सोमवार, 4 मई 2009

कमजोरी का भगाने रोग-रोज नए प्रयोग

राजधानी में बास्केटबॉल के प्रशिक्षण शिविर में खिलाडिय़ों की कमजोरियों को भगाने के लिए नए-नए प्रयोग करने का काम बालाजी स्कूल में किया जा रहा है। इन नए प्रयोगों से खिलाड़ी भी खुश हैं कि उनकी कमजोरियां दूर हो रही हैं। शिविर में करीब ६० खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहे हैं। शिविर में जिस तरह के प्रयोग हो रहे हैं वैसे प्रयोग पहले छत्तीसगढ़ में नहीं हुए हैं।

रायपुर में इस समय ग्रीष्मकालीन शिविरों की बहार आई हुई है। कई स्थानों पर कई खेलों के प्रशिक्षण शिविर लगातार चल रहे हैं। ज्यादातर शिविरों में खिलाड़ी समर कैम्प का मजा लेने आ रहे हैं। वैसे कई शिविरों में आने वाले खिलाड़ी नियमित रहने की बात भी कर रहे हैं। ऐसे शिविरों के बीच में बालाजी स्कूल में एक अलग तरह का शिविर चल रहा है। इस बास्केटबॉल के प्रशिक्षण शिविर में खिलाडिय़ों की कमजोरियां दूर करने के लिए नए-नए प्रयोग करने का काम प्रशिक्षक उमेश सिंह ठाकुर कर रहे हैं। श्री ठाकुर लंबे समय से बास्केटबॉल का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनके प्रशिक्षण में कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल कर स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। रायपुर की टीम जब भी राज्य स्तर पर खेलती है तो रायपुर की टीम भिलाई की टीम से ही मात का जाती है। भिलाई की टीम को प्रशिक्षण देने का काम अंतरराष्ट्रीय कोच राजेश पटेल करते हैं।



ऐसे में श्री ठाकुर लगातार इस प्रयास में रहे हैं कि रायपुर के खिलाडिय़ों को मजबूत किया जाए। उन्होंने अपने स्कूल बालाजी में इस समय जो प्रशिक्षण शिविर लगाया है उसमें वे खिलाडिय़ों को मजबूत करने के लिए नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे प्रयोग छत्तीसगढ़ में तो अब तक नहीं हुए हैं लेकिन दिल्ली सहित कुछ दूसरे राज्यों में जरूर हुए हैं। श्री ठाकुर ने बताया कि उन्होंने खिलाडिय़ों को निखारने के लिए जहां शूटिंग बेल्ट का प्रयोग किया है, वहीं इसके अलावा वेस्ट बेल्ट का भी प्रयोग किया जा रहा है। इन बेल्टों के बारे में उन्होंने बताया कि शूटिंग बेल्ट में खिलाड़ी को बेल्ट लगाने के बाद उनकी शूटिंग यानी की बास्केट सही हो जाता है, खिलाड़ी का निशाना नहीं चूकता है और वह बास्केट करके अंक लेने में सफल हो जाते हैं। इसी तरह से वेस्ट बेल्ट का प्रयोग करके खिलाड़ी के कमजोर हाथ को मजबूत किया जाता है। खिलाड़ी का जो हाथ मजबूत रहता है उस हाथ को बांध दिया जाता है और कमजोर हाथ से खिलाड़ी को ड्रिब्लिंग करवाई जाती है। इसी के साथ उसी हाथ से खिलाड़ी को पास देने कहा जाता है।




इन प्रयोगों के साथ खिलाडिय़ों को चश्मे पहनाकर ड्रिब्लिंग करवाई जा रही है। इसके बारे में कोच उमेश ठाकुर बताते हैं कि जब मैच होता है तो खिलाड़ी को सामने वाले खिलाड़ी को देखते हुए ड्रिब्लिंग करनी पड़ती है लेकिन प्रशिक्षण के समय खिलाड़ी नीचे देखने लगते हैं। अगर कोई भी खिलाड़ी नीचे देखते हुए ड्रिब्लिंग करेगा तो सामने वाला खिलाड़ी उससे बॉल छीनने में सफल हो जाएगा। ऐसे में खिलाडिय़ों को चश्में लगातार अभ्यास करवाया जा रहा है ताकि खिलाड़ी नीचे भी देखें तो उनको कुछ न दिखे। जब खिलाड़ी को नीचे कुछ नहीं दिखेगा तो वह सामने ही देखेगा। प्रशिक्षण शिविर में आए ज्यादातर खिलाड़ी मानते हैं कि नए प्रयोगों से उनके खेल में लगातार निखार आ रहा है।

1 टिप्पणी:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

सही कहा आपने, मैने भी मलिंगा का एक्‍शन अपनाया जिससे से गेजबाजी में निखार आया है।

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