बुधवार, 1 सितंबर 2010

खेल पुरस्कार नियमों में बदलाव संभव

प्रदेश के खेल पुरस्कारों के नियमों को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं। खेलमंत्री लता उसेंडी के साथ खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि नियमों में कुछ विसंगतियां सामने आ रही हैं, ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि नियमों में बदलाव नहीं होगा। खेल संघों के साथ खिलाडिय़ों से चर्चा करके नियमों में बदलाव किया जाएगा। अगले साल से जरूर उन खिलाडिय़ों को शिकायत नहीं रहेगी जिन खिलाडिय़ों को इस बार नियमों को लेकर शिकायतें रहीं। ये शिकायतें मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक भी गई हैं। मुख्यमंत्री ने भी महसूस किया है कि इस साल कुछ पात्र खिलाड़ी वंचित रह गए हैं। खेल अंलकरण समारोह में उन्होंने कहा भी कि कुछ और खिलाडिय़ों को पुरस्कार मिलने थे लेकिन नहीं मिल पाए, अगले साल ऐसा नहीं होगा।
राज्य के खेल पुरस्कारों के चयन में इस बार भी खेल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग गए हैं। लाख कोशिशों के बाद भी विभाग इस बार पुरस्कारों का चयन उतने साफ तरीके से नहीं कर पाया। विभाग ने तो एक डोपिंग के दोषी को ही पुरस्कार के लिए चुन लिया था। अब यह बात अलग है कि इसके लिए विभाग को दोषी नहीं माना जा सकता है, लेकिन विभाग द्वारा तय जूरी ने जिस तरह से एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को नजरअंदाज किया था उससे यह सवाल जरूर खड़े हो गया है कि क्या विभाग जूरी के सामने कुछ नहीं कर पाता है।
टीम खेलों को पुरस्कार देने का विरोध
राज्य के खेल पुरस्कारों के लिए जब सबसे पहले नियम बना था तो शहीद राजीव पांडे के साथ शहीद कौशल यादव और गुंडाधूर के लिए यह तय किया गया था कि ये पुरस्कार व्यक्तिगत प्रदर्शन के आधार पर दिए जाएंगे। लेकिन अचानक २००७ में इसके नियमों में बदलाव करके टीम खेलों को भी इन पुरस्कारों का पात्र बना दिया गया। इसके बाद तो ये पुरस्कार टीम खेलों को मिलने लगे। इस बार पुरस्कार मिलने से पहले ही इस बात का विरोध प्रारंभ हो गया था टीम खेलों को पुरस्कार न दिए जाए। राजीव पांडे पुरस्कार से सम्मानित भारोत्तोलन के खिलाड़ी तेजा सिंह साहू ने इस बारे में लिखित शिकायत राज्यपाल शेखर दत्त के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और खेलमंत्री लता उसेंडी से की थी। श्री साहू ने अपने पत्र में मांग की थी कि राज्य के पुरस्कारों को टीम खेल को देकर पुरस्कार की गरिमा का अपमान न किया जाए। ऐसे में इस बार टीम खेल के खिलाडिय़ों को पुरस्कार नहीं दिए गए।
नियमों में विसंगतियां हैं: खेल संचालक
खेल संचालक जीपी सिंह के पास जब यह शिकायत पहुंची कि टीम खेलों को पुरस्कार देना गलत है तो उन्होंने इसका परीक्षण करवाया तो पाया कि वास्तव में नियमों में विसंगतियां हंै। श्री सिंह कहते हैं कि व्यक्तिगत खेलों के लिए तो तीन साल में से एक साल राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना अनिवार्य है। जबकि टीमों खेलों में एक साल पदक मिलने पर ही ये पुरस्कार दे दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि जो नियम व्यक्तिगत खेलों के लिए हैं, वहीं नियम टीम खेलों के लिए भी लागू होने चाहिए, पर ऐसा न करके नियमों के विपरीत अब तक पुरस्कार दिए गए हैं। श्री सिंह के साथ इस बार जूरी ने भी यह महसूस किया कि व्यक्तिगत खेलों के नियमों के हिसाब से टीम खेलों की टीमें खरी नहीं उतरती हैं, ऐसे में इस बार टीम खेलों को पुरस्कारों से वंतित किया गया।
