मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

स्कूली खेलों टीमों के चयन में चलता है कोटा सिस्टम

प्रदेश में स्कूली खेलों के चयन में कोटा सिस्टम हावी है। इस कोटा सिस्टम के कारण अच्छे खिलाडिय़ों को किनारे कर दिया जाता है। टीमों का चयन करने का जिम्मा भी जिनको दिया जाता वे भी उन खेलों के जानकार नहीं होते हैं। खेल शिक्षकों में ही जो खेलों के जानकार हैं, उनको जिम्मा ही नहीं दिया जाता है। क्रिकेट, नेटबॉल में गलत चयन के बाद अब फुटबॉल टीम के चयन को लेकर विवाद सामने आ रहा है। अब इसकी भी शिकायत शिक्षा मंत्री से करने का मन फुटबॉल से जुड़े लोगों ने बनाया है।

प्रदेश के शिक्षा विभाग द्वारा राष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए प्रदेश के जिन भी खेलों की टीमों का चयन किया जाता है, उस चयन को लेकर लगातार विवाद हो रहे हैं। हाल ही में बिलासपुर में खेली गई राज्य स्पर्धा के प्रदेश की जिन टीमों का चयन किया गया है, उन टीमों में से नेटबॉल को लेकर शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से शिकायत की जा चुकी है। अब फुटबॉल में सही खिलाडिय़ों का चयन न करने की बात सामने आ रही है। फुटबॉल से जुड़े लोग इस मामले की शिकायत शिक्षा मंत्री से करने वाले हैं। जानकारों का साफ कहना है कि एक तो स्कूली खेलों में जिन को चयनकर्ता बनाया जाता है, वे उस खेल के जानकार भी नहीं होते हैं। ऐसे में ये चयनकर्ता अपनी मर्जी से खिलाडिय़ों को रख लेते हैं। जो खिलाड़ी अच्छा खेलते हैं उनको टीमों में स्थान ही नहीं मिल पाता है। इसके पहले क्रिकेट टीम में भी सही खिलाडिय़ों का चयन न करने की शिकायत हो चुकी है।

कई स्कूलों के खेल शिक्षक बताते हैं कि जहां भी राज्य स्तर के आयोजन होते हैं वहां पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ चयनकर्ताओं की मनमर्जी चलती है। इनका साफ कहना है नेटबॉल टीम का चयन करना होता है तो नेटबॉल के जानकारों को रखा ही नहीं जाता है। फुटबॉल का चयन करना होता है इसके जानकारों को भी नहीं रखा जाता है। खेल शिक्षक कहते हैं कि जब प्रदेश में हर खेल के संघ हैं तो क्यों नहीं इन संघों के खेलों को जानकारों को चयनकर्ता बनाया जाता है। सही खेलों के जानकार चयनकर्ता होंगे तो टीमों का चयन भी सही होगा। लेकिन ऐसा इसलिए किया जाता क्योंकि ऐसा करने से कोटा सिस्टम फेल हो जाएगा।

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