बुधवार, 4 मार्च 2009

ओलंपिक में पदक जीतने सोच को कर्ण-अर्जुन तक ले जाना होगा

तीरंदाजी तो अपने देश का ही खेल है। महाभारत से लेकर रामायण में इसके तीरों के जलवों का उल्लेख है। महाभारत में कर्ण और अर्जुन जिस तरह से तीर चलाते थे उसको लक्ष्य बनाकर अगर भारतीय खिलाड़ी भी चले तो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारतीय तीरों का पूरे विश्व में जलवा होगा।
ऐसा मानना है भारतीय ओलंपियन लिम्बाराम का। उनका कहना है कि भारत के पास तीरंदाजी में आज भी महाभारत के योद्वा कर्ण और अर्जुन जैसी प्रतिभा के खिलाड़ी हैं, लेकिन ये आज ओलंपिक में स्वर्ण पर निशाने भेदने में इसलिए सफल नहीं हो रहे हैं क्योंकि जहां इनकी सोच कर्ण-अर्जुन तक नहीं पहुंच पा रही है, वहीं इनको द्रोणाचार्य जैसे गुरू भी नहीं मिल रहे हैं जो इनको कर्ण और अर्जुन की तरह हर निशाने को भेदने में सफल बना सके। उन्होंने कहा कि भारत को अगर ओलंपिक में स्वर्ण पदक चाहिए तो सबसे पहले देश के खिलाड़ियों को अपनी सोच को महाभारत के कर्ण और अर्जुन की सोच तक ले जाना होगा। उन्होंने कहा कि जिस देश में कर्ण-अर्जुन जैसे धनुधर हुए हैं, वहां के खिलाड़ियों को यह सोचना ही चाहिए कि आखिर उनमें ऐसा क्या था जो तीर उनके इशारों पर चलते थे। अगर हमारे खिलाड़ी इस बात की तह तक पहुंच जाए तो जरूर ओलंपिक में स्वर्ण मिलने में आसानी होगी। लिम्बाराम ने कहा कि आज देश में कर्ण और अर्जुन जैसी प्रतिभा वाले खिलाड़ियों की कमी नहीं है। लेकिन यह हमारे खिलाड़ियों का दुर्भाग्य है कि उनको तराशने वाले गुरू दोर्णाचार्य नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में खिलाड़ियों को ही इस बात का प्रयास करना चाहिए कि वे सोचे कि आखिर कर्ण और अर्जुन में ऐसा क्या था जो उनके तीरों का डंका बजता था। लिम्बाराम ने कहा कि उन्होंने अपने खेल जीवन में हमेशा कर्ण और अर्जुन की सोच तक पहुंचने का प्रयास किया है। मैं हमेशा से यही सोचता रहा हूं कि जो काम महाभारत के वो योद्वा किया करते थे, हम क्यों नहीं कर सकते हैं, आखिर हम भारतवासी भी तो उन्हीं के वंशज हैं। बकौल लिम्बाराम वे इसी दिशा में सोचते हुए आगे बढ़ रहे थे और 2004 के ओलंपिक ती तैयारी में थे, लेकिन दुर्भाग्य से उनके कंघे में चोट के कारण उनको 2004 के ओलंपिक में खेलने का मौका नहीं मिला, पर अब वे उस कसर को 2008 के ओलंपिक में पूरी करने की तैयारी में हैं। लिम्बाराम का एक मात्र लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए स्वर्ण भेदना है। 1988 के साथ ही 1992 के ओलंपिक में देश के लिए निशाने लगाने वाले इस खिलाड़ी ने एक सवाल के जवाब में बताया कि उनके समय में तो देश में बमुश्किल एक दर्जन ही अच्छे खिलाड़ी हुआ करते थे लेकिन आज देश में 400 से भी ज्यादा ऐसे खिलाड़ी हैं जिनके पास आधुनिक तीर-कमान हैं। उन्होंने कहा कि आज के जमाने में आधुनिक तीर-कमान के बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाना कठिन है। आज आधुनिक कमान एक लाख पचास हजार से कम की नहीं आती है। इसी के साथ एक तीर की कीमत 50 हजार से ज्यादा है। एक खिलाड़ी के पास आधा दर्जन तीर तो होने ही चाहिए। उन्होंने बताया कि वैसे भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई ने कई खिलाड़ियों को ये उपकरण दिलाए हैं। सरकार तीरंदाजी को आगे बढाने का प्रयास कर रही है। तीरंदाजी संघ ने भी इस खेल को आगे बढ़ने के लिए कमर कस रखी है। तीरंजाजी संघ ने खिलाड़ियों को इस खेल से जोड़ने के लिए इनामी राशि वाली चैंपियनशिप का आयोजन कर रहा है। आदिवासी समाज से संबंध रखने वाले लिम्बाराम का मानना है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियॊं