प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक गांव शिवतराई ऐसा है जहां से दो दर्जन से ज्यादा तीरंदाजी के राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कोच इतवारी राम ने किया है। इतवारी पर खेलों का ऐेसा जुनून है कि वे खिलाडिय़ों को ही अपना जान समझते हैं। खिलाडिय़ों पर वे अपना वेतन क्या सब कुछ निछावर कर देते हैं। अपने गांव के खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए वे उनको लगातार प्रशिक्षण देते हैं। खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने के लिए ही उन्होंने एक माह की छुट्टी ली है। इतवारी द्वारा तैयार किए गए खिलाडिय़ों में से सात खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीते हैं। इन खिलाडिय़ों में से एक खिलाड़ी संतराम को राज्य का प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार मिला है। इसी से साथ उन्होंने कबड्डी में भी ४० राष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं।
राजधानी रायपुर में तीरंदाजी के खिलाडिय़ों को एक माह तक प्रशिक्षण देने वाले इस प्रशिक्षक की तारीफ करते हुए प्रदेश संघ के सचिव कैलाश मुरारक थकते नहीं हंै। वे बताते हैं कि इतवारी जैसा कोच मिलना किसी भी खेल के खिलाडिय़ों के लिए किस्मत की बात है। इतवारी से जब रूबरू हुए तो उन्होंने बताया कि वे कैसे तीरंदाजी से जुड़े। वे बताते हैं कि सरगुजा में वे १०वीं बटालियन में प्रधान आरक्षक हैं। वे खेल विभाग के लिए कबड्डी की टीमें लेकर जाते थे। कबड्डी से जुड़े रहने के कारण वे अपने गांव शिवतराई में खिलाडिय़ों को इस खेल से जोड़े हुए थे। कबड्डी में उन्होंने अपने गांव से ४० राष्ट्रीय खिलाड़ी निकाले। वे बताते हैं कि एक बार खेल विभाग में उनके मुलाकात तीरंदाजी के कोच टेकलाल कुर्रे से हुई। उनसे ही उनको मालूम हुआ कि प्रदेश सरकार राज्य के तीरंदाजों को एक लाख का राज्य पुरस्कार देती है। ऐसे में उनके मन में विचार आया कि क्यों न अपने गांव के गरीब खिलाडिय़ों को तीरंदाजी से जोड़ा जाए ताकि खिलाडिय़ों को राज्य के पुरस्कार मिल सके। ऐसे में उन्होंने सबसे पहले श्री कुर्रे से खुद तीरंदाजी के गुर सीखे इसके बाद लग गए वे अपने गांव के खिलाडिय़ों को तैयार करने में।
इतवारी ने एक सवाल के जवाब में बताया कि वे अब तक अपने गांव से २६ राष्ट्रीय खिलाड़ी निकाल चुके हैं। इन खिलाडिय़ों से एक खिलाड़ी संतराम को जहां राज्य का एक लाख का प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार मिल चुका है, वहीं संतराम सहित सात खिलाड़ी जिनमें कीर्ति पोर्ते, मीनी मरकाम, खेम सिंह, भागवत और प्रभु शामिल हैं राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। इतवारी कहते हैं कि ऐसे में जबकि अपने राज्य को ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है तो उनका ऐेसा सोचना है कि वे चाहते हैं कि उनके गांव के ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी प्रदेश की टीम से राष्ट्रीय खेलों में खेलकर राज्य के लिए पदक जीतने का काम करें। वे अभी से अपने गांव को खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने पूछने पर बताया कि अब वे एक माह की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहे हैं और वहां पर खिलाडिय़ों को २५ जून से प्रशिक्षण देने का काम करेंगे।
इतवारी के बारे में संघ के सचिव कैलाश मुरारका ने बताया इतवारी में अपने खेल के प्रति इतना जुनून है कि अपने वेतन का ज्यादातर हिस्सा खिलाडिय़ों पर खर्च कर देते हैं। एक बार एक खिलाड़ी की मदद करने के लिए उन्होंने अपनी सायकल बेच दी थी। इतवारी पूछने पर कहते हैं कि उनके जिन सात शिष्यों ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं उनके या तो पिता नहीं है या फिर मां नहीं है। ऐसे में उन खिलाडिय़ों की मैं हर तरह से मदद करता हूं।
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