एक फोन भी नहीं है किसी कार्यालय में
प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग के राजधानी रायपुर सहित सभी जिलों के दफ्तरों में फोन जैसी आवश्यक सुविधा भी नहीं है। इसी के साथ दफ्तरों को स्टेशनरी का जो खर्च दिया जाता है, वह ऊंठ के मुंह में जीरा से भी कम है। पाइका योजना के कारण सभी जिलों के खेल अधिकारियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सभी दफ्तरों मेंं कम्प्यूटर तो जरूर है, पर इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
छत्तीसगढ़ बनने के ९ साल बाद भी प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग के जिला कार्यालय आवश्यक सुविधाओं से वंचित हैं। राजधानी रायपुर के साथ प्रदेश के १८ जिलों के खेल दफ्तरों में एक अदना सा फोन भी नहीं है। फोन न होने के कारण दफ्तरों में न तो फैक्स की सुविधा है और न ही इंटरनेट की सुविधा है। कई बार खेल संचालनालय से किसी जिले को भेजे जाने वाले आवश्यक पत्र के लिए विशेष रूप से आदमी भेजना पड़ता है। खेल विभाग ने सभी जिलों को कम्प्यूटर तो दे दिए हैं, इसी के साथ सभी की मेल आईडी भी बना दी गई है, लेकिन इंटरनेट ही नहीं है तो मेल का उपयोग कैसे होगा।
कई जिलों के खेल अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिलों को विभाग से महज दो हजार रुपए साल का स्टेशनरी खर्च मिलता है। यह खर्च तो एक माह के लिए भी नाकाफी है। इसी खर्च में जहां जिले भर में पत्र लिखने हैं, वहीं प्रिंटर के लिए काटेज भी खरीदना पड़ता है। अभी चल रही पाइका योजना को लेकर सभी जिला खेल अधिकारी बहुत ज्यादा परेशान हैं। कई जिलों में एक हजार तक गांव हैं। ऐसे में इन बड़े जिलों को ज्यादा परेशानी हो रही है। हर गांव में अगर पत्र लिखा जाए तो उसके लिए कागज के साथ उनको पत्र भेजने के लिए पांच रुपए की दर से डाक टिकट का खर्च आता है। इस खर्च के लिए कोई पैसे अलग से नहीं मिलते हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि उनको पाइका योजना के लिए हर गांव के स्कूल को पत्र लिखना था। पत्र तो बन गए लेकिन उसको भेजने के लिए डाक खर्च ही ६ हजार रुपए आ रहा था। ऐसे में जब इसके लिए जिले के खेल प्रभारी पुलिस अधीक्षक से बात की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि विभाग से पैसे मांगे जाए। विभाग इसके लिए अलग से पैसे देता नहीं है।
खेल अधिकारियों को इस बात को लेकर भी परेशानी है कि प्रिंटर में एक साल में कम से कम तीन से चार बार काटेज को बदलना पड़ता है। एक काटेल के लिए चार से पांच सौ का खर्च आता है। बजट का सारा खर्च तो काटेज लेने में चला जाता है। प्रिंटर के काटेज के साथ फोटो काफी मशीन का टोनर भी इसी खर्च में लेना पड़ता है। इसके अलावा साल भर जो कागज लगते हैं वह भी महज दो हजार के बजट में लेने होते हैं। एक कार्यालय में ही हर हजार रुपए के कागज लग जाते हैं।
फोन का प्रस्ताव भेजा है: खेल संचालक जीपी सिंह ने इस बारे में पूछने पर कहा कि सभी जिलों में फोन लगाने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है।
1 टिप्पणी:
खेल पत्रकारिता और लेखन के लिये आपका उत्साह देखकर दंग रहता हूं। आपकी पत्रिका दिल्ली में कहां से मिल सकती है।
अजय शर्मा
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