शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

हर तरफ क्रिकेट का ही जलवा


छत्तीसगढ़ की राजधानी के नेताजी स्टेडियम में एक तरफ जहां स्वर्ण कप नेहरू हॉकी की तैयारियां चल रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ मैदान के एक किनारे छोटे-छोटे बच्चो क्रिकेट खेलने में मस्त हैं। यह सिर्फ एक स्टेडियम का हाल नहीं है। आज जहां देखो बस क्रिकेट का ही जलवा नजर आता है। घर के ड्राइंगरूम से लेकर मैदान तक बस क्रिकेट और क्रिकेट के अलावा कुछ नहीं है। क्रिकेट को तो अब भारत में अघोषित तौर पर राष्ट्रीय खेल भी मान लिया गया है। भारत की क्रिकेट टीम इस समय श्रीलंका के दौरे पर है और धोनी की सेना वहां धमाल कर रही है। इधर धोनी की सेना धमाल कर रही है तो इधर अपने छत्तीसगढ़ में भी हर तरफ हर कोई क्रिकेट का जानने वाला या फिर न भी जानने वाला क्रिकेट में कमाल कर रहा है। राजधानी का ऐसा कोई मैदान नहीं है जहां पर रोज सुबह बड़ी संख्या में बच्चो और बड़े बल्ला लिए गेंदों पर चौके-छक्के लगाते नजर नहीं आते हैं। अपने हॉकी के एक मात्र नेताजी स्टेडियम की बात करें तो यहां पर इन दिनों अखिल भारतीय स्वर्ण कर नेहरू हॉकी की तैयारी चल रही है। एक तरफ आयोजक मैदान बनाने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ एक किनारे में कई बच्चो टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलने में मस्त है। इन बच्चों को इस बात का दुख है कि जब हॉकी मैचों का प्रारंभ होगा तो उनको क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिलेगा। वैसे हॉकी के इस स्टेडियम में हॉकी कम क्रिकेट का खेल ज्यादा होता है। कुछ दिनों पहले ही नगर निगम की टीमें भी यहां पर क्रिकेट खेल रहीं थीं। सड़क पर क्रिकेट आम:- राजधानी में जब भी किसी कारण से हड़ताल होती है और दुकानों में ताले लगते हैं तो आस-पास रहने वाले बच्चों की चांदी हो जाती है। बच्चों को सड़क पर क्रिकेट खेलने का मौका मिल जाता है। वैसे शहर का कोई भी ऐसा वार्ड और कालोनी नहीं है जहां पर बच्चो सड़कों पर क्रिकेट खेलते नजर नहीं आते हैं। कुछ समय पहले जब पेट्रोल की मारा-मारी हुई थी और कई पेट्रोल पंपों में ताले लग गए थे तो पेट्रोल पंपों के कर्मचारी समय काटने के लिए क्रिकेट खेलते ही नजर आए थे। खेतों-पहाड़ों में भी क्रिकेट:- क्रिकेट की दीवानगी महज शहरों तक सीमित है ऐसा नहीं है। इसकी दीवानगी शहरों से ज्यादा तो गांवों में नजर आती है। गांवों में कोई बच्चा देशी खेल कबड्डी, वालीबॉल, फुटबॉल, कुश्ती खेलते भले नजर न आए पर क्रिकेट खेलते जरूर नजर आएगा। गांवॊ में मैदान न होने के कारण गांवों में खेतॊं को ही मैदान बना दिया जाता है और बड़े मजे से मस्त होकर बच्चो चौके-छक्के लगाते नजर आते हैं। गांवों के खेतों के बाद पहाड़ों की तरफ रूख करें तो जहां इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चो क्रिकेट खेलते हैं, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों के धार्मिक स्थलों डोंगरगढ़, भौरमदेव, खल्लारी, रतनपुर, जतमई या फिर कोई भी धार्मिक स्थल हो यहां जब परिवार वाले पिकनिक मानने जाते हैं साथ में बल्ला और गेंद जरूर ले जाते हैं और पहाड़ी में ही शुरू हो जाते हैं क्रिकेट का मजा लेने। ऐसा ही उद्यानों में भी होता है। कुल मिलाकर ऐसा कोई स्थान नजर नहीं आता है जहां पर क्रिकेट की घुसपैठ न हो। क्रिकेट स्टेडियम भी पहले :- बना राजधानी रायपुर में एक तरफ जहां स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स दो दशक के बाद भी अब तक नहीं बन सका है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की नई राजधानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम बन गया है। न सिर्फ यह स्टेडियम बन गया है, बल्कि यहां पर भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ियॊ का एक मैच भी करवाया गया। जब मैच हुआ तो इस मैच को देखने के लिए जिस तरह से एक लाख से ज्यादा दर्शकों का सैलाब आया उससे भी यह मालूम होता है कि छत्तीसगढ़ में क्रिकेट की कितनी दीवानगी है। मैच में खेलने आए खिलाड़ी एक मैत्री मैच ही इतने ज्यादा दर्शक देखकर आश्चर्य में पड़ गए थे। विकास का रास्ता भी दिखाता है क्रिकेट:- क्रिकेट के बारे में विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह जिस राज्य में ज्यादा खेला जाता है, उसको विकास का रास्ता भी दिखाता है। एक समय भारतीय टीम में मुंबई के खिलाड़ियों का दबदबा तो मुंबई का विकास हुआ। इसके बाद दिल्ली का नंबर आया, फिर बंगाल का और फिर अब उत्तर प्रदेश और झार‌‌खंड का नंबर है। इन राज्यों में विकास की गंगा बह रही है। छत्तीसगढ़ से भले एक राजेश चौहान के बाद कोई खिलाड़ी भारतीय टीम में स्थान नहीं बना सका है, लेकिन यहां पर क्रिकेट की दीवानगी किसी भी राज्य की तुलना में काफी ज्यादा है। और यह दीवानगी भी राज्य को विकास का रास्ता दिखाने का काम कर सकती है।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्रिकेट की दीवानगी तो खैर पूरे देश में ही है. अच्छा आलेख.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी पोस्ट लिखी है।बधाई।

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