इंडियन प्रीमियर लीग का दूसरा संस्करण काफी विवादों के बाद अब जाकर द. अफ्रीका की सरजमीं पर होने जा रहा है। आईपीएल के आयोजकों के साथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगाया कि यह आयोजन अपने देश में ही हो, लेकिन इसका क्या किया जाए कि देश में इस समय होने वाले लोकसभा चुनाव के कारण यह संभव नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में पहले क्रिकेट नहीं बल्कि पहले देश है। भले भारत में क्रिकेट को पूजा जाता है, और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी के दीवाने उनको भगवान मानकर उनका मंदिर बनवा देते हैं। लेकिन इसका यह कताई मतलब नहीं होता है कि सुरक्षा को ताक में रखकर आयोजन किया जाए और वो भी ऐसे समय में जबकि चुनाव का समय है और चुनाव देश के लिए क्रिकेट से कहीं ज्यादा जरूरी है। वैसे यह बात आईपीएल के आयोजक भी पहले से जानते थे कि अप्रैल से मई के बीच में चुनाव होने हैं और चुनाव के समय क्रिकेटरों को सुरक्षा उपलल्ध करवा पाना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। आईपीएल को लेकर भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना सांघने का कोई मौका नहीं छोड़ा। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो खिलाडिय़ों को सुरक्षा देने की गारंटी ले ली। लेकिन क्या महज उनकी गारंटी पर आईपीएल का आयोजन संभव था। वैसे भी देखा जाए तो आईपीएल से खिलाडिय़ों के अलावा किसी का भला नहीं हो रहा है। यह तो महज तीन घंटे के सिनेमा से ज्यादा कुछ नहीं है जिसमें नाच-गाने के मसाले से लेकर गेंद और बल्ले चलाने का रोमांच दर्शकों के सामने परोसा जाता है। अब इसके भारत में होने न होने से किसी को ज्यादा फर्क पडऩे वाला नहीं है। भारतीय दर्शक सिर्फ सीधे मैच देखने से ही वंचित रहेंगे, बाकी टीवी पर मैच देखने वाले तो मैच देखने का काम जरूर करेंगे।
आईपीएल के पहले संस्करण के जोरदार सफल होने के बाद आईपीएल के दूसरे संस्करण का जब आयोजन करने का फैसला आयोजकों ने किया था तब उनको नहीं मालूम था कि इस आयोजन से पहले ऐसा कुछ हो जाएगा जिससे उनका यह आयोजन भारत में खटाई में पड़ जाएगा। संभवत: ऐसा होता भी नहीं। लेकिन एक तो भारत में होने वाले लोकसभा चुनाव ने आईपीएल का रास्ता रोका, फिर सवाल यह खड़ा हुआ कि क्या लोकसभा चुनाव के समय खिलाडिय़ों को वैसी सुरक्षा दी जा सकती है जैसी जरूरी है। खिलाडिय़ों को ज्यादा सुरक्षा देने की जरूरत इसलिए आन पड़ी क्योंकि आईपीएल के आयोजन से ठीक पहले पाकिस्तान में जिस तरह से लंकाई खिलाडिय़ों पर आतंकी हमला हुआ उस हमले के बाद यह बात तय हो गई कि आईपीएल का आयोजन बिना कड़ी सुरक्षा के संभव नहीं है। ऐसे में आयोजकों ने पूरा प्रयास किया कि सरकार उनको सुरक्षा देने का काम करे। केन्द्रीय गृहमंत्रालय के कहने पर आयोजकों ने दो बार कार्यक्रम में फेरबदल किया, लेकिन बात नहीं बनी। ऐसे में आयोजकों ने मजबूरी में इसका आयोजन द. अफ्रीका या फिर इंग्लैंड में करने का फैसला किया। आईपीएल के प्रस्ताव पर द. अफ्रीका ने मेजबानी में बाजी मार ली। काफी कम समय में अफ्रीका ने आयोजन का जिम्मा ले लिया। जब आईपीएल को देश के बाहर ले जाने का फैसला किया गया था, उस समय ऐसा माना जा रहा था कि आयोजक सरकार को डराने का काम कर रहे हैं और सरकार को अंत में इसलिए झूकना पड़ेगा क्योंकि आगे लोकसभा चुनाव हैं और ऐसे में क्रिकेट को सुरक्षा न दे पाने का एक मुद्दा भाजपा को मिल जाएगा। भाजपा के नेताओं ने इस बात को जोर-शोर से उछालने का काम भी किया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो केन्द्र सरकार को कोसते हुए खिलाडिय़ों को सुरक्षा देने की गांरटी लेने की बात कह दी। अब यह बात अलग है कि मोदी जी अपने राज्य में आतंकी हमलों को नहीं रोक पाए थे और