शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

बास्केटबाल पदक उड़ाने में नंबर वन


प्रदेश की बास्केटबाल टीमें लगातार राष्ट्रीय स्तर पर पदक उड़ाने में नंबर वन बनी हुई हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से अब तक बास्केटबाल के खाते में 31 स्वर्ण, 8 रजत और 15 कास्य पदक मिलाकर 54 पदक दर्ज हैं। हर साल टीम राष्ट्रीय स्तर पर जोरदार जलवा दिखाने का काम कर रही है। पहले पहल तो मात्र महिला खिलाडिय़ों का ही दबदबा था, लेकिन अब तो पुरुष टीमें भी कमाल करने लगी हैं। 2008 के सत्र में प्रदेश की टीमों ने पांच पदक जीते हैं। एक सीनियर वर्ग को छोड़ दिया जाए तो बाकी वर्गों में छत्तीसगढ़ की टीमों का ही वर्चस्व कायम है। प्रदेश की टीमों को सफलता की राह पर ले जाने का श्रेय बालिका टीम के कोच राजेश पटेल को जाता है। छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद से ही बास्केटबाल में पदको की बारिश हो रही है। यह बरसात 2001 से प्रारंभ हुई है जो अब तकायम है। पिछले साल की बात करें तो 2008 में प्रदेश की टीमों ने पांच पदक जीते हैं। इन पदको में तीन स्वर्ण पदक शामिल हैं। सबसे पहला स्वर्ण पदक प्रदेश की सब जूनियर बालिका टीम ने कपूरथला में तब जीता जब वहां पर जून में इस चैंपियनशिप का आयोजन किया गया। बालिका टीम का यह लगातार चौथा स्वर्ण पदक था। वैसे बालिका टीम अब तक 8 चैंपियनशिप में एक मात्र बार ही कास्य पदक जीती है, बाक़ी सात बार उसके हाथ स्वर्ण ही लगा है। यहां पर बालक टीम को चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा। वैसे बालक टीम के खाते में इस चैंपियनशिप में दो स्वर्ण एक रजत और दो कास्य पदक दर्ज है। इस चैंपियनशिप से पहले भीलवाड़ा में हुई जूनियर चैंपियनशिप में प्रदेश की बालिका टीम को जहां पहली बार कमजोर प्रदर्शन के कारण कास्य पदक से ही संतोष करना पड़ा था। वैसे इसके पहले कभी भी टीम को कास्य पदक नहीं मिला था। टीम ने इसके पहले जहां छह बार स्वर्ण जीता था, वहीं एक बार रजत पदक मिला था। छत्तीसगढ़ की बालिका टीम पहली बार फाइनल में पहुंचने से चूकी थी। छत्तीसगढ़ के हाथ दूसरा स्वर्ण पदक तब लगा जब छत्तीसगढ़ की मेजबानी में ही राष्ट्रीय यूथ चैंपियनशिप का आयोजन भिलाई में 18 से 25 सितंबर तकिया गया। यहां पर बालिका टीम ने स्वर्ण जीता और इस वर्ग में अपने नाम पांचवां स्वर्ण दर्ज किया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ही टीम के खाते में यूथ वर्ग में पांच स्वर्ण और तीन रजत दर्ज हैं। कभी भी ऐसा मौका नहीं आया है जब टीम फाइनल में पहुंचने से चूकी है। भिलाई में बालको की टीम भी फाइनल में पहुंची लेकिन वह स्वर्ण नहीं जीत सकी । वैसे बालक टीम के खाते में दो स्वर्ण और दो कास्य पदक जीतने का रिकार्ड है। साल के अंत में जब सूरत में सीनियर वर्ग की राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन किया गया तो वहां पर महिला टीम जहां सेमीफाइनल में पहुंची और चौथा स्थान प्राप्त किया, वहीं पुरुष टीम पांचवें स्थान पर रही। यह पहला मौका का रहा जब पुरुष टीम ने इतना अच्छा प्रदर्शन किया और पहली बार राष्ट्रीय खेलों में भी खेलने की पात्रता प्राप्त कर ली। वैसे इसके पहले कभी भी पुरुष टीम 14वें स्थान से आगे नहीं बढ़ सकी थी। इधर महिला टीम में कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के बाद भी टीम तीन साल बाद पदक से चूकी । इसके पहले टीम ने 2004 से ही कांस्य पदक जीतने का जो सिलसिला प्रारंभ किया था, वह 2006 तक चल रहा था। 2008 में लगातार शानदार प्रदर्शन करने के बाद नए साल का आगाज भी छत्तीसगढ़ के लिए अच्छा रहा है। छत्तीसगढ़ की महिला टीम ने भुवनेश्वर में खेली गई राष्ट्रीय महिला चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इस चैंपियनशिप में यह छत्तीसगढ़ का चौथा स्वर्ण पदक है। इसके अलावा टीम के खाते में एक रजत और एक कास्य भी है।
33 खिलाडिय़ों को मिली नौकरी

प्रदेश की टीमों के शानदार प्रदर्शन के कारण यहां के 33 खिलाडिय़ों को रेलवे एवं बीएसएनएल में नौकरी भी मिली है। इन खिलाडिय़ों में महिला खिलाड़ी ज्यादा है। दक्षिण-पूर्व रेलवे में प्रदेश की 13 महिला खिलाडिय़ों सहित 16 खिलाडिय़ों अंजू लकड़ा, सीमा सिंह, पूनम सिंह, अनामिका जैन, भारती नेताम, अलंकि ता सेठी, जे वेणु, राजेश्वरी ठाकुर, कुमारी सरिता, आकाक्षा सिंह, एम. पुष्पा, नवनीत कौर, वी. निशा, टीएस प्रकाश राव, शिवेन्द्र निषाद, देवेन्द्र यादव को नौकरी में रखा गया है। इसी तरह से ईस्टर्न रेलवे में मृदुला आडिल, रूपाली पात्रो, राधा सोनी और दिनेश, दक्षिण सेंटर रेलवे में राखी राजपूत, कवलजीत कौर, मुरली कष्णनन, टीआरएस राव, हाजीपुर रेलवे में संगीता कौर , आरती सिंह, कविता अम्बिलकर, आरसीएफ रेलवे में निर्मल सिंहा, ए. संतोष कुमार और आशुतोष सिंह को नौकरी में रखा गया है। इसके अलावा बीएसएनएल में तीन खिलाडिय़ों मिथलेश ठाकुर दिलेश्वर चन्द्राकर और विश्म्भर पांडे को नौकरी मिली है।

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