मंगलवार, 13 जुलाई 2010

बस एक मैदान चाहिए खेलने के लिए..

आदिवासी क्षेत्र कांकेर के खेल परिसर में रहकर पढऩे वाली फुटबॉल खिलाडिय़ों को इस बात का मलाल है कि उनके परिसर में फुटबॉल की दो दर्जन से ज्यादा खिलाड़ी रहने के बाद भी कोई मैदान नहीं है। इस परिसर की तीन खिलाड़ी राज्य की संभावित टीम में शामिल हैं। इधर जशपुर की खिलाडिय़ों को मैदान तो नसीब है, पर उनको खेल के गुर बताने वाला कोई अच्छा कोच नहीं है।
सप्रे स्कूल के मैदान में इन दिनों राज्य की अंडर १९ बालिका टीम का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है। इस शिविर में शामिल कांकेर के खेल परिसर की खिलाड़ी बाम्लेर कोमरा जो तीन बार राष्ट्रीय स्पर्धा में खेल चुकी हैं। खिलेश्वरी नेताम और सुनीता राना ये दोनों खिलाड़ी भी दो बार राष्ट्रीय स्पर्धा में खेल चुकी हैं। ये तीनों खिलाड़ी एक बार फिर से प्रदेश की टीम से खेलने के लिए तैयार हैं। इन्होंने पूछने पर बताया कि वे कांकेर के ग्रामीण क्षेत्र से आई हैं और खेल परिसर में खेल के साथ पढ़ाई कर रही है। एक सवाल के जवाब में इन खिलाडिय़ों ने काफी ङिाङाक और डर के साथ बताया कि उनके खेल परिसर में फुटबॉल की ३० खिलाड़ी हैं, लेकिन सबसे अफसोसजनक यह है कि वहां पर फुटबॉल का मैदान ही नहीं है। यही नहीं इनको बिना गोल पोस्ट के अभ्यास भी करना पड़ता है। इन्होंने पूछने पर बताया कि फुटबॉल खिलाडिय़ों को राजेन्द्र ठाकुर प्रशिक्षण देते हैं। वहां सुबह के समय ६ से ८ और शाम को ५ से ७ बजे तक अभ्यास होता है। इनका कहना है कि अगर परिसर में या फिर कांकेर में कहीं भी फुटबॉल का एक मैदान हो जाए तो वहां से बहुत खिलाड़ी निकल सकती हैं।
इघर जशपुर से आईं प्रांशु प्रिया के साथ तनुजा कुजूर कहती हैं कि उनके यहां मैदान तो है, पर बालिका फुटबॉल खिलाडिय़ों के लिए महिला कोच होनी चाहिए। दोनों खिलाड़ी कुनकुरी की हैं। इनका कहना है कि उनके गांव में खिलाडिय़ों की भरमार है, वहां पर एक साई का हास्टल होना चाहिए।
गांवों में हो कोचिंग की सुविधा
फुटबॉल की एनआईएस कोच सरिता कुजूर का कहना है कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि कांकेर और जशपुर की खिलाड़ी बहुत अच्छी हैं। वास्तव में सही प्रतिभाएं गांवों में होती हैं। गांवों में ज्यादा से ज्यादा कोचिंग की सुविधा होनी चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्र में राज्य अकादमी हो
फुटबॉल का पिछले चार दशक से प्रशिक्षण देने वाले मुश्ताक अली प्रधान का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों खासकर जशपुर और बस्तर में राज्य सरकार को राज्य अकादमी खोलनी चाहिए। कम से कम पांच-पांच खेलों का चयन करके अगर आदिवासी क्षेत्रों में अकादमी बना दी जाए तो वहां से हर खेल के खिलाड़ी निकल सकते हैं। उन्होंने कहा कि कुनकुरी वास्तव में खिलाडिय़ों की खान है, वहां पर तो सरकार को एक अकादमी बनानी ही चाहिए।

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