रविवार, 24 अक्तूबर 2010

जिलों में ट्रायल करवाना उपयुक्त

छत्तीसगढ़ ओलंपिक में के लिए जिस तरह का जिलों का बजट सामने आ रहा है उसके बाद अब खेल के जानकारों को यह लगने लगा है कि जिलों में ट्रायल करवाना ज्यादा उपयुक्त होगा। रायपुर जिले के खेल विभाग ने जहां आयोजन के लिए ४० लाख का बजट बनाने का मन बनाया है, वहीं जिला शिक्षा विभाग ने तो और हद करते हुए महज १२ खेलों के लिए ही ४५ लाख का बजट बना दिया है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य के दस साल पूरे होने के अवसर पर राज्य में छत्तीसगढ़ ओलंपिक के नाम से खेलों का महाकुंभ करवाने की घोषणा की है। इसके बाद से ही खेल विभाग इस दिशा में काम कर रहा है। ऐसे में जबकि खेल संचालनालय ने जिलों से उनके जिले में हो सकने वाले खेलों की जानकारी मांगी है, तो रायपुर जिले ने जहां जिलाधीश की अध्यक्षता में खेल संघों की बैठक करके ३१ खेलों का प्रस्ताव बनाकर भेजने का फैसला किया है। इसके लिए करीब ४० लाख का बजट तय किया गया है। इसी तरह से स्कूल स्तर पर होने वाले अंडर १९ के आयोजन के लिए जिला शिक्षा विभाग ने १२ खेलों के लिए ४५ लाख का बजट बना दिया है।
जिस तरह का बजट सामने आ रहा है, उसके बाद खेलों से जुड़े लोगों का ऐसा मानना है कि जिलों में आयोजन करने का कोई मतलब नहीं है। यहां तो ट्रायल ही करवाना चाहिए। कराते संघ के अजय साहू कहते हैं कि एक खेल के लिए एक लाख से ज्यादा का बजट समङा से परे हैं। ऐसे में खेल विभाग को चाहिए कि वह खेल संघों को जिम्मेदारी देकर जिले की टीम के लिए चयन ट्रायल कर ले। इस ट्रायल में ज्यादा खर्च होना नहीं है।
स्कूली आयोजन फिर क्यों?
स्कूली शिक्षा विभाग के ४५ लाख के बजट पर हैरानी व्यक्त करते हुए फुटबॉल संघ के मुश्ताक अली प्रधान कहते हैं कि स्कूली आयोजन तो वैसे भी ज्यादातर खेलों के हो चुके हैं, ऐसे में इन आयोजनों को फिर से करने का कोई मतलब नहीं है। ज्यादातर खेलों के लिए तो राज्य की टीमें बन चुकी हैं। जिन टीम को जोन स्तर के लिए चयन कर लिया गया है, उन्हीं टीमों का एक बार राज्य स्तर पर आयोजन होना चाहिए। जिलों में आयोजन करने का मतलब पैसों की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। यही बात तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका कहते हैं। वे कहते हैं कि उनका संघ खेलमंत्री लता उसेंडी से इस संबंध में बात करेगा कि जिलों के आयोजन का क्या औचित्य है। उन्होंने भी कहा कि जिलों में आयोजन का मतलब पैसों की बर्बादी है। श्री मुरारका ने भी कहा कि जब स्कूली खेलों का आयोजन हो चुका है तो फिर से आयोजन करने का मतलब क्या है। वालीबॉल संघ के मो. अकरम खान भी जिलों में आयोजन के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है कि ट्रायल से जब बात बन सकती है तो फिर आयोजन में खर्च करने का क्या मतलब है। वे कहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पैसे राज्य स्तर के आयोजन में खर्च करके उनको भव्य बनाने के प्रयास होने चाहिए।

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