की संख्या के साथ ही यहां की प्रतिभाओं को देखते हुए यह जरूरी है कि यहां पर राज्य सरकार को तीरंदाजी की एक अकादमी खोलने की पहल करनी चाहिए। इस अकादमी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैदान बनाने के साथ आधुनिक तीर-कमान उपलब्ध करावाएं जाए तो छत्तीसगढ़ के आदिवासी तीरंदाज देश के लिए ओलंपिक में पदक जीत सकते हैं। उन्होंने साइंस कॉलेज के मैदान पर राष्ट्रीय जूनियर तीरंदाजी के लिए बनाए गए मैदान की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह मैदान तो अंतरराष्ट्रीय स्तर का लग रहा है। राष्ट्रीय चैंपियनशिप में काफी कम स्थानॊं पर खिलाड़ियों को ऐसे मैदान मिल पाते हैं। उन्होंने पूछने पर कहा कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार या फिर यहां का तीरंदाजी संघ यहां के खिलाड़ियों को तराशने ने लिए उनकी सेवाएं चाहेगा तो वे खुशी से छत्तीसगढ़ में आकर सेवाएं देंगे। लिम्बाराम ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनको यह जानकार काफी खुशी हुई है कि छत्तीसगढ़ में भी आन्ध्र प्रदेश की तरह खेल और खिलाड़ियों को बढ़ाने का काम किया जा रहा है और यहां के खिलाड़ियॊं को राज्य पुरस्कार के साथ दो लाख से ज्यादा की राशि दी जा रही है। अर्जुन पुरस्कार के साथ ही राजस्थान के पहले राजस्थान खेल रत्न पुरस्कार प्राप्त इस खिलाड़ी एक सवाल के जवाब में कहा कि यह जरूरी है कि भारत में भी चाईना और अन्य देशों की तरह ही ओलंपिक के लिए खिलाड़ी तैयार करने की योजना दीर्घकालीन होनी चाहिए। आज यह जरूरी है कि अभी से 2012 और 2016 के ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों का चयन करके उनको तराशने का काम किया जाए। उन्होंने इस बात को वास्तव में गलत माना कि किसी भी ओलंपिक से बमुश्किल चह माह पहले ही तैयारी की जाती है। उन्होंने कहा कि इनते कम समय की तैयारी में खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद करना गलत है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि हमारे देश में किसी भी खिलाड़ी से जरूरत से ज्यादा उम्मीद की जाती है जिसके कारण खिलाड़ी अनावश्यक दबाव में आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि ओलंपिक में देश को पदक दिलाने का काम करने वाले पहले दो खेल तीरंदाजी और निशानेबाजी ही है। इन्हीं खेलॊं की तरफ सरकार को पहले ध्यान देना चाहिए। राजस्थान से संबंध रखने वाले इस खिलाड़ी ने एक सवाल के जवाब में बताया कि राजस्थान की सरकार ने तीरंदाजी के लिए काफी कुछ किया है। वहां पर जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैदान बनाया गया है, वहीं खिलाड़ियॊं को आधुनिक तीर-कमान भी उपलब्ध करवाए गए हैं। इसी के परिणाम स्वरूप वहां के तीरंदाजों जयंती लाल और नरेश दामोर ने देश को एशियन चैंपियनशिप में पदक भी दिलवाएं हैं। उन्होंने बताया कि वहां कि सरकार राज्य के टॉप खिलाड़ियों को नौकरी भी देने का काम कर रही है। उन्हॊने बताया कि उनके साथ श्याम लाल को भी राजस्थान सरकार ने खुद बुलाकर नौकरी दी है। लिम्बाराम ने बताया कि राजस्थान सरकार केवल तीरंदाजी ही नहीं दूसरे खेलों को भी बढ़ाने के लिए हर सुविधाएं देने का काम कर रही है। उन्हॊंने कहा कि हर राज्य सरकार को अपने राज्य में खेलों के विकास पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान चाहिए। ऐसा होने से ही देश में खेलों का सही विकास होगा।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

कृपया मेरी मदद करो. मैं KAPIL देख रहा हूँ. उनकी राष्ट्रीय टीम. धनुर्धारियों. मुझे क्या करना चाहिए?

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