सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
क्रिकेटरों का सजा बाजार - खेल बना व्यापार
एक समय जेंटलमैन का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट अब आज एक तरफ जहां मनी-मैन का खेल बन गया है, वहीं क्रिकेटरों का बाजार भी सजने लगा है। क्रिकेटरों का जो बाजार सज रहा है उसको सजाने का काम किसी और ने नहीं बल्कि भारत ने किया है। वैसे कहा तो यही जाता है कि खेल भावना के मामले में भारत नंबर वन रहा है, लेकिन अब ऐसी कोई बात कम से कम भारतीय टीम में नजर ही नहीं आती है। आज क्रिकेटरों में टीम भावना के अभाव के साथ देश प्रेम का जज्बा भी कम ही नजर आता है। आज के क्रिकेटर तो बस पैसों के पीछे ही भाग रहे हैं। पैसों के पीछे भागना गलत नहीं है, लेकिन पैसों की खातिर खेल को ताक पर रखना जरूर गलत है और क्रिकेट के साथ यही हो रहा है। जब से क्रिकेट में आईपीएल की घुसपैठ हुई है क्रिकेट जहां व्यापार बन गया है, वहीं यह एक भौंड़ा मनोरंजन बनकर रह गया है। क्रिकेट सिनेमा का तीन घंटे का ऎसा शो बन गया है जिसमें दर्शकों को लुभाने के लिए सारा मसाला रहता है। अगर यही हाल रहा तो क्रिकेट को बर्बादी की तरफ जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल ने जब से क्रिकेट को अपनी गोद में बिठाने का काम किया है क्रिकेट एक गलत रास्ते की तरफ चल पड़ा है। यह बात शायद उन लोगों को नागवर लगे जिन लोगों ने क्रिकेट को आईपीएल से जोड़ने का काम किया है। लेकिन यह कटु सच है कि आज आईपीएल के कारण क्रिकेट में ऐसा कुछ होने लगा है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। क्रिकेट का आज एक दूसरा ही रूप सबके सामने आया है। यह तो किसी ने नहीं सोचा था कि क्रिकेटरों को भी सरे बाजार खड़े करके उसी तरह से बेचने का काम किया जाएगा जैसा काम एक समय में गुलामों को बेचने का किया जाता था। गुलाम शब्द से जरूर किसी को आपत्ति हो सकती है, लेकिन क्रिकेटर जिस तरह से अपने लीग टीमों के आकाओं के इशारों पर नाचते हैं उससे उनको गुलाम ही कहा जा सकता है। फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेटर आज खेल के कम और पैसॊ के गुलाम यादा हो गए हैं। अगर क्रिकेटर खेल के मुरीद होते तो जरूर उनके लिए गुलाम शब्द का अर्थ खास हो जाता और जब किसी क्रिकेटर को खेल का गुलाम कहा जाता तो उसका सीना चौड़ा हो जाता। लेकिन यहां मामला उल्टा है। यह सोचने की बात है कि एक समय वह भी था जब हर देश का क्रिकेटर बस और बस अपने देश के लिए खेलता था लेकिन अब न जाने वह समय कहां गुम हो गया है। जब भारत-पाक के बीच मैच होता था तो लगता था यह मैच नहीं एक जंग है। इस जंग में जीतने के लिए एक तरफ जहां सारे भारतीय क्रिकेटर अपना सब कुछ दांव पर लगा देते थे, वहीं पाकिस्तानी क्रिकेटर भी पीछे नहीं रहते थे। सभी में बस अपने देश के लिए जीतने का जुनून रहता था। क्रिकेटरों की बात क्या दोनों देशों का एक-एक देशवासी मैच से ऐसे जुड़ जाता था मानो यह उसके लिए जीने-मरने का सवाल हो। क्यों न हो आखिर खेल का असली मतलब तो यही है कि आप अपने देश और देशवासियों की भावनाओं के लिए खेलें। जैसा जुनून भारत-पाक के मैच में होता था वैसा ही जुनून तब आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच होने वाली एशेज सीरीज के मैचों में नजर आता था। इनके बीच एशेज की गाथा को सब जानते हैं। कैसे इंग्लैंड की टीम के हारने पर उसको राख भेंट की गई थी और यहां से शुरू हुई थी एशेज की शृंखला। यह देशवासियों का जबा था जो वे अपनी टीम को हारते नहीं देख पाए थे। इसके बाद से एशेज को जीतना दोनों टीमों ने अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। दोनों देश की टीमें किसी भी कीमत पर अपने देशवासियॊ को नाराज नहीं करना चाहती थी। इन उदाहरणों से यह साबित होता है कि वास्तव में क्रिकेट खेलने वाले देशों के देशवासियों में क्रिकेट किस तरह से रचा बसा है। किसी भी देश के देशवासी अपनी टीम को हमेशा जीतते देखना चाहते हैं। कई बार ऐसा हुआ है जब भारत या पाकिस्तान की टीम हारकर घर लौटी है तो टीम के खिलाड़ियों को अपने देशवासियों के गुस्से का सामना करना पड़ा है। इतना सब होने के बाद अचानक क्रिकेट में एक ऐसा बदलाव आया है जिसकी कल्पना करना आसान नहीं था। आज क्रिकेट को पूरी तरह के पेशेवर बना दिया गया है। बात यहां पर मात्र पेशेवर की नहीं है पेशेवर मामले में देखा जाए तो आज कंगारू टीम इस मामले में पहले नंबर पर है। यह कंगारू टीम का पेशेवर रूख ही है जिसके कारण वह विश्व की नंबर वन टीम है। लेकिन इस पेशेवर रूख की वजह से टीम ने कभी भी अपने देशवासियों को नाराज नहीं किया है। लेकिन लगता