऐसे मैदान में खेलना ही नहीं चाहती है जहां पर एस्ट्रो टर्फ न हो। वैसे नेताजी स्टेडियम के जिस मैदान में चैंपियनशिप होती है, उस मैदान में एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कर चुके हैं। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। स्टेडियम में चूंकि मैदान गलत दिशा में बना है इसलिए यहां पर एस्ट्रो टर्फ लगाने का अंतिम फैसला नहीं हो पा रहा है। वैसे इस बारे में हॉकी के जानकारों का मानना है कि देश में ऐसे कई मैदान हैं जहां पर गलत दिशा होने के बाद भी एस्ट्रो टर्फ लगे हैं। नेताजी स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ लगाने में कोई परेशानी नहीं होगी।

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