टीम खेलों के लिए हो अलग पुरस्कार
खेल के जानकारों का साफ कहना है कि खिलाडिय़ों के लिए व्यक्तिगत प्रदर्शन के आधार पर तय किए गए पुरस्कारों को पूरी टीम को देना गलत है। अगर टीम को पुरस्कार देना है तो इसके लिए अलग से पुरस्कार की व्यवस्था की जाए। इस बात से खेल संचालक जीपी सिंह भी सहमत हैं और कहते हैं कि खेल संघों की तरफ से मांग आने पर इसके बारे में प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा सकता है।
अंकों पर आधारित हों पुरस्कार
मप्र में राज्य के खेल पुरस्कारों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए प्रदर्शन के लिए अंक तय रहते हैं। इन अंकों के आधार पर ही पुरस्कार तय किए जाते हैं। लेकिन यहां पर ऐसा न होने के कारण भी परेशानी हो रही है। इसी के साथ छत्तीसगढ़ में खिलाडिय़ों के राष्ट्रीय स्कूली चैंपियनशिप और अखिल भारतीय विश्व विद्यालयीन चैंपियनशिप को शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में इन स्पर्धा में खेलने का फायदा खिलाडिय़ों को नहीं मिल पाता है। खिलाडिय़ों की मानें तो इन स्पर्धाओं को भी पुरस्कारों का चयन करते समय शामिल करके इनके लिए भी अंक देने चाहिए। खेल संचालक जीपी सिंह भी अंकों पर आधारित पुरस्कार की चयन प्रणाली को सही मानते हैं। वे कहते हैं कि अंकों पर आधारित चयन प्रक्रिया होने पर गलतियों की संभावना कम रहेगी।
जांच के लिए पर्याप्त समय हो
जिस तरह से डोपिंग के दोषी खिलाड़ी का मामला सामने आया है उसके बाद अब यह बात उठने लगी है कि खिलाडिय़ों के आवेदनों की जांच के लिए पर्याप्त समय होना चाहिए। फुटबॉल संघ के मुश्ताक अली प्रधान, कराते संघ के अजय साहू और भारोत्तोलन के तेजा सिंह साहू का कहना है कि खिलाडिय़ों के आवेदन ३० जून के स्थान पर ३० मई तक मंगाए जाए तभी पर्याप्त समय मिलेगा। इसी के साथ जिन खिलाडिय़ों के आवेदन आते हैं उनके नामों को अखबारों के माध्यम से सार्वजनिक किया जाए ताकि कोई गलत खिलाड़ी आवेदन करता है तो उसके बारे में खुलासा हो सके।
दूसरे खेलों पर भी ध्यान दें
वालीबॉल संघ के मो. अकरम खान का कहना है कि जिस तरह से नियम बने हुए हैं उन नियमों के कारण चंद खेलों के खिलाडिय़ों को ही पुरस्कार मिल पा रहे हैं। जिन खेलों के खिलाडिय़ों को पुरस्कार नहीं मिल पाते हैं उनके लिए भले शहीद पंकज विक्रम पुरस्कार तय किया गया है, लेकिन इसके बाद भी इस बात की जरूरत है कि जिन टीम खेलों जैसे वालीबॉल, फुटबॉल, हॉकी के साथ व्यक्तिगत खेलों लॉन टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन आदि में खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत नहीं पाते हैं उनके लिए राष्ट्रीय खेलों के लिए पात्रता पाने के तय मापदंड को मानते हुए राष्ट्रीय चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली टीमों और खिलाडिय़ों को पुरस्कार का पात्र मानना चाहिए। भले इनके लिए भी कोई अलग पुरस्कार रखा जाए।
नियमों में संशोधन करेंगे:लता
खेलमंत्री लता उसेंडी का कहना है कि जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उससे लगता तो है कि नियमों में कुछ खामियां हैं। इन खामियों को दूर करने के लिए जो भी आवश्यक होंगे नियमों में बदलाव किए जाएंगे।

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