सोमवार, 7 जून 2010

पैरों में ताकत लाने की कवायद

सप्रे स्कूल के मैदान में लाइन से खिलाड़ी खड़े हैं। प्रशिक्षक का इशारा मिलते ही एक-एक करके खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं और मार्कर के उपर से जंप लगाते जाते हैं। ऐसा एक बार नहीं बल्कि लगातार १५ मिनट तक करना है। ऐसा करने से ही पैरों में ताकत आती है और ताकत आने से ही फुटबॉल में खेल अच्छा होता है।
शेरा क्रीड़ा समिति के साथ खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा सप्रे स्कूल में फुटबॉल का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है। वैसे तो सप्रे स्कूल में साल भर शेरा क्लब का प्रशिक्षण शिविर चलता है। लेकिन गर्मियों की छुट्टियों होने के कारण इस समय फुटबॉल का जुनून कुछ ज्यादा ही खिलाडिय़ों पर छाया हुआ है। शिविर में २५० से ज्यादा खिलाड़ी आ रहे हैं। खिलाडिय़ों को तैयार करने की प्रशिक्षक मुश्ताक अली प्रधान की अपनी अलग तकनीक है। वे साफ कहते हैं कि फुटबॉल का खेल पैरों की ताकत का खेल है। जब पैरों में जान ही नहीं होगी तो खिलाड़ी क्या खेलेगा। उनको इस बात का बहुत मलाल है कि आज के खिलाडिय़ों के पैरों में इतनी भी जान नहीं होती है कि वे ठीक से किक मार सके। वे बताते हैं कि हमारे जमाने में खिलाडिय़ों के पैरों में इतनी जान होती थी कि फुटबॉल को जब किक लगती थी तो बॉल एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच जाती थी, लेकिन आज के खिलाड़ी उस छोर क्या उस छोर के आधे रास्ते तक भी बॉल को नहीं पहुंचा पाते हैं।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए वे चाहते हैं कि जो भी खिलाड़ी यहां प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं उनके पैरों में इतनी जान आ जाए कि वे कम से कम खेलने के लिए सही तरीके से किक तो मार सके। उन्होंने पूछने पर बताया कि पैरों में ताकत लाने के लिए स्कील करवाते समय कम से कम १० मार्कर रखे जाते हैं। इन मार्कर को कोण भी कहा जाता है। इन दस मार्कर के उपर से जहां खिलाड़ी पहले जंप लगाते हैं, वहीं इसके बाद खिलाडिय़ों को जहां इनके बीच क्रास करके चलने के लिए कहा जाता है, वहीं बॉल लेकर ड्रिब्लिंग करने भी कहा जाता है। वे बताते हैं कि ऐसा करने से खिलाडिय़ों का शरीर लचीला हो जाता है। फुटबॉल में शरीर जितना लचीला होगा खेल उतना ही दमदार होगा। उन्होंने पूछने पर बताया कि कम से कम १५ मिनट तक स्कील करवाने के बाद खिलाडिय़ों को १५ मिनट तक मैदान में दौड़ाया जाता है। इसके बाद प्रारंभ होता है अभ्यास।

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