मंगलवार, 14 सितंबर 2010

खेल विभाग का सेटअप निरस्त

खेल विभाग के नए सेटअप को २१ माह बाद निरस्त करने का आदेश जारी किया गया है। विभाग ने वित्त विभाग द्वारा दी गई सहमति को ही स्वीकृति समझ लिया था और भर्ती नियम बनाने की कवायद प्रारंभ हो गई थी। इसी कवायद के बीच में यह बात सामने आई कि सेटअप को तो शासन की मंजूरी ही नहीं मिली है।
प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग के लिए तैयार किए गए सेटअप को खेल एवं युवा कल्याण विभाग के उपसचिव अमृता बेक ने १० सितंबर को एक आदेश जारी कर निरस्त कर दिया है। इसके निरस्त करने का कारण यह बताया गया है कि विभाग ने वित्त विभाग की २५ अक्टूबर २००८ की सहमति को ही स्वीकृति समङाते हुए १५ जनवरी २००९ को समसंख्यक आदेश जारी कर दिया था। इस आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया गया है।
खेल विभाग में इस आदेश के आने के बाद जहां अधिकारियों में परेशानी है, वहीं बाबू खुश हैं। नए सेटअप को लेकर इसके आदेश के बाद से ही बाबूओं में इस बात को लेकर नाराजगी थी कि अधिकारियों ने अपने फायदे के मुताबिक सेटअप मंजूर करवा लिया था। नए सेटअप के बारे में बताया जाता है कि इसमें कुल २२ पदनामों के लिए १७२ पदों भर्ती करने का सेटअप बनाया गया था। इन पदों की तुलना में विभाग में कुल ६२ पद भी भरे हुए हैं, बाकी पद खाली थे। इन्हीं पदों को भरे जाने के लिए जब भर्ती नियम बनाने की बात लगातार सामने आने के बाद मंत्रालय को भर्ती नियम बनाने के लिए लिखा गया तो यह बात सामने आई कि सेटअप को तो स्वीकृति ही नहीं मिली है। यह जानकारी होने के बाद स्वीकृति निरस्त करने का आदेश निकाला गया है।
सहमति को स्वीकृति समझा था: खेल सचिव
इस मामले में खेल सचिव सुब्रत साहू का कहना है कि विभाग से वित्त विभाग की सहमति को ही स्वीकृति समझने की भूल की थी जिसके कारण आदेश जारी कर दिया गया था।
अंतर क्या है सहमति और स्वीकृति में
वित्त विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने इस बात का खुलासा किया कि दरअसल में सहमति और स्वीकृति में अंतर क्या है। इन अधिकारी का कहना है कि वित्त विभाग के पास जब किसी भी विभाग का प्रस्ताव आता है तो उस प्रस्ताव से विभाग का अधिकारी सहमत हो जाता है तो उस विभाग को सहमति पत्र देना आम बात है। लेकिन उस सहमति पत्र का यह मतलब कदापि नहीं होता है कि उस प्रस्ताव को शासन की मंजूरी मिल गई है। शासन से जब प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय हो जाता है तो उसके लिए अलग से स्वीकृति पत्र जारी किया जाता है। खेल विभाग के मामले में सहमति को ही विभाग ने स्वीकृति मानने की गलती की जिसके कारण उसे निरस्त करना पड़ा है।

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