रविवार, 4 जुलाई 2010

थांग-ता, हर गांव में जाए छा

जूडो के अंतर्गत आने वाले इस नए खेल थांग-ता को तो अपने राज्य के हर गांव में छा जाना चाहिए। वास्तव में यह खेल देशी मार्शल आर्ट है और इसको खेलने की तरफ हर खिलाड़ी को ध्यान देना चाहिए। एक साल के समय में ही इस खेल ने जिस तरह से ८ जिलों में अपने पैरे पसारे हैं उससे यह तय है कि यह खेल बहुत जल्दी राज्य के हर गांव में जाना जाएगा। इस खेल को स्कूली खेलों में शामिल करवाने का प्रयास हमारी सरकार करेगी।
ये बातें यहां पर प्रदेश की खेलमंत्री लता उसेंडी ने पहली राज्य थांग-ता चैंपियनशिप के पुरस्कार वितरण में कही। उन्होंने कहा कि उनको बताया गया है कि यह खेल जूडो के अंतर्गत आने वाले २७ खेलों में से प्रमुख है। खेलमंत्री ने कहा कि हम लोग जब यहां पर दो खिलाडिय़ों के बीच मुकाबला देख रहे थे तो हमारी नजरें खिलाडिय़ों पर तो थीं, पर उससे ज्यादा नजरें निर्णायकों पर थीं, क्योंकि यह खेल संभवत: ऐसा पहला खेल है जिस खेल में दो खिलाडिय़ों के लिए सात मैदानी के साथ दो टेबल निर्णायक यानी कुल ९ जज होते हैं। उन्होंने कहा कि मुङो नहीं लगता है कि और किसी खेल में इतने ज्यादा निर्णायक दो खिलाडिय़ों के मुकाबले के लिए रहते हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह खेल इतना अच्छा और तकीनीक रूप से मजबूत है कि इस खेल को आम लोगों तक पहुंचना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि खेल संघ के साथ खिलाडिय़ों को भी यह चाहिए कि इस खेल को राज्य के हर गांव तक ले जाने का काम करें।
खेलमंत्री ने कहा कि हमारे सामने इस खेल को स्कूली खेलों में शामिल करवाने की मांग थांग-ता संघ के अध्यक्ष कैलाश मुरारका ने रखी है, हमारा प्रयास रहेगा कि यह खेल जरूर स्कूली खेलों में शामिल किया जाए।
भारतीय मार्शल आर्ट
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि अब तक मार्शल आर्ट के नाम से जितने भी खेल सामने आए हैं सभी के साथ जापान, चाइना, कोरिया सहित विदेशों के नाम ही जुड़े रहे हैं, लेकिन थांग-ता पहला ऐसा खेल है जो कि भारतीय मार्शल आर्ट है। यह खेल मणिपुर का पारंपरिक खेल है जो आज पूरे देश में खेला ज रहा है। उन्होंने कहा कि इस खेल को स्कूली खेलों में शामिल करने का सुङााव अच्छा है। उन्होंने खिलाडिय़ों से कहा कि वे यहां से जाने के बाद जरूर इस खेल के अपने जिलों के गांवों के साथ आस-पास के खिलाडिय़ों को सीखाने का काम करें। श्री सिंह ने खिलाडिय़ों को बताया कि छत्तीसगढ़ को जहां ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है, वहीं कामनवेल्थ की मशाल छत्तीसगढ़ आने वाली है। इसके बारे में भी खिलाडिय़ों से उन्होंने कहा कि बैटन रिले की जानकारी आप लोगों भी अपने अपने जिले में सभी को दें और इस ऐतिहासिक अवसर पर रायपुर के साथ राजनांदगांव, दुर्ग भिलाई में होने वाली बैटन रिले में शामिल होने का प्रयास करें।
स्कूलों में अनिवार्य हो थांग-ता
प्रदेश थांग-ता के अध्यक्ष कैलाश मुरारका ने कहा कि यह एक ओलंपिक खेल है जिसको स्कूली खेलों में शामिल करवाने का प्रयास प्रदेश सरकार को करना चाहिए। उन्होंने खेलमंत्री से कहा कि खेलमंत्री इस दिशा में पहल करें और इस खेल को स्कूली खेलों में शामिल करवाए ताकि ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी इस खेल से जुड़ सके। उन्होंने खेल विभाग की तारीफ करते हुए कहा कि पहले राज्य स्पर्धा के आयोजन के लिए विभाग से महज ५० हजार का अनुदान मिलता था लेकिन अब विभाग खुद स्पर्धा करवाने के साथ खिलाडिय़ों को नकद राशि देता है। इससे खिलाडिय़ों का उत्साह हर खेल में बढ़ा है।
पुरस्कार मिले-चेहरे खिले
कार्यक्रम के अंत में खेलमंत्री लता उसेंडी के साथ अन्य अतिथियों ने खिलाडिय़ों को नकद पुरस्कार राशि के साथ पदक बांटे। स्पर्धा के हर वर्ग में प्रथम स्थान पाने वाले खिलाडिय़ों को एक हजार, दूसरे स्थान पर रहने वालों को सात सौ पचास रुपए, तीसरे पर रहने वालों को पांच सौ रुपए की नकद राशि दी गई। स्पर्धा के दूसरे दिन सीनियर वर्ग के हुए मुकाबलों में ५२ किलो ग्राम में स्वर्ण रायपुर के दीनदयाल साहू को, रजत दुर्ग के देवा साहू को और कांस्य दुर्ग के चन्द्रेश लहरे को मिला। ५६ किलेग्राम में स्वर्ण रायपुर के शिवचरण साहू को, रजत दुर्ग के संतमणी कौशल को और कांस्य रायपुर के सुरजीत सिंह बघेला को मिला। ६० किलोग्राम में स्वर्ण रायपुर के रामनाराय जंघेल को, रजत दुर्ग के शंकर ठाकुर को और कांस्य बिलासपुर के कमलेश ध्रउव को मिला। सीनियर वर्ग की स्पर्धा का आयोजन राज्य संघ ने किया था जबकि सब जूनियर और जूनियर वर्ग का आयोजन खेल विभाग ने संघ के साथ मिलकर किया था।

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