शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

दावेदारों का खेल विभाग में जमावड़ा

खेल पुरस्कारों की सूची में नाम न आने से हताश और निराश लोगों का गुरुवार को खेल विभाग में जमावड़ा लगा। हर कोई यह जानने बेताब था कि आखिर उनका नाम क्यों कर कटा है। इधर डोपिंग के दोषी सिद्धार्थ मिश्रा भी अपना पक्ष रखने के लिए खेल संचालक के पास पहुंचे थे।
खेल पुरस्कारों की सूची जारी होने के बाद वे खिलाड़ी तो काफी खुश हैं जिनका नाम सूची में है। इधर वे खिलाड़ी और उन खेल संघों के पदाधिकारी परेशान हैं कि आखिर किस कारण से उनके खिलाडिय़ों का नाम कट गया है। खेल संचालक से मिलने के लिए कराते संघ के पदाधिकारी पुरस्कार के दावेदार अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अंबर भारद्धाज के साथ पहुंचे। इन्होंने खेल संचालक से मिलकर यह जानने का प्रयास किया कि उनके खिलाड़ी का नाम पुरस्कारों की सूची में क्यों नहीं है। कराते खिलाडिय़ों को इस बार पुरस्कार न मिलने का कारण इस संघ के राष्ट्रीय फेडरेशन का विवाद मुख्य माना जा रहा है।
बॉडी बिल्डर पुरस्कार से वंचित क्यों
पहली बार ऐसा हुआ है कि बॉडी बिल्डरों को पुरस्कार से वंचित किया गया है। शहीद राजीव पांडे पुरस्कार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले राजकिशोर ङाा दावेदारों में शामिल थे। इनको पुरस्कार क्यों नहीं मिला यह जानने के लिए संघ के सचिव संजय शर्मा खेल संचालक के पास पहुंचे थे। इस संघ के खिलाड़ी को पुरस्कार से वंचित रखने का कारण खेल संचालक जीपी सिंह ने यह बताया कि प्रदेश बॉडी बिल्डिंग संघ के इस ग्रुप को जो की लंबाई के आधार पर स्पर्धा करवाता है उसको चूंकि भारत शासन के खेल मंत्रालय ने मान्यता नहीं है यही वजह रही कि जूरी ने इस खेल के खिलाडिय़ों को पुरस्कार का पात्र नहीं माना। संजय शर्मा ने जब पिछले सालों में इस खेल के खिलाडिय़ों को पुरस्कारों देने की बात सामने रखी तो संचालक ने तर्क दिया कि संभव है एक बार किसी कारण से ये पुरस्कार दे दिए गए हैं, लेकिन इस साल जूरी ने सबसे पहला फैसला यही किया था कि जो खिलाड़ी और खेल संघ नियमों पर खरे उतरेंगे उन्हीं को पुरस्कार के योग्य माना जाएगा और उन्हीं के नाम तय किए जाएंगे। ऐसे में बॉडी बिल्डिंग के इस संघ के खिलाड़ी पात्र नहीं माने गए। संजय शर्मा का इस बारे में कहना है कि भले हमारे संघ को भारत सरकार की मान्यता नहीं है, लेकिन कई राज्यों में राज्यों में प्रचलित खेलों के खिलाडिय़ों को पुरस्कार दिए जाते हैं। ेेऐसे में जरूरी हो तो नियमों में बदलाव करना चाहिए।
टीम खेल भी पात्र नहीं
जूरी ने इस बार एक और कड़ा फैसला यह भी किया कि टीम खेलों को पुरस्कारों से यह कहते हुए अलग कर दिया कि जो नियम व्यक्तिगत खेलों के लिए लागू होते हैं उन्हीं नियमों पर अगर टीम खेल की कोई टीम खरी उतरती है तभी उसको पुरस्कार के योग्य माना जाएगा। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि नियमों के मुताबिक पुरस्कार के लिए पांच साल तक खिलाड़ी का राष्ट्रीय स्तर का प्रदर्शन देखा जाता है। इसमें तीन सालों में किसी साल पदक जरूरी रहता है, साथ ही जिस साल आवेदन किया जाता है, उस साल उस खिलाड़ी का राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलना अनिवार्य होता है। जितनी बार टीमों को पुरस्कारों दिया गया है एक साल पदक जीतने पर दे दिया गया है। इन पुराने फैसलों को जूरी ने गलत मानते हुए इस बात नियम से फैसला किया तो टीम खेल वंचित हो गए। अब टीम खेलों के लिए अलग से पुरस्कार देने की मांग होने लगी है।

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