है कि अब कंगारू टीम के खिलाड़ी भी आईपीएल की आंधी में उड़ गए हैं। वैसे अब तक तो यह बात सामने नहीं आई है कि कंगारू क्रिकेटर अपने देश हित को ताक पर रखकर कोई समझौता करेंगे। वैसे आस्ट्रेलिया के साथ किसी भी देश के क्रिकेटरों को लेकर ऐसी बात सामने नहीं आई है लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि आज जिस तरह से लगातार क्रिकेट हो रहा है उसका असर तो पड़ ही रहा है। एक तरफ अपने देश की टीम से खेलना फिर खाली समय में आईपीएल के लिए खेलना। ऐसे में क्रिकेटर कैसे दोनों तरफ न्याय कर सकते हैं। आईपीएल के लिए जिस टीम से क्रिकेटरों को खेलना है उसके लिए टीमॊ के आका लाखों नहीं करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे में वे तो जरूर चाहेंगे कि वे जिस खिलाड़ी पर दांव लगा रहे हैं कि वे खिलाड़ी अपने बल्ले या फिर गेंद का कमाल दिखाकर उनकी टीम को जीत तक ले जाने का काम करें। फिर यहां पर खिलाड़ियों का अपना स्वार्थ भी रहता है। स्वार्थ यह कि जब वे अच्छा खेलेंगे तो उनकी बोली भी यादा लगेगी। यह बात उनके साथ अपने देश की टीम से खेलते समय लागू नहीं होती है। जब कोई खिलाड़ी अपने देश की टीम से खेलता है तो उसको कुछ मैचों में खराब प्रदर्शन करने से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता है। भले आज सभी देश इस मामले में पेशेवर हो गए हैं लेकिन इसके बाद भी कम से कम ऐसे खिलाड़ियों को कोई बाहर का रास्ता दिखाने का काम नहीं कर पाता है जिनका नाम बड़ा है। बड़े नाम का ही तो खिलाड़ी गलत फायदा उठाते हैं। अगर बड़े-छोटे का अंतर समाप्त करके खराब प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया जाए तो जरूर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। ऐसे खिलाड़ियों के मामले में भारत नंबर वन पर है। भारतीय टीम के स्टार खिलाड़ियों को चयनकर्ता लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाते हैं। इसके विपरीत कई खिलाड़ी ऐसे रहे हैं जिनको टीम में लिया जाता है, पर उनको खेलने का मौका दिए बिना ही बाहर भी कर दिया जाता है। ऐसे में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि बड़े खिलाड़ी ईमानदारी से खेलेंगे। यही वजह है कि खिलाड़ी अपने देश की टीम पर कम और आईपीएल की अपनी टीम पर ज्यादा ध्यान देते हैं। आईपीएल बनाम तीन घंटे का सिनेमा:- आईपीएल का आगाज जब से हुआ है क्रिकेट एक तरह से तीन घंटे का ऐसा सिनेमा बनकर रह गया है जिसको चलाने के लिए निर्माता-निर्देशक उसमें सारा मसाला भर देते हैं। आईपीएल में भी चूंकि फिल्मी सितारों की घुसपैठ है तो क्रिकेट को भी सिनेमा जैसा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। आईपीएल के पिछले आयोजन पर नजरें डालने से साफ मालूम होता है कि कैसे चियर्स गर्ल्स के कारण क्रिकेट के साथ अश्लीलता जुड़ गई थी। बाद में इस पर कोर्ट के आदेश से थोड़ा सा अंतर आया। वैसे देखा जाए तो क्रिकेट जैसे खेल में चियर्स गर्ल्स का क्या काम। मैदान में दर्शक मैच देखने जाते हैं इतना समय कहां रहता है कि लोग किसी तरह का नाच देख सकें। लेकिन दर्शकों का टेस्ट बदलने का काम किया जा रहा है। खेल को मनोरंजक बनाना गलत नहीं है। ओलंपिक और एशियाड जैसे बड़े आयोजनों में भी कार्यक्रम होते हैं लेकिन सब कुछ सभ्यता और संस्कृति के दायरे में होता है, किसी भी ऐसे आयोजन में कभी अश्लीलता का आरोप नहीं लगा। लेकिन आईपीएल के आयोजन में पहले ही कदम पर अश्लीलता का आरोप लग गया है। वास्तव में कम कपड़ों की लड़कियों को दर्शेकों के सामने रखकर आईपीएल के आका क्या करना चाहते हैं समझ के परे है। लगता है कि उनको उन क्रिकेटरों और उनके खेल पर भरोसा ही नहीं है जिन पर वे करोड़ों का दांव लगाते हैं। अगर भरोसा है तो फिर क्रिकेट को तीन घंटे का सी ग्रेड का सिनेमा बनाने का काम क्यों किया जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो क्रिकेट सिनेमा बन जाएगा और उसे बर्बाद होने से कोई नहीं रोक पाएगा। वैसे भी क्रिकेट को एक तरफ बर्बाद करने का काम मैच फिक्सिंग ने किया है। दर्शक आज क्रिकेटरों पर भरोसा कम करने लगे हैं। ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि क्रिकेटर पैसों के पीछे भागना कम करके अपने देश के लिए खेलने पर ध्यान यादा दें। कहीं ऐसा न हो कि क्रिकेट के खेल से लोग ऊब जाए और जिसे खेल की दुनिया दीवानी है उस खेल पर ही ताला लग जाए।
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1 टिप्पणी:
ठीक कहा बंधु। वैसे क्या भाव बिक रहे हैं सब। सही रेट लगे तो बताइएगा, हम भी एक ले लेंगे।
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