वे खिलाडिय़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने की बात कह रहे हैं। ऐसी खोखली राजनीति किस काम की। क्या वास्तव में श्री मोदी ऐसी कोई ठोस बात कह सके जिससे उनकी बात पर भरोसा किया जाता। श्री मोदी को देश से ज्यादा क्रिकेट की इतनी ही चिंता थी तो उनको आईपीएल का सारा आयोजन गुजरात में करवाने के लिए आईपीएल के आयोजकों को तैयार कर लेना था। वैसे देखा जाए तो आईपीएल को लेकर भाजपा ने राजनीति करने का कोई मौका नहीं गंवाया। भाजपा नेताओं ने अपने पासे फेंककर केन्द्र सरकार को बोल्ड करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन तारीफ करनी होगी गृहमंत्री पी. चिंदबरम की जिन्होंने देश से ज्यादा महत्व क्रिकेट को नहीं दिया। माना कि भारत में क्रिकेट को पूजने की हद तक चाहा जाता है और लोग यहां पर सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी की मूर्ति लगाकर मंदिर बना लेते हैं, लेकिन इन सब बातों के कारण सुरक्षा को तो ताक पर नहीं रखा जा सकता है न। अगर खिलाडिय़ों को कम सुरक्षा देकर आयोजन को मंजूरी दे दी जाती और पाकिस्तान जैसी घटना हो जाती तो इसका जवाबदार कौन होता? तब आज वहीं लोग सरकार को कोसने का काम करते जो आयोजन के लिए सुरक्षा न देने पर सवाल उठा रहे हैं। यह अपने आप में समझने वाली बात है कि जब विश्व के सबसे बड़े लोकतांंत्रिक देश में चुनाव हो रहे हैं तो उस चुनाव के लिए सुरक्षा के इंतजाम ज्यादा जरूरी है या फिर क्रिकेट के लिए सुरक्षा देना ज्यादा जरूरी है। और वो भी एक ऐसे क्रिकेट के आयोजन के लिए जो तीन घंटे के सी क्लास के सिनेमा से ज्यादा कुछ नहीं है। अगर यहां पर कोई विश्व कप की बात होती को एक बात समझ आती की विश्व कप तो पहले से तय था ऐसे में उसके लिए सुरक्षा के इंतजाम जरूरी है। लेकिन आईपीएल को कोई मजबूरी नहीं है। अगर वास्तव में गंभीरता से देखा जाए तो आईपीएल के आयोजन से खेल का क्या भला हो रहा है। इस आयोजन से आयोजन करने वालों के साथ खिलाडिय़ों पर ही पैसे बरसे रहे हैं। आम जनों की तो जेबें खाली हो रही हैं। आईपीएल के पहले संस्करण में यह बात का खुलकर सामने आई कि क्रिकेट में फिल्मी सितारों की घुसपैठ के कारण क्रिकेट एक तरह से बर्बादी की तरफ जा रहा है। मैचों के आयोजन के बीच में कम कपड़ों वाली चियर्स गल्र्स को रखकर आयोजक दर्शकों को कौन का खेल दिखाना चाहते हैं यह तो वहीं बता सकते हैं। ऐसे सिनेमा को अगर वास्तव में अगर गृह मंत्रालय में सुरक्षा के लिहाज से मंजूरी न देने का काम किया गया है तो इसके लिए गृह मंत्रालय साधुवाद का पात्र है। हो सकता है कि यह बात क्रिकेट के चाहने वालों को अच्छी न लगे। लेकिन क्रिकेट के चाहने वाले भी भारत के नागरिक पहले हैं। ऐसे में उनको पहले देश हित का ध्यान रखना चाहिए। इसमें कोई दो मत नहीं कि किसी भी देश के लिए चुनाव ज्यादा जरूरी होते हैं न की क्रिकेट जैसा कोई आयोजन। क्रिकेट को साल भर चलते रहता है और चलता रहेगा, लेकिन चुनाव तो पांच साल में एक बार होने हैं और जनता को अपना मत देना है।
आईपीएल के भारत में न होने से जरूर दर्शकों में निराशा होगी लेकिन देश के नागरिक यह बात अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि अगर सुरक्षा के अभाव में उनके किसी चहेते क्रिकेटर को कुछ हो जाता तो क्या होता। इसमें कोई दो मत नहीं कि आतंकवाद को लगातार बढ़ावा देने वाला अपना पड़ोसी देश भी इस ताक में रहा होगा कि आईपीएल का आयोजन कम सुरक्षा के बीच भारत में हो और उस पर आतंकी हमला कर दिया जाए। ऐसा होने की कल्पना करके ही क्रिकेट प्रेमी समझ सकते हैं कि आईपीएल को भारत में मंजूरी न देना एक अच्छा फैसला रहा है। गृह मंत्रालय ने एक तरह से पाक के मंसूबों पर भी पानी फेरा है।
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