गुरुवार, 13 अगस्त 2009

पुरस्कारों की जूरी में निष्पक्ष सदस्य हों

देश का खेल विभाग द्वारा दिए जाने वाले राज्य पुरस्कारों के लिए बनाई जाने वाली जूरी को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। इस जूरी में ऐसे खेलों के पदाधिकारियों को भी रख लिया जाता है जिन खेलों के खिलाड़ी पुरस्कारों के दावेदार होते हैं। इस संबंध में खेल संघों के पदाधिकारियों का ही कहना है कि निष्पक्ष लोगों को जूरी में रखा जाना चाहिए, ताकि किसी भी पुरस्कार में कोई विवाद की स्थिति न आए।

प्रदेश का खेल विभाग इस समय राज्य के खेल पुरस्कारों शहीद राजीव पांडे, शहीद कौशल यादव, हुनमान सिंह, पंकज विक्रम के साथ खेल विभूति सम्मान के दावेदारों के नाम तय करने की कवायद में लगा हुआ है। इन पुरस्कारों के लिए जो जूरी बनाई जाती है, उस जूरी को लेकर प्रारंभ से ही सवाल उठते रहे हैं कि इस जूरी में निष्पक्ष लोगों को नहीं रखा जाता है। अगर जानकारों की मानें तो काफी समय से जूरी में बार-बार उन्हीं लोगों को रखा जा रहा है, जो पहले भी जूरी में रहे हैं। एक-दो को छोड़कर पुरानी सूची के लोगों के नाम ही तय कर दिए जाते हैं। इधर इस तरह की खबरें आईं है कि जिन खेलों के खिलाडिय़ों को पुरस्कारों मिलते हैं, उन खेल संघों के पदाधिकारियों को भी जूरी में रखा जाता है। ऐसे में ऐसे लोग अपने चहेते खिलाडिय़ों को पुरस्कार दिलाने के लिए जूरी के बाकी सदस्यों को सेट करने का काम करते हैं। इसी तरह से जिन खिलाडिय़ों को खेल संघ वाले चाहते हैं कि पुरस्कार न मिले उनको पुरस्कार न मिल पाए इसका भी पूरा जुगाड़ करते हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए खेलों से जुड़ लोगों का कहना है कि निष्पक्ष लोगों को ही जूरी में रखना चाहिए।

छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के महासचिव बशीर अहमद खान ने कहा कि यह बात ठीक है कि खेल संघों के पदाधिकारियों के रहने से पुरस्कारों के चयन पर सवाल खड़े हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि जूरी में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिन खेलों के खिलाडिय़ों को पुरस्कार मिलने हैं कम से कम उन खेलों के पदाधिकारियों को जूरी में न रखा जाए। इसी तरह की बातें कहते हुए ट्रायथलान संघ के विष्णु श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश में खेलों के जानकारों की कमी नहीं है, फिर क्यों खेल संघों के पदाधिकारियों को जूरी में रखा जाता है। अगर लगता है कि मान्यता प्राप्त ३० खेलों के खिलाड़ी पुरस्कारों के दावेदार हैं तो ऐसे सभी खेलों के पदाधिकारियों को नहीं रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि शारीरिक शिक्षा से जुड़े बहुत से लोग भी यहां पर हैं।

प्रदेश फुटबॉल संघ के मुश्ताक अली प्रधान एवं दिवाकर थिटे के साथ कैरम संघ के विजय कुमार का भी कहना है कि खेल संघों के पदाधिकारियों को जूरी में रखना गलत है। इन्होंने कहा कि वैसे भी प्रदेश में ऐसे काफी कम खेलों के खिलाड़ी हैं जो पुरस्कारों के पात्र होते हैं ऐसे में अगर खेल संघों के पदाधिकारियों को ही रखना है तो उन खेलों के पदाधिकारियों को रखा जाए जिन खेलों के खिलाड़ी पुरस्कारों के दावेदार न हों। ।

विधानसभा में तय हो जूरी के सदस्य

खेलों से जुड़े जानकारों के साथ कई खिलाडिय़ों का एक स्वर में ऐसा मानना है कि खेल पुरस्कारों के लिए जूरी तो विधानसभा में तय होनी चाहिए। इस जूरी में विभागीय मंत्री के साथ पक्ष और विपक्ष का एक विधायक भी रखा जाए और जो भी नाम तय किए जाए उनको विधानसभा में अनुमोदित करवाया जाए। जूरी के नाम एक कमरे में बैठकर तय करने की परंपरा बंद होनी चाहिए। अक्सर ऐेसा होता है कि जिन खेल संघों के लोग विभागीय मंत्री के करीब होते हैं उनको जूरी में रख लिया जाता है। अगर विधानसभा में नाम तय होंगे तो यह बात सामने आ जाएगी कि निष्पक्ष लोग जूरी में हैं या नहीं।

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

विचारणीय पोस्ट लिखी है।आज जो भी फैसलें होते हैं उस मे भाई भतीजावाद साफ नजर आता है......इस कारण खिलाड़ी भी हताशा का शिकार हो रहें हैं....खेल का स्तर भी इसी कारण नीचे गिरता है.....आपने बहुत सही सामयिक आलेख प्रेषित किया।आभार।

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