साई की मदद से आदिवासी क्षेत्र में होगा खेलों का विकास
प्रदेश के १४ क्रीड़ा परिसरों को अब उनके सही रूप में लाकर खेल स्कूल बनाने का काम किया जाएगा। यह काम भारतीय खेल प्राधिकरण की मदद से होगा। इसके लिए साई की सहमति मिल गई है। प्रदेश की खेल मंत्री लता उसेंडी के निर्देश पर खेल संचालक जीपी सिंह ने इस मामले में दिल्ली में हुई बैठक में खेल मंत्रालय के सामने एक प्रस्ताव रखा था जिसे मान लिया गया है।
केन्द्र सरकार की एक योजना है जिसमें नक्सली क्षेत्र में खेलों को बढ़ाने का काम किया जाता है। इस योजना का लाभ उठाकर प्रदेश के खेल विभाग ने बस्तर के नक्सली क्षेत्र सहित सरगुजा के आदिवासी अंचल में जो क्रीड़ा परिसर हंै, उनको खेल स्कूल बनाने की दिशा में पहल की है। वैसे भी इन क्रीड़ा परिसरों का प्रारंभ खेल स्कूल के रूप में ही किया गया था, पर इनको खेल स्कूल का रूप अब तक नहीं दिया जा सका है। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि जब नई दिल्ली में तीन अगस्त को देश भर के खेल मंत्रियों की बैठक के बाद अगले दिन केन्द्रीय खेल मंत्रालय की सचिव सिंधु कुल्लर ने खेल सचिवों और खेल संचालकों की बैठक ली तो इस बैठक में ही यह बात सामने आई कि केन्द्र सरकार नक्सली क्षेत्र में विशेष योजना के तहत खेलों का विकास चाहती है, ऐेसे में केन्द्रीय खेल मंत्रालय के सामने छत्तीसगढ़ की तरफ से यह प्रस्ताव रखा गया कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों के साथ बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जो आदिम जाति कल्याण विभाग के क्रीड़ा परिसर हैं, उनको खेल स्कूल के रूप में साई की मदद से विकसित किया जा सकता है। इस प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए केन्द्रीय खेल मंत्रालय से साई की मदद से छत्तीसगढ़ के क्रीड़ा परिसरों को विकसित करने की बात कही है।
श्री सिंह ने बताया कि साई की एक योजना है कि नेशनल टेंलट सर्च। इस योजना में ऐसे स्कूलों को गोद लिया जाता है जो स्कूल खेलों में अच्छे होते हैं। इस योजना के साथ नक्सली क्षेत्र में खेलों के विकास की योजना को मिलाकर यहां के क्रीड़ा परिसरों को एक तरह से साई को गोद दिलाने का काम किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके अलावा प्रदेश के और कई स्कूलों में भी साई को गोद दिलाने का काम करेंगे। उन्होंने बताया कि बस्तर का डिमरापारा कन्या आश्रम भी खेलों की दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहा है, इस आश्रम को भी साई को गोद दिलाने की पहल की जाएगी।
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