प्रदेश में इस समय सबसे ज्यादा खेले जाने वाले खेलों में फुटबॉल का नाम भी है। वैसे तो कबड्डी और वालीबॉल का खेल सबसे ज्यादा खेला जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में फुटबॉल खेलने वाले खिलाडिय़ों की भी कमी नहीं है। इधर ग्रामीण खिलाडिय़ों को भरपूर मौका देने का काम प्रदेश का फुटबॉल संघ भी कर रहा है। इस बारे में जानकारी देते हुए प्रदेश संघ के जोनल सचिव मुश्ताक अली प्रधान के साथ कोषाध्यक्ष दिवाकर थिटे ने बताया कि प्रदेश में फुटबाल संघ का गठन २००१ में किया गया। इसके बाद से ही प्रदेश में सभी १८ जिले सक्रिय हैं। इसके पहले जब १६ जिले थे तो शुरू से ही यहां पर जिला संघ बना दिए गए थे, इसके बाद दो और जिले बने तो वहां भी संघों का गठन कर दिया गया। इन्होंने बताया कि हर जिले में फुटबॉल के एक दर्जन से ज्यादा क्लब हैं। संघ के पास प्रदेश के ४०० से ज्यादा फुटबॉल क्लबों का पंजीयन है। इन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा क्लब आदिवासी जिलों कोरिया, सरगुजा, बस्तर में हैं। कोरिया और सरगुजा जिलों में तीन-तीन दर्जन से ज्यादा क्लब हैं। इसी तरह से कोरबा, दुर्ग, रायपुर कांकेर में कम से कम २०-२० क्लब हैं। इन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में फुटबॉल आज आगे है तो इसके पीछे यहां पर फैला क्लब का जाल है। क्लब कल्चर से ही फुटबॉल क्या किसी भी खेल को आगे बढ़ाया जा सकता है। बंगाल में फुटबॉल का दबदबा रहता है तो इसके पीछे भी क्लब कच्लर ही है। हर वर्ग की होती है चैंपियनशिप:- चैंपियनशिप का जहां तक सवाल है तो हर आयु वर्ग की चैंपियनशिप का आयोजन प्रदेश संघ राज्य स्तर के साथ जिला स्तर पर करता है। फुटबॉल ही एक ऐसा खेल है जिसमें अंडर बालिका वर्ग में अंडर १४, १७ एवं १९ साल की चैंपियनशिप के साथ सीनियर वर्ग की चैंपियनशिप होती है। बालक वर्ग में अंडर १४, १६, १९ और २१ साल के साथ सीनियर वर्ग की चैंपियनशिप होती है। इन सभी वर्गों की राज्य चैंपियनशिप के बाद राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेलने जाने से पहले टीमों का प्रशिक्षण शिविर अनिवार्य रूप से लगाया जाता है। प्रदेश की कोई भी टीम २१ दिनों के प्रशिक्षण शिविर के बिना बाहर खेलने नहीं जाती है। आज यही वजह है कि प्रदेश की टीमों को लगातार सफलता मिल रही है। टीम अभी तक भले राष्ट्रीय स्तर पर कोई पदक नहीं सकी है, लेकिन बालिका वर्ग में सब जूनियर टीम सेमीफाइनल तक पहुंचने में सफल रही है। खेल विभाग की मदद से निखर रहा है खेल:- मुश्ताक अली प्रधान ने बताया कि प्रदेश में फुटबॉल का खेल विभाग की मदद के कारण निखर रहा है। उन्होंने बताया कि विभाग जहां सब जूनियर के साथ जूनियर वर्ग की राज्य चैंपियनशिप का आयोजन कर रहा है, वहीं जिला टीमों को आने-जाने का खर्च मिलने के कारण ही अब जिलों से ग्रामीण अंचल के खिलाड़ी खेलने आने लगे हैं। ग्रामीण खिलाडिय़ों के चैंपियनशिप में आने के कारण प्रदेश की टीम में स्थान बनाने के लिए मुकाबाल कड़ा हो जाता है। ग्रामीण खिलाडिय़ों के फिटनेस के आगे बाकी खिलाड़ी ठहर नहीं पाते हैं। मैदान और अकादमी जरूरी है:- श्री प्रधान ने बताया कि प्रदेश संघ के पास अपना मैदान न होने के कारण भारी परेशानी होती है। उन्होंने बताया कि इसी के साथ यह भी जरूरी है कि प्रदेश की टीमों को राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाने के लिए अकादमी बनानी चाहिए। इस दिशा में प्रदेश संघ पहल भी कर रहा है। उन्होंने बताया कि वैसे दूसरे राज्यों की तुलना में यहां पर सुविधाओं की कमी जरूरी है। लेकिन इसके बाद भी प्रदेश के खिलाड़ी अपनी मेहनत से सफलता पाने में सफल हो रहे हैं।
1 टिप्पणी:
ये हुई ना बात यही सही तरीका है ब्लॉग में पोस्ट डालने का ! इमेज डालने से ब्लॉग पढने का मजा नही आता और ना ही सर्च इंजन इसमें लिखे शब्दों को पकड़ पाता है जिससे आपके द्वारा दी गई जानकारी ज्यादा लोगों के पास नही पहुँच पाती क्योंकि सबसे पहले रीडर सर्च इंजन में ही सर्च करता है फिर किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर जाता है ! अब बस ब्लॉग का डिजाइन चेंज करने के बारे में सोचें जिससे आपको लिखने और इमेज डालने की ज्यादा से ज्यादा जगह मिलें !
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