साहू सदन बैरनबाजार में सुबह के समय हर तरफ खिलाडिय़ों का जमावड़ा लगा है। एक तरफ छोटे से लेकर बड़े खिलाड़ी काता करने में लगे हैं तो दूसरी तरफ महिला खिलाड़ी बचाव के दांव-पेंच सिखाने में व्यस्त हंै। काता करते समय जहां खिलाड़ी मुंह से आवाज निकालते हुए अभ्यास में जुटे हैं, वहीं फाइट करते समय भी खिलाड़ी आवाज कर रहे हैं। कराते में आवाज करना खेल का एक हिस्सा है।
राजधानी में खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने २२ खेलों का प्रशिक्षण शिविर लगाया है। इन खेलों में सबसे ज्यादा खिलाड़ी जिन खेलों में आ रहे हैं, उनमें एक खेल कराते भी है। कराते का क्रेज खिलाडिय़ों में हमेशा से रहा है। कराते खासकर लड़कियों के लिए ज्यादा जरूरी हो गया है। कराते के प्रशिक्षक अजय साहू कहते हैं कि जिस तरह से राजधानी में लगातार अपराध बढ़ रहे हैं उसको देखते हुए यह जरूरी है हर लड़की कम से कम इतने दांव-पेंच तो जान ही ले जिससे वह अपना बचाव कर सके। अजय साहू ने एक बार नहीं कई बार राजधानी के डिग्री गल्र्स कॉलेज के साथ अन्य स्थानों पर प्रशिक्षण शिविर लगाकर कॉलेज और स्कूली लड़कियों को आत्मरक्षा के दांव-पेंच सिखाए हैं। वे बताते हैं कि बहुत सी खिलाड़ी ऐसी हैं जो आई तो थीं आत्मरक्षा के लिहाज के कराते सीखने लेकिन इस खेल की विशेषता देखकर वे खेल के रूप में इसे अपना चुकी हैं।
साहू सदन में कराते के गुर सीखने वाले खिलाडिय़ों में कम उम्र के खिलाड़ी भी हैं। ऐसे खिलाडिय़ों में सृष्टि शर्मा, शिवानी शर्मा, अनिकेत मेहतो, भाविका साहू, पूर्वी साहू, कृतार्थ साहू के नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा सूरज शुक्ला, गोजेन बॉग, हरीश बॉग, रूपल शाह, समीर शाह, आदित्य हेमकांति महानंद, हिमांशु मर्विडकर, माघवेन्द्र साहू, दयान अलाम ऐसे खिलाड़ी हैं जो पहली बार कराते का प्रशिक्षण लेने आए हैं। इनका एक स्वर में कहना है कि वे इस खेल से बहुत प्र्रभावित हैं और इस खेल को ही आगे खेलना चाहते हैं। इनका कहना है कि इस खेल से फिटनेस भी अच्छी रहती है।
बैरनबाजार के साहू सदन में इस समय करीब १०० खिलाड़ी सुबह को ६.३० से ८.३० बजे तक प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं। इन खिलाडिय़ों को तराशने का काम अजय साहू के साथ नीरज अग्रवाल और हर्षा साहू कर रहे हैं। इन प्रशिक्षकों में से अजय साहू वरिष्ठ प्रशिक्षक हैं और पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि जो भी खिलाड़ी प्रशिक्षण शिविर के बाद कराते को खेल के रूप में अपनाना चाहते हैं उनको लगातार साल भर नियमित् अभ्यास करना होगा। वे कहते हैं कि राज्य में जितने ज्यादा कराते के खिलाड़ी निकलेंगे उतना फायदा है क्योंकि राज्य को २०१३ के राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है और अपनी मेजबानी में कराते ही एक ऐसा खेल है जो सबसे ज्यादा पदक दिला सकता है।
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