शुक्रवार, 7 मई 2010

खिलाडिय़ों का बीमा कराने में रूचि ही नहीं

प्रदेश के खिलाडिय़ों का यात्रा बीमा कराने में खेल संघों की रूचि ही नहीं है। इस दिशा में हाल ही में एक पहल नेटबॉल संघ ने की थी। वैसे प्रदेश में सबसे पहली पहल करने का Ÿोय कराते संघ को जाता है। अब इधर नेटबॉल संघ ने जहां यह तय किया है कि उनकी कोई भी टीम खिलाडिय़ों के बीमे के बिना नहीं जाएगी, वहीं वालीबॉल संघ ने भी खिलाडिय़ों का बीमा करवाने की बात की है। खिलाडिय़ों को सुरक्षित रखने के लिए खेल विभाग ने खिलाडिय़ों का बीमा करवाने वाले संघों को ५० प्रतिशत अनुदान देने की भी प्रावधान रखा है, लेकिन इसके बाद भी खिलाडिय़ों का बीमा नहीं करवाया जाता है।
प्रदेश में इस समय ३३ मान्यता प्राप्त खेल संघों के साथ करीब एक दर्जन और ऐसे खेल संघ हैं जो मान्यता न होने के बाद भी अपनी टीम को खेलने के लिए राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भेजते हैं। वैसे तो अब तक राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने जाने वाली किसी टीम के साथ कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ है, लेकिन आगे भी कोई हादसा नहीं होगा यह नहीं कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद जब प्रदेश के खेल विभाग में खेल नीति बनी थी तो इस नीति के तहत इस बात का भी ध्यान रखा गया था कि प्रदेश की टीम से खेलने जाने वाले खिलाडिय़ों को सुरक्षित रखने के लिए खिलाडिय़ों का बीमा करवाया जाए। इसके लिए खेल विभाग ने खेल संघों को प्रोत्साहन देने के लिए बीमे की ५० प्रतिशत राशि का अनुदान देने का भी प्रावधान रखा है। इस प्रावधान के बाद भी कोई खेल संघ खिलाडिय़ों का बीमा करवाने में रूचि नहीं लेता है। खेल संघों के पदाधिकारी खिलाडिय़ों से राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने जाने का किराया तो जरूर वसूल लेते हैं, पर खिलाडिय़ों के साथ कोई हादसा न हो इसका ध्यान नहीं रखा जाता है। कई खेलों के खिलाड़ी साफ कहते हैं कि उनका राष्ट्रीय स्पर्धा में जाने से पहले बीमा होना चाहिए। इनका कहना है कि जब हमारे परिजन हमारे आने-जाने का खर्च दे सकते हैं तो बीमे की छोटी सी राशि भी दे सकते हैं। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि एक खिलाड़ी के लिए बमुश्किल ५० से १०० की राशि खर्च होती है और हर खिलाड़ी का एक लाख का बीमा हो जाता है।
कराते संघ ने की थी पहली पहल
प्रदेश के खिलाडिय़ों का बीमा करवाने के लिए पहली पहल की जहां तक बात है तो यह पहल करने का काम कराते संघ से करीब पांच साल पहले किया था। इसके बाद इस दिशा में लंबे समय तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन इधर प्रदेश नेटबॉल संघ ने एक बार फिर से पहल करते हुए इस साल राष्ट्रीय स्पर्धा में खेले गई अपनी एक टीम के खिलाडिय़ों का बीमा करवाया। इस पहल के बाद जब नेटबॉल संघ की सामान्य सभा की बैठक हुई तो इसमें तय किया गया कि अब प्रदेश की जो भी नेटबॉल टीम राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने जाएगी उस टीम के खिलाडिय़ों का बीमा जरूर करवाया जाएगा। नेटबॉल संघ के बाद वालीबॉल संघ ने भी यह तय किया है कि अब उनकी कोई भी टीम बिना बीमे के खेलने नहीं जाएगी। इस बारे में संघ के सचिव मो. अकरम खान कहते हैं कि खिलाडिय़ों की बीमा जरूरी है।
जिले की टीमों का भी बीमा जरूरी
खेल विभाग ने प्रदेश की टीम के खिलाडिय़ों का बीमा करवाने के लिए अनुदान देने का प्रावधान रखा है, लेकिन राज्य स्पर्धा में खेलने जाने वाली जिले की टीमों के लिए बीमा करवाने का प्रावधान नहीं है। पिछले साल ही ग्रामीण खेलों में खेलने जा रही बस्तर की एक टीम के पांच खिलाडिय़ों की मौत सड़क हादसे में हो गई थी। इस मौत के बाद खिलाडिय़ों को बहुत मुश्किल से मुख्यमंत्री सहायत कोष से २५-२५ हजार की राशि मिली थी। ऐसे में खेलों के जानकारों का ऐेसा सोचना है कि राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने जाने वाले खिलाडिय़ों के साथ राज्य स्पर्धा में खेलने जाने वाले खिलाडिय़ों का बीमा होना चाहिए।
स्कूली खिलाडिय़ों का भी हो बीमा
खेलों के जानकारों का कहना है कि सबसे ज्यादा खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर खेलने के लिए स्कूली शिक्षा विभाग के जाते हैं। एक बार में तीन सौ से ज्यादा खिलाडिय़ों का दल जाता है। स्कूल के राष्ट्रीय खेलों में जहां एक साथ कई खेलों की स्पर्धाएं होती हैं, वहीं स्कूली खेलों में अंडर १४, १७ और अंडर १९ साल की स्पर्धाएं होने के कारण हमेशा खिलाडिय़ों का दल बड़ा होता है। ऐसे में इनके लिए बीमा जरूरी है।

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