बुधवार, 25 फ़रवरी 2009
फर्जी प्रमाणपत्रों का धंधा- खेल को कर रहा है गन्दा
राजधानी के खेल विभाग के दफ्तर में एक ग्रामीण खिलाड़ी अपने पिता के साथ आता है और कुछ प्रमाणपत्रों के साथ एक आवेदन देकर अपने को जिले और राज्य की क्रिकेट टीम में शामिल करने की मांग करता है। जब खिलाड़ी के प्रमाणपत्र देखे जाते हैं तो साफ पता चलता है कि उसके पास स्कूल की राष्ट्रीय चैंपियनशिप के जो प्रमाणपत्र हैं सब फर्जी हैं। उस खिलाड़ी का तो यह भी नहीं मालूम है कि राष्ट्रीय चैंपियनशिप क्या है। ऐसे कई ग्रामीण खिलाड़ी हैं जिनको अपना शिकार बनाकर फर्जी प्रमाणपत्र बेचने का धंधा चलाया जा रहा है। नेताजी स्टेडियम में रायपुर जिले के खेल विभाग का दफ्तर है। इस दफ्तर में मंदिर हसौद के गांव खुटेरी का एक युवक अपने पिता के साथ आया और अपने को क्रिकेट का खिलाड़ी बताते हुए जिले की टीम के साथ राज्य की टीम में भी स्थान दिलाने की बात करने लगा। चूंकि खेल विभाग इस मामले में कुछ नहीं कर सकता है ऐसे में वहां उसके पिता को सुझाव दिया जाता है कि वे क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों से मिल लें। इस बीच जब खिलाड़ी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाणपत्रों पर नजरें जाती हैं । तो मालूम होता है कि उसने जो राष्ट्रीय स्कूली खेलों के प्रमाणपत्र अपने आवेदन के साथ लगाए हैं वो फर्जी हैं। जब उनसे इन प्रमाणपत्रों के बारे में पूछा जाता है तो वे बताते हैं कि ये तो उनको गुढ़ियारी के एक शिक्षक किसी यादव ने दिए हैं। इसके एवज में श्री यादव को क्या दिया गया के सवाल पर पहले तो वे कुछ बताने को तैयार नहीं होते हैं,जब उनको यह कहा जाता है कि अगर वे इन फर्जी प्रमाणपत्रों के साथ पकड़े गए तो सबसे पहले वही फंसेंगे तो वे बताते हैं कि उन्होंने इन प्रमाण पत्रों के बदले में श्री यादव को कुछ रकम दी थी। प्रमाणपत्रों के फर्जी होने के सबूत खिलाड़ी के पास जो प्रमाणपत्र थे उन प्रमाणपत्रों को फर्जी साबित करने के लिए यही काफी है कि एक तो उनमें राष्ट्रीय स्कूली खेलों के आयोजन का स्थान नहीं लिखा गया है। इसके अलावा उनमें से एक प्रमाणपत्र में जहां 2001 में से एक पेन से लिखा गया है, वहीं 2003 के प्रमाणपत्र में भी तीन पेन से लिखा गया है। इसके अलावा प्रमाणपत्र में खिलाड़ी के नाम के साथ बाकी जानकारी जिस पेन से भरी गई है, उसी पेन से स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सतपाल सिंह के साथ शिक्षा विभाग के संचालक के हस्ताक्षर भी किए गए हैं। इन प्रमाणपत्रों के बारे में जानकारी देकर जब शिक्षा विभाग के सहायक संचालक खेल एसआर कर्ष से जानकारी चाही गई तो उन्होंने साफ कहा कि निश्चित ही ये प्रमाणपत्र फर्जी हैं। राष्ट्रीय चैंपियनशिप के प्रमाणपत्रों में किसी भी आयोजन का स्थान जरूर लिखा रहता है साथ ही आयोजन के वर्ष का भी पूरा उल्लेख रहता है वर्ष को कभी पेन से लिखने की जरूरत नहीं पड़ती है, उन्होंने कहा कि निश्चित ही वे प्रमाणपत्र फर्जी हैं। बड़े पैमाने पर होता है धंधा:- खेल से जुड़े जानकारों का साफ कहना है कि प्रदेश में फर्जी प्रमाणपत्रों का धंधा काफी समय से बड़े पैमान पर चल रहा है। धंधेबाज कई ऐसे लोगों को राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के प्रमाणपत्र दिलाते हैं जिनको नौकरी में ऐसे प्रमाणपत्रों की जरूरत पड़ती है। इसी के साथ धंधेबाज सीधे-सादे ग्रामीण खिलाड़ियॊ को राज्य की टीम में स्थान मिल जाने की बात कह के उनको मुर्ख बनाने का काम करते हैं। राज्य की टीम में स्था बनाने के मोह में खिलाड़ी प्रमाणपत्र खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। एक बार तो एक खिलाड़ी को खेल विभाग का ऐसा प्रमाणपत्र दिया गया था जो था महिला खेलों का पर प्रमाणपत्रों लेने वाला पुरुष खिलाड़ी था। फर्जी प्रमाण पत्रों का धंधा स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज और ओपन वर्ग में चल रहा है। कई मामले सामने आने के बाद भी कोई इसकी शिकायत नहीं करता है इसलिए यह धंधा अब तक चल रहा है।
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2 टिप्पणियां:
गोरखधन्धा चल रहा, हो रही रेलम-पेल।
फर्जी-बाड़े में सभी, खेल रहे निज खेल।।
कृपया शब्द-पुष्टिकरण हटा दें,
टिप्पणी करने में कष्ट होता